'मैं रहूं भूखा तो तुमसे भी न खाया जाए'

जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : अलीगढ़ का नाम जुबां पर आते ही दंगों की एक खौफनाक तस्वीर सामने आने लगती है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 24 Feb 2017 02:47 AM (IST) Updated:Fri, 24 Feb 2017 02:47 AM (IST)
'मैं रहूं भूखा तो तुमसे भी न खाया जाए'
'मैं रहूं भूखा तो तुमसे भी न खाया जाए'

जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : अलीगढ़ का नाम जुबां पर आते ही दंगों की एक खौफनाक तस्वीर सामने आने लगती है। एक समय इसे 'दंगे का शहर' भी कहा जाने लगा था। मगर यहां के लोग अमन-पसंद भी हैं। गंगा-जमुनी संस्कृति की खुशबू को बिखेर कर मिसाल कायम कर रहे हैं। गुरुवार को आगरा रोड स्थित सराय सुल्तानी में ऐसी ही तस्वीर दिखाई दी। मुस्लिम समाज के लोगों ने कांवड़ियों की सेवा के लिए शिविर लगाया। कांवड़ियों के सैलाब में वह हाथ जोड़कर सभी से शिविर में सुस्ताने का निवेदन करते। मुस्लिम समाज के अथाह प्रेम से शिवभक्त अपने आपको रोक नहीं सकें, वह शिविर में रूके भी फल, मिठाई आदि का प्रसाद लिया। भाईचारे की डोर में बांधने वाली यह तस्वीर हर किसी को सुकून दे रही थी।

सराय सुल्तानी निवासी हाजी नौशाद प्रत्येक वर्ष कांवड़ियों की सेवा करते थे। मगर संकोच में वे हर वर्ष आगरा रोड पर लगने वाले स्टॉल पर फल, पेठा व मिठाई आदि भिजवा दिया करते थे। उन्हें ऐसा लगता था कि यदि शिविर लगाया तो ऐसा न हो कि कोई भक्त ही न आए। तमाम बातें होंगी, कुछ अपने ही हंसी उड़ा देंगे। हालांकि, इस बार उन्होंने हिम्मत जुटा ही ली। नौशाद ने ठान लिया कि लंबी दूरी से आने वाले कांवड़ियों के लिए शिविर जरूर लगाएंगे। फिर, आना न आना उनकी मर्जी। अपने घर के पास शाम चार बजे स्टॉल लगाया। यहां कांवड़ियों के सुस्ताने की व्यवस्था भी थी। साथ ही केला, अंगूर, सेब, पेठा, मिठाई आदि की भी व्यवस्था थी। हाजी नौशाद के साथ मेराज, रिजवान, मुहम्मद नाजिम आदि थे। ये लोग हाथों में प्रसाद लेकर कांवड़ियों से रुककर प्रसाद लेने का निवेदन करने लगे। मुस्लिम समाज के निश्छल प्रेम को देख भोले के भक्त भी अपने आपको रोक नहीं सके। शिविर में रुककर कुछ देर आराम किया साथ ही प्रसाद भी लिए। शिविर में भोले के जयकारे लगे तो मुस्लिम समाज के लोगों ने भी चेहरे पर मुस्कान बिखेरकर अपना समर्थन दिया। हाजी नौशाद ने कहा कि कुछ लोगों ने हमारे बीच में जो दरारें पैदा कर दी हैं उसे हम मिटाना चाहते हैं। सराय सुल्तानी को तो पाक व भारत की सीमा बना डाली है। सच, बहुत तकलीफ होती है। यहां तक चुनाव के समय नेताओं ने भी ¨हदू-मुस्लिम को बांटने की कोशिश की, मगर हम अब इसे बंटने नहीं देंगे। आपसी एकता को लूटने नहीं देंगे। हमारी दोस्ती के पैगाम की खुशबू सारी दुनिया में फैले, बस यही हम चाहते हैं. आमीन। महाकवि गोपालदास नीरज की ये पंक्तियां यहां मौजू हैं- 'मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा, मैं रहूं भूखा तो तुमसे भी न खाया जाए'।

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