तंत्र के गण : कुप्रथाओं से लड़ तय की 'जीवन-रेखा'Aligarh News

दहेज समाज के लिए अभिशाप बन चुका है। लेकिन समाज जिसे ग्रहण कर ले वह दोष भी गुण बन जाता है। इस दोष से घिरे समाज में कई महिलाएं ऐसी भी हैं।

By Sandeep SaxenaEdited By: Publish:Sun, 26 Jan 2020 10:45 AM (IST) Updated:Mon, 27 Jan 2020 12:58 PM (IST)
तंत्र के गण : कुप्रथाओं से लड़ तय की 'जीवन-रेखा'Aligarh News
तंत्र के गण : कुप्रथाओं से लड़ तय की 'जीवन-रेखा'Aligarh News

पारुल रावत अलीगढ़ : सती प्रथा की तरह 'दहेज' भी समाज के लिए 'अभिशाप' बन चुका है। लेकिन, समाज जिसे 'ग्रहण' कर ले, वह 'दोष' भी 'गुण' बन जाता है। इस दोष से घिरे समाज में कई महिलाएं ऐसी भी हैं, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए जंग लड़ी है, तो कई इस कुप्रथा की भेंट चढ़ी हैैं। गांव बरौला की रेखा ने कुप्रथाओं से लड़कर जिंदगी की राह तक की है।

दहेज की 'बलि' चढ़ी जिंदगी

रेखा हाईस्कूल पास थीं, जब उनकी शादी गांव बलीपुर में मध्यमवर्गीय परिवार में की गई। बाली उम्र में ही कंधों पर परिवार को चलाने की जिम्मेदारी आ गई। 2007 में शादी के कुछ दिन बाद रेखा को दहेज के लिए प्रताडि़त किया जाने लगा। पति काम पर तो जाता, लेकिन घर का खर्च मांगने पर रेखा को प्रताडऩा ही मिलती।

शोषण के खिलाफ उठाई 'किताब'

पढ़ाई छूट जाने की कमी रेखा को खलने लगी। उन्होंने मां से पढ़ाई के लिए पैसे मांगे और 2009 में दूरस्थ शिक्षा से इंटर पास किया। अंधकार भरी जिंदगी से बाहर निकलने के लिए उन्होंने पढ़ाई जारी रखने का निर्णय लिया। घर-घर जाकर पोलियो पिलाने का काम शुरू किया। 2011 में उनके घर 'बेटी' ने जन्म लिया। इसके बाद भी 'उत्पीडऩ' का सिलसिला नहीं रुका। तंग आकर जिंदगी खत्म करना चाहा तो बेटी का खयाल सताने लगा।

2016 में बदला जिंदगी का रुख

गांव में महिलाओं के लिए चलाए जा रहे जागरूकता कैंप का हिस्सा बनीं। अपने अधिकारों को जाना। समाज और पति के खिलाफ जाकर मां-बाप से पढ़ाई के लिए पैसे मांगे। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से बीएसडब्ल्यू (बैचलर ऑफ सोशल वर्क) में दाखिला लिया। पति का घर छोड़ सामाजिक संगठनों के साथ काम करना शुरू किया। कई लड़कियों का बाल-विवाह होने से रोका। कभी पुलिस तो कभी कानून का सहारा लेकर महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज बनीं। रेखा अपनी बेटी के साथ रहती हैं। अपनी आजीविका चलाने और बच्चों व लड़कियों को जागरूक करने के लिए घर-घर जाकर बच्चों को गुड-टच, बैड-टच, बाल उत्पीडऩ के बारे में जागरूक करती हैं।

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