Plasma Donation: मिथकों ने रोके कदम, अब तक महज 50 लोगों ने किए प्लाज्मा डोनेट, जान लें क्या है सच
Plasma Donation ब्लड बैंक की टीम कर रहे लोगों को जागरूक कोविड अस्पतालों के बाहर लगा रहे पोस्टर। 23 मई को पहली बार शहर में हुआ था प्लाज्मा डोनेट।
आगरा, जागरण संवाददाता। ताजनगरी में कोरोना संक्रमितों का ग्राफ जितनी तेजी से ऊपर जा रहा है, उतनी तेजी से उसके ठीक होने वालों की भी संख्या है। गंभीर मरीजों के लिए कोरोना से जंग जीत चुके लोगों का प्लाज्मा काफी लाभदायक है, परंतु मिथकों के कारण लोग प्लाज्मा डोनेट करने नहीं आ रहे हैं। शहर में अब तक केवल 50 लोगों ने ही प्लाज्मा डोनेट किया है, ठीक होने वालों की संख्या 4000 से ज्यादा है। एसएन मेडिकल कालेज ब्लड बैंक द्वारा लोगों को जागरूक करने के लिए कोविड अस्पतालों के बाहर पोस्टर भी लगाए गए हैं, काउंसलिंग भी की जा रही है।
क्या है प्लाज्मा थेरेपी?
कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के खून से कोरोना पीड़ित चार लोगों का इलाज किया जा सकता है।यह उपचार प्रणाली इस धारणा पर काम करती है कि वे मरीज जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इसके बाद नए मरीजों के खून में पुराने ठीक हो चुके मरीज का खून डालकर इन एंटीबॉडीज के जरिए नए मरीज के शरीर में मौजूद वायरस को खत्म किया जाता है। कोरोना से ठीक हो चुके व्यकि्त के शरीर से 14 दिन बार प्लाज्मा लिया जाता है।रोगी का कोरोना टेस्ट एक बार नहीं, बल्कि दो बार किया जाएगा। इतना ही नहीं ठीक हो चुके मरीज का एलिजा टेस्ट भी किया जाएगा ताकि यह पता चल सके कि उसके शरीर में एंटीबॉडीज की मात्रा कितनी है। इसके अलावा प्लाज्मा देने वाले व्यक्ति की पूरी जांच की जाती है कि कहीं उसे कोई और बीमारी तो नहीं है।
यह हैं मिथक
- एक बार एंटी बॉडी प्लाज्मा के रूप में निकाल ली तो हम जल्दी-जल्दी बीमार होंगे।
- प्लाज्मा निकालने से कोरोना फिर से हो सकता है।
- शरीर में कमजोरी आ जाएगी, आम जिंदगी नहीं जी पाएंगे।
- एसएन मेडिकल कालेज में नहीं आना चाहते हैं, डरते हैं कि संक्रमित हो जाएंगे।
- खून के सारे जरूरी तत्व प्लाज्मा के साथ ही निकल जाते हैं, रोग प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाएगी।
सच
- खून में से सिर्फ प्लाज्मा ही लिया जाता है, बाकी के सारे तत्व खून में ही रहते हैं।
- सामान्य रूप में भी शरीर से एंटी बॉडी चार महीने बाद खत्म हो जाती हैं।इसे शरीर में सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है, इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता मेमोरी सेल मजबूत करते हैं।इसे लैब में एक साल के लिए प्रिजर्व रखा जा सकता है।
- एसएन मेडिकल कालेज में कोविड अस्पताल अलग है और ब्लड बैंक अलग है।दिन में कई बार सेनिटाइजेशन किया जाता है।
तीन डोनर बार-बार कर रहे प्लाज्मा डोनेट
आगरा में पहली बार डा. आरके सिंह ने प्लाज्मा डोनेट किया था।उसके बाद अब तक 50 लोग प्लाज्मा डोनेट कर चुके हैं।शुक्रवार को पांच लोगों ने प्लाज्मा डोनेट किया, स्त्री एवं प्रसूति विभाग के डा. लोकेश त्रिपाठी 50वें डोनर बने। शहर के ही तीन लोग एेसे हैं, जो बार-बार प्लाज्मा डोनेट कर रहे हैं।
जागरूकता के लिए लगा रहे पोस्टर
एसएन मेडिकल कालेज ब्लड बैंक प्रभारी डा. नीतू चौहान ने बताया कि लोग डर रहे हैं, डर को खत्म करने के लिए ही कोविड अस्पतालों के बाहर पोस्टर लगाए जा रहे हैं। इन पोस्टरों पर सारी जानकारी उपलब्ध कराई गई है। फोन पर भी कोरोना से ठीक हो चुके लोगों की काउंसलिंग की जाती है।प्लाज्मा डोनेट करने वालों को मैडल और सर्टिफिकेट भी दिया जाता है। स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल द्वारा प्लाज्मा डोनेट कर चुके लोगों को एक अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस पर सम्मानित किया जाएगा।