Quarantine में रोजा की इजाजत नहीं देती शरीयत रोजा की जगह कजा करें Aligarh news

दुनियाभर में खौफ का पर्याय बने कोरोना वायरस संक्रमण से हर कोई दहशत में है।

By Sandeep SaxenaEdited By: Publish:Mon, 04 May 2020 02:00 PM (IST) Updated:Tue, 05 May 2020 11:25 AM (IST)
Quarantine में रोजा की इजाजत नहीं देती शरीयत रोजा की जगह कजा करें Aligarh news
Quarantine में रोजा की इजाजत नहीं देती शरीयत रोजा की जगह कजा करें Aligarh news

 अलीगढ़ [संतोष शर्मा]: दुनियाभर में खौफ का पर्याय बने कोरोना वायरस संक्रमण से हर कोई दहशत में है। क्वारंटाइन किए जा रहे लोग भी इस बात को लेकर चिंतित हैैं कि रोजा रखा जाए या नहीं। बहुत से लोगों ने बीच में रोजा छोड़ भी दिए हैं। क्वारंटाइन की स्थिति में शरीयत भी रोजा रखने की इजाजत नहीं देती है। ऐेसे लोग रोजा कजा (बाद में) कर सकते हैं। फिका की किताब दुर्रे मुख्तार मां रद्दुल मुख्तार व कुरान के सूरे बकरा आयत-185 में भी इसका जिक्र है। फिका की किताब दुर्रे मुख्तार मां रद्दुल मुख्तार के किताबो सोम के भाग-3, पेज-403 पर कहा गया है कि मरीज को उसका मर्ज बढऩे का डर हो या कमजोर होने का खौफ हो तो वह रोजा न रखे। रोजे को कजा (बाद में) करे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के धर्मशास्त्र संकाय में सहायक प्राध्यापक डॉ. रेहान अख्तर के अनुसार क्वारंटाइन में मरीज रोजा रखता है तो कमजोरी आती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है। इसकी वजह से संक्रमण का शिकार हो सकता है और यह स्थिति घातक साबित हो सकती है। क्वारंटाइन में खाने-पीने के समय में बदलाव होता है। ऐसे में सहरी व इफ्तार के समय भोजन ठंडा व गरम होने से सर्दी, खांसी, जुकाम होने का भी खतरा बढ़ जाता है। बेहतर यही है कि रोजा न रखकर कजा करें। 

पॉजिटिव आने पर रोजा न रखें 

फकेह इस्लामी की किताब बदा उस सनाहे भाग-2 में पेज-245 पर कहा गया है कि किसी इंसान को बीमारी के बढऩे व मर्ज के सख्त होने का खौफ है तो वो रोजा न रखे। प्रो. अख्तर के अनुसार आज के संदर्भ में जिन लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है या क्वारंटाइन किया गया है और उन्हें देर से सेहतमंद होने की उम्मीद है तो शरीयत उन्हें रोजा रखने की इजाजत नहीं देती है। वे रोजा कजा करें। मर्ज की वजह से इतनी कमजोरी आ गई है कि खड़े होकर नमाज भी नहीं पढ़ सकते हैं तो रोजा न रखें। 

कुरान में भी इजाजत नहीं

कुरान के सूरे बकरा आयत-185 में जिक्र है कि जो शख्स रमजान माह को पाए, वह पूरे रोजा रखे। जो मरीज है या सफर पर है तो वह दूसरे दिनों में रोजा पूरे करे। अल्लाह उसके साथ नरमी करना चाहता है। 

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