Independence day 2022 : जैनेंद्र कुमार ने साहित्य साधना के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी की भागीदारी

Independence day 2022 आजादी की लड़ाई में हर वर्ग के लोगों ने अपना योगदान दिया। ऐसे ही एक शख्‍स थे अलीगढ़ के रहने वाले जैनेंद्र कुमार जिन्‍होंने साहित्‍य साधना के साथ ही स्‍वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में भी भाग लिया। वे कई बार जेल भी गए।

By Anil KushwahaEdited By: Publish:Mon, 15 Aug 2022 09:14 AM (IST) Updated:Mon, 15 Aug 2022 09:14 AM (IST)
Independence day 2022 : जैनेंद्र कुमार ने साहित्य साधना के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी की भागीदारी
मां सरस्वती के उपासक Padma Bhushan Jainendra Kumar का फाइल फोटो।

अलीगढ़, जेएनएन । Independence day 2022 : आज की पीढ़ी भले ही इस बात से अंजान हो कि हिंदी साहित्य में नई कहानी के प्रवर्तक, मां सरस्वती के उपासक Padma Bhushan Jainendra Kumar भी अलीगढ़ के रहने वाले थे। उन्होंने न केवल साहित्य साधना के जरिए अलीगढ़ को गौरवान्वित किया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी योगदान दिया। Mahatma Gandhi के आह्वान पर सहयोग आंदोलन में सक्रिय होकर भाग लिया और कई बार जेल गए।

दो जनवरी 1905 को जन्‍मे थे जैनेंद्र  : Senior Writer Dr. Prem Kumar ने बताया कि जैनेंद्र कौडिय़ागंज के मोहल्ला छिपैटी में दो जनवरी 1905 को प्यारेलाल व रामदेवी बाई के घर पैदा हुए। उस दिन सकट चतुर्थी थी, सो बच्चे का नाम मिला सकटुआ। बाद में पिता ने चेहरे की चमक और सुंदरता पर रीझकर आनंदीलाल नाम दिया। दो वर्ष के हुए, तभी पिता चल बसे। मां उन्हें लेकर मामा के पास चली गईं।

हस्तिनापुर के गुरुकुल में प्रारंभिक शिक्षा हुई। 1919 में पंजाब से मैट्रिक पास किया और अलीगढ़ आ गए। 1921 में कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। पढ़ाई तो छूटी ही कारावास भी भुगतना पड़ा। पत्रकारिता करनी चाही। व्यापार में हाथ आजमाया, लेकिन सब व्यर्थ। 1927 में भगवती देवी के साथ विवाह हो गया।

बाद में उन्होंने political correspondent के रूप में काम किया। इसी दौरान ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 1930-32 के दौरान जेल यात्राएं कीं। लाला भगवान दास, सरोजिनी नायडू और आचार्य विनोबा भावे के साथ उन्होंने हिंदू मुस्लिम यूनिटी कांफ्रेंस में भी हिस्सा लिया।

थामी लेखनी, मिली नई दिशा : डा. प्रेम कुमार के अनुसार दुख और निराशा के दिनों में जैनेंद्र ने लेखनी थामी। पहली कहानी जन्मी खेल। 1927 में आए पहले कहानी संग्रह फांसी से मिली ख्याति ने तय करा दिया कि उन्हें तो लेखक ही बनना है। उसके बाद वातायनए नीलम देश की राजकन्या, दो चिडिय़ा, पायजेब, जयसंधि आदि संग्रहों में उनकी 300 से अधिक कहानियां आईं। 1927 में पहले उपन्यास परख के प्रकाशन में ख्याति और चर्चाओं को और अधिक बढ़ाया फैलाया।

उसके बाद सुनीता, कल्याणी, त्यागपत्र, विवर्त, सुखदा, अनाम स्वामी, मुक्तिबोध, दशार्क आदि एक दर्जन से अधिक उपन्यास आए। कथा साहित्य के अलावा निबंध, आलोचना, संस्मरण, गद्य काव्य, बाल साहित्य, पत्रकारिता विषयक जैनेंद्र का लेखन किया गया। उनका निबंध लेखन अपेक्षाकृत अधिक बौद्धिक, विचारक, दार्शनिक व नागरिक दायित्वों के प्रति सजग दिखता है। इस लेखन पर उन पर गांधी, फ्रायड, मार्क्स व बुद्ध का प्रभाव भी स्पष्ट दिखता है।

मिले सम्मान और पुरस्कार : जैनेंद्र कुमार को उनके लेखन के लिए 1966 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1971 में भारत सरकार ने पदमभूषण सम्मान से नवाजा। फिर, 1974 में साहित्य अकादमी फेलोशिप मिली। इसदिल्ली विश्वविद्यालय से डी लिट् की मानद उपाधि प्राप्त की। इनके अलावा अनेक पुरस्कार प्राप्त किए। 24 दिसंबर 1988 को उनका निधन हो गया।

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