अक्षय तृतीया कल तो परशुराम जयंती आज कैसे? हर संशय दूर करेगी ये खबर

Parshuram Jayanti 2020 परशुराम जयंती को लेकर रही संशय की स्थिति। भगवान परशुराम की तपोभूमि है रुनकता।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sat, 25 Apr 2020 03:04 PM (IST) Updated:Sat, 25 Apr 2020 03:04 PM (IST)
अक्षय तृतीया कल तो परशुराम जयंती आज कैसे? हर संशय दूर करेगी ये खबर
अक्षय तृतीया कल तो परशुराम जयंती आज कैसे? हर संशय दूर करेगी ये खबर

आगरा, आदर्श नंदन गुप्‍त। महर्षि परशुराम की जयंती अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। इस वर्ष भी यह रविवार को मनाई जाएगी, लेकिन उदया तिथि को लेकर संशय की स्थिति होने के कारण कुछ लोगों ने शनिवार को भी जयंती मनाई। ज्योतिषाचार्य डॉ अरविंद मिश्रा के अनुसार शनिवार को अक्षय तृतीया दोपहर 11:00 बजे बाद शुरू हुई है। रविवार को दोपहर एक बजे तक रहेगी। अधिकांश लोग उदया तिथि के आधार पर ही पर्व और उत्सव मनाते हैं। इसलिए रविवार को ही पूजन होगा। महर्षि परशुराम जयंती महोत्सव समिति के समन्वयक जुगल किशोर शर्मा के अनुसार रविवार को ही घर- घर में दीप जलाए जाएंगे। वहीं रुनकता स्थित परशुराम मन्दिर में जयंती पूजन रविवार को ही होगा।

जानिए क्‍या है आगरा के रुनकता और परशुराम का रिश्‍ता

आगरा- मथुरा राजमार्ग पर आगरा शहर से लगभग 15-16 किलोमीटर मार्ग दूर मथुरा  जाते समय दांयीं ओर सड़क से लगभग 5-6 किलामीटर अन्दर यमुना नदी के यह पवित्र स्थल है। जिसे महर्षि परशुराम की माता रेणुका के नाम से रुनकता कहा जाता है। यहांं पर महर्षि परशुराम, माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि का प्राचीन मंदिर है। साथ में कामधेनु गाय और कुबेर की प्रतिमाएं स्थापित हैंं। बताया जाता है कि यह मूर्तियांं ईसा पूर्व की हैंं। देवालय के बाहर एक खम्बे पर उत्कृष्ट वास्तुकला कला प्रदर्शित करती मूर्तियां बनी हुई हैंं। सामने ही छोटी-सी नंदी की मूर्ति स्थापित है। पत्थर के खंभे के बारे में अनुमान है कि यह 8 वीं अथवा 9वीं सदी के होगें। 

क्‍या है मान्‍यता

पौराणिक तथ्यों के अनुसार जमदग्नि बहुत तपस्वी ऋषि हुए। उनकी पत्नी रेणुका थीं। रेणुका के चार पुत्र हुए, जिनमें सबसे छोटे पुत्र परशुराम थे, जो अत्यन्त ही क्रोधी और पराक्रमी थे। जमदग्नि और माता रेणुका मन्दिर के पश्चिम में ही भगवान परशुराम की मूर्ति हैं। इस मंदिर की उत्तर दिशा वाली प्राचीन दीवार से यमुना जी लहरें टकराती रहती हैं। वर्ष 1978 की बाढ़ में यमुना का पानी मन्दिर में प्रवेश कर गया। मंदिर के पिछवाड़े दीवार गिर गई थी।

क्या कहते हैं इतिहासकार

डॉ भीमराव आंबेडकर विवि के इतिहासविद प्रो सुगम आनंद के अनुसार इस स्थल के बारे में किवदन्ती है कि जन्मस्थली है, लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। इसी प्रकार सेंट जॉन्स कॉलेज के पूर्व इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ, आरसी शर्मा का कहना है कि इतिहासकार केएम मुंशी महर्षि परशुराम के जन्म को गुजरात में बताते हैं जबकि आगरा के लोगों की मान्यता है कि परशुराम का जन्म रुनकता में हुआ था। इसकी कोई ऐतिहासिक प्रमाणिकता नहीं है। इतिहासविद राजकिशोर राजे का कहना है जन्मस्थली का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नही, लेकिन पुराणों में उल्लेख है कि महर्षि परशुराम और जमदग्नि ने कैलाश मन्दिर में शिवलिंग की स्थापना की थी। 

यह तो तपोस्थली है। महर्षि परशुराम के मन्दिर के अलावा ऋषि का टीला, चामुंडा मन्दिर, केदारनाथ  आश्रम आदि  पवित्र स्थल हैं। जिसकी ओर शासन, प्रशासन का ध्यान नही है।

ब्रज मोहन शर्मा, मन्दिर व्यवस्थापक

रविवार की सुबह महर्षि परशुराम की जयंती पर लॉकडाउन की वजह से वे अभिषेक, पूजन करके प्रसाद लगाएंगे। वे प्रतिदिन पूजा, अर्चना मन्दिर में करते हैं।

गोकर्ण पांडे, मन्दिर महंत

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