Aligarh Sanjeev Murder Case: नहीं मानी हार, खुद पैरवी कर बेटे के हत्यारे को दिलाई सजा

हते हैं पिता के कंधे पर बेटे की अर्थी चली तो वह टूट जाता है। क्‍योंकि इससे बड़ा दुख कोई और नहीं हो सकता। अलीगढ़ के एक वृद्ध के सामने उसके बेटे की हत्‍या कर दी गई। यही नहीं हत्‍यारों ने वृद्ध पिता को भी धमकी दी।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Publish:Sat, 25 Sep 2021 05:56 PM (IST) Updated:Sat, 25 Sep 2021 05:56 PM (IST)
Aligarh Sanjeev Murder Case: नहीं मानी हार, खुद पैरवी कर बेटे के हत्यारे को दिलाई सजा
हाईकोर्ट के कई चक्कर काटे। खुद ही पैरवी करके हत्यारों को सजा दिलाई।

 अलीगढ़, जागरण संवाददाता। कहते हैं पिता के कंधे पर बेटे की अर्थी चली तो वह टूट जाता है। क्‍योंकि इससे बड़ा दुख कोई और नहीं हो सकता। अलीगढ़ के एक वृद्ध के सामने उसके बेटे की हत्‍या कर दी गई। यही नहीं हत्‍यारों ने वृद्ध पिता को भी धमकी दी, लेकिन वृद्ध ने हार नहीं मानी। वह पेशे से अधिवक्‍ता हैं, इसलिए हत्‍यारों को सजा दिलाने की ठान ली। खुद 19 साल तक पैरवी की और हत्‍यारों को सजा दिलवाकर ही माने।

यह है मामला

वर्ष 2002 में संजीव की हत्या हुई थी। उनके पिता बलवीर ङ्क्षसह ने बताया कि शुरुआत से ही आरोपित अपने बचाव के लिए तरह-तरह के पैंतरे अपनाते रहे। पुलिस ने 29 अप्रैल को तीनों मेरठ में गिरफ्तार हुए थे। पुलिस इन्हें बी वारंट पर अलीगढ़ लाई थी। लेकिन, डेढ़ साल बाद ही तीनों जमानत पर बाहर आ गए, बल्कि हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। इसके बाद एक एडीजीसी के बेटे की हत्या की। अधिवक्ता ने वर्ष 2006 में स्टे को हाईकोर्ट से खारिज कराया। साथ ही यह आदेश भी कराया कि मामले की शीघ्र से शीघ्र सुनवाई हो। इसके बावजूद तीनों अपराधी गंभीर घटनाओं को अंजाम देते रहे। वर्ष 2006 में रौबी पूर्व विधायक मलखान ङ्क्षसह हत्याकांड में शामिल रहा। इसी साल बुलंदशहर में कविता हत्याकांड में योगेश शामिल था। फिर दोनों को जेल हुई। लेकिन, बाहर आ गए। अधिवक्ता के बताया कि 2010 में मुकदमे में ट्रायल प्रक्रिया शुरू हो गई थी। इस दौरान पांच गवाह थे। इसमें बलवीर व रमेश चश्मदीद थे। इनके अलावा पोस्टमार्टम को साबित करने के लिए डा. वाइ भारद्वाज, विवेचना कर रहे एसआइ आरके वर्मा, एफआइआर व जीडी को साबित करने के लिए हेड मोहर्रिर केशव देव की गवाही हुई। लेकिन, आरोपित लगातार फरार चलते रहे। वर्ष 2015 में हरदुआगंज के जीतू हत्याकांड में कालू का नाम आया। उसने इसी मुकदमे में सरेंडर किया था। इधर, वर्ष 2016 में अधिवक्ता ने हाईकोर्ट से ये आदेश प्राप्त किया कि मामले की सुनवाई विशेष जज से कराई जाए। इधर, योगेश व रौबी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो गए। अधिवक्ता ने बताया कि योगेश व रौबी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन, उन्हें छोड़ दिया गया। इसकी शिकायत डीजीपी से हुई थी, जिसके बाद एसओजी ने दोनों को राजस्थान से गिरफ्तार किया था। वर्ष 2018 में अधिवक्ता ने हाईकोर्ट से डे-टू-डे सुनवाई का आदेश कराया। इसके बाद 2019 में हाईकोर्ट ने तीन महीने के अंदर फैसला सुनाने को कहा। अधिवक्ता का कहना है कि इसी बीच आरोपितों ने किसी माध्यम से एफआइआर, तहरीर, सरकारी प्रपत्र भी गायब करवा दिए थे, जो कोर्ट के आदेश पर दोबारा पेश किए गए। जेल पहुंचने के बाद भी आरोपित कोर्ट में किसी तरह से हाजिर नहीं होते थे, जिसके चलते मामले में देरी होती रही। वहीं कोरोना के चलते भी फैसला आने में देरी हुई। अधिवक्ता के मुताबिक, रौबी के खिलाफ डेढ़ दर्जन मुकदमे दर्ज हैं। वहीं योगेश व कालू पर भी कई मुकदमे दर्ज हैं।

तीनों थे दोस्त, बाद में अलग हुआ गैंग

रौबी, कालू व योगेश तीनों दोस्त थे। संजीव हत्याकांड के पीछे वर्चस्व की लड़ाई भी थी। वहीं इस मामले में जेल से आने के बाद तीनों ने प्रापर्टी डीङ्क्षलग का काम शुरू कर दिया। लेकिन, बीच में तीनों में खटास आ गई। इसके चलते योगेश व रौबी एक तरफ हो गए और कालू ने अलग गैंग तैयार कर लिया। इस गैंग ने रामघाट रोड पर कई घटनाओं को अंजाम दिया। दोनों गैंग के बीच कलाई में गैंगवार भी हुआ था।

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