जन्माष्टमी पर ब्रज की रज चूमते थे हसरत मोहानी Aligarh News

स्वतंत्रता आंदोलन में इंकलाब जिंदाबाद का नारे देने वाले मौलाना हसरत मोहानी भगवान कृष्ण के भी अट्टू भक्त थे।

By Sandeep SaxenaEdited By: Publish:Fri, 23 Aug 2019 02:45 PM (IST) Updated:Sat, 24 Aug 2019 09:18 AM (IST)
जन्माष्टमी पर ब्रज की रज चूमते थे हसरत मोहानी Aligarh News
जन्माष्टमी पर ब्रज की रज चूमते थे हसरत मोहानी Aligarh News

संतोष शर्मा अलीगढ़।

'मथुरा कि नगर है आशिकी का

दम भर्ती है आरजू उसी का

पैगाम ए-हयात-ए-जावेदां था

हर नामा कृष्ण बांसुरी का'

स्वतंत्रता आंदोलन में इंकलाब जिंदाबाद का नारे देने वाले मौलाना हसरत मोहानी भगवान कृष्ण के भी अट्टू भक्त थे। कृष्ण जन्माष्टमी पर वह देश में कहीं भी हों, मथुरा जरूर जाते थे। पूरी रात कृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे। मथुरा-वृंदावन की गलियों में घूमकर उन्होंने कृष्ण भक्ति में अपने को रमा लिया था। हसरत की शायरी और उनकी कृष्ण भक्ति देश की उस गंगा-जमुनी तहजीब की निशानी है जिसने दुनिया को सेक्युलरिज्म का पाठ पढ़ाया।

एएमयू से किया था बीए

मौलाना हसरत मोहानी एक स्वतंत्रता सेनानी, एक शायर, एक पत्रकार, संविधान सभा के सदस्य, और  इंकलाब जिंदाबाद का नारा इजाद करने वाले थे। मूल से उन्नाव (कानपुर) के रहने वाले मौलाना हसरत मोहानी का काफी समय अलीगढ़ में बीता था। उन्होंने 1903 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से बीए किया। इसके बाद एलएलबी। छात्र राजनीति से ही वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। वह बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय की विचारधारा मानते थे। एएमयू के हॉस्टल में तिलक की तस्वीर लगाने पर उन्हें निलंबित किया गया था।

 अलीगढ़ में रहते जागी कृष्ण भक्ति

एएमयू के इतिहास के जानकार व उर्दू एकेडमी के डायरेक्टर डॉ. राहत अबरार बताते हैं कि मौलाना मोहानी पूरी जिंदगी कृष्ण प्रेम से सराबोर थी। उनका अधिकांश समय मथुरा में बीता था। एएमयू 1894 में मिडल पास कर वह अलीगढ़ आए गए थे। अलीगढ़ में रहने के दौरान वह मथुरा आते-जाते रहे। वह मथुरा के पुराने और ऐतिहासिक मंदिरों में बैठकर कृष्ण लीला के प्रवचन सुनते थे। हसरत के बारे में ये बात काफी मशहूर है कि वे अपने पास सदा एक मुरली रखा करते थे और हर साल जन्माष्टमी आने पर वो मथुरा जाया करते थे, एक बार जेल में होने की वजह से हसरत मथुरा नहीं जा पाए तो इसका दुख उन्होंने ने अपनी एक कविता में की है।

जब सफर में मौलाना को टोका

डॉ. अबरार के अनुसार हसरत मोहानी एक बार लखनऊ से दिल्ली के सफर पर थे। वो कृष्ण भक्ति में एक नज्म गुनगुना रहे थे,  रास्ते में किसी अजनबी शख्स ने उनसे पूछा कि मौलाना साहब देखने से तो आप मुसलमान लगते हैं, फिर कृष्ण के गीतों क्यों गा रहे हैं? आपका मजहब क्या है? इस सवाल पर हसरत को हंसी आई और उन्होंने कहा कविता पढ़कर समझाया कि 'मेरा मजहब फकीरी और इंकलाब है, मैं सूफी मोमिन हूं और साम्यवादी मुसलमान'

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