ब्रज की होली: बरसाना में बरसेंंगे बृज दूल्‍हा पर प्रेम से पगे लठ्ठ, जानिए क्‍या है परंपरा Agra News

चार मार्च को रंगीली गली में बरसेगा आनंद। गोपियों के हाथ लाठियां देख गुफा में छिप गए थे कान्हा। ब्रज दूल्हा के रूप में आज भी पूजती है बरसाना की कन्या।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sun, 16 Feb 2020 05:51 PM (IST) Updated:Sun, 16 Feb 2020 05:51 PM (IST)
ब्रज की होली: बरसाना में बरसेंंगे बृज दूल्‍हा पर प्रेम से पगे लठ्ठ, जानिए क्‍या है परंपरा Agra News
ब्रज की होली: बरसाना में बरसेंंगे बृज दूल्‍हा पर प्रेम से पगे लठ्ठ, जानिए क्‍या है परंपरा Agra News

आगरा, जेएनएन। श्रीकृष्ण राधा ने फाल्गुन के माह में अपनी प्रेम लीलाओं में बिखरे न्यारे-न्यारे रंगों का रंगीला श्रीजी के आंगन में ब्रज के दूल्हा तक बन गए। लाठियों को देख कर गुफा में छिपे कान्हा का कान पकड़ कर बाहर लाई गोपियों ने होरी में खूब झुराई की। बोली यहां दूल्हा बन कर बैठ गये हो। तभी से कुंवारी कन्या कान्हा को ब्रज के दूल्हा के रूप में पूजती चली आ रही है। एक बार फिर अपने हुरियारे का लठ्ठन से झूरने की मचल रही हैं।

बरसाना की गोपियों अपनी लाठियों को तेल पिला रही हैं, जबकि नंदगांव के ग्वाला तड़तड़ बरसने वाली लाठियों के वार को झेलने के लिए ढाल तैयार कर रहे है। चार मार्च को रंगीली गली में कृष्णकालीन होली के आनंद बरसेगा। कान्हा बरसाना होली खेलने के लिए जब अपने ग्वाल बालों की टोली के समूह साथ आए थे, तब गोपियों के हाथ में इन्हीं लाठियों को देखकर डर गए थे। भाग कर एक गुफा में छिप गए। गोपियां भी उनकी तलाश में निकल पड़ी और गुफा में बैठे कान्हा का कान पकड़ कर बाहर खींच कर ले आई और बोली, यहां दूल्हा बनौ बैठो हैं। आज लठ्ठन से एैसो झूरेंगी कि होली खेलन ही भूल जायगौ। श्री नारायण भट्टजी ने इस गुफा को करीब 550 साल पहले खोजा और करीब ढाई सौ साल पहले भरतपुर के राज पुरोहित रूपराम कटारा ने यहां एक हवेली का निर्माण कराया, जो आज भी है। इसी हवेली में ब्रज के दूल्हा कान्हा के मंदिर की स्थापना कराई। तभी से हवेली में रहने वाली कुंवरी कन्या कान्हा को ब्रज के दूल्हा के रूप में पूजती चली आ रही है। आज भी नंदगांव के हुरियारे होली खेलने से पहले ब्रज के दूल्हा से होली खेलने की मंजूरी लेते हैं, तभी होली खेलने के लिए रंगीली गली में आते हैं।

सेवा कार्य करती हैं महिलाएं

बरसाना की भूमिया गली में रूपराम कटारा की हवेली में ब्रज दूल्हे का मंदिर है। मंदिर में कृष्ण दूल्हा रूप विराजमान है। लठामार होली से पहले नंदगांव के हुरियारे ब्रज दूल्हे को प्रणाम करते हैं और उनको होली खेलने का न्यौता देते हैं। कान्हा की आज्ञा से ही वे होली खेलने के लिए जाते हैं। अन्य मंदिरों में सेवा पूजा के कार्य पुरुष करते हैं, जबकि यहां कुंवरी कन्या और स्त्री पूजा सेवा करती हैं।

ऐसे पड़ा बृज दूल्‍हा नाम

कृष्ण अपने सखाओं के साथ होली खेलने बरसाना आए तो गोपियों ने उनके साथ लठामार होली खेलने का मन बना लिया। गोपियों के हाथों में लाठियां देखकर ग्वाल- बाल डर कर भाग खड़े हुए और कृष्ण कहीं छिप गए। छिपे हुए कृष्ण को गोपियों ने ढूंढ निकाला और उनका कान खींचकर कहा कि दूल्हा तो यहां छिपा हुआ है। तब से कृष्ण का एक नाम ब्रज दूल्हा पड़ गया।

गौरी कटारा, मंदिर पुजारी

 

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