Mudiya Mahotsav 2020: स्‍वर्णिम इतिहास है 464 साल पुरानी परंपरा का, इस वजह से कहते हैं लक्‍खी मेला

Mudiya Mahotsav 2020 01 से 05 जुलाई तक होगा मेला का आयोजन। गौड़ीय संत सिर मुढाकर भजन संकीर्तन के साथ मानसीगंगा की परिक्रमा कर परंपरा का निर्वहन करेंगे।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Wed, 01 Jul 2020 03:06 PM (IST) Updated:Wed, 01 Jul 2020 03:06 PM (IST)
Mudiya Mahotsav 2020: स्‍वर्णिम इतिहास है 464 साल पुरानी परंपरा का, इस वजह से कहते हैं लक्‍खी मेला
Mudiya Mahotsav 2020: स्‍वर्णिम इतिहास है 464 साल पुरानी परंपरा का, इस वजह से कहते हैं लक्‍खी मेला

आगरा, रसिक शर्मा। विश्व प्रसिद्ध मुड़िया पूर्णिमा मेला संत सनातन की भक्ति और संस्कृति का अद्भुत मिलन है। श्रद्धा के सागर गोवर्धन में मचलती विभिन्न संस्कृति की लहरें और बेतादाद श्रद्धा का अनवरत प्रवाह ही उत्तर भारत के विशाल राजकीय मुड़िया पूर्णिमा मेला की परिभाषा है। इक्कीस किमी परिक्रमा मार्ग में पांच दिनों तक अटूट मानव श्रृंखला मिनी विश्व का नजारा पेश करती आई है। ये मेला गौड़ीय संत सनातन की स्वर्णिम भक्ति का दिव्य इतिहास समेटे है। आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को ही गुरू पूर्णिमा, मुड़िया पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 464 वां मुड़िया महोत्सव मनाया जाएगा। धार्मिक इतिहास के पन्नोंं पर गोवर्धन महाराज की भक्ति बिखेरती भक्त सनातन की परंपरा की मुड़िया शोभायात्रा 5 जुलाई को निकाली जाएगी। कोरोना काल के चलते प्रमुख संत मंदिर में एकत्र होकर सिर मुड़वाएंगे, उसके उपरांत मानसीगंगा में स्नान कर सनातन गोस्वामी के चित्रपट के साथ मानसीगंगा की परिक्रमा लगाएंगे।

इतिहास के पन्नों से संत सनातन 

आषाढ़ पूर्णिमा को ही मुड़िया पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार पश्चिम बंगाल के रामकेली गांव, जिला मालदा के रहने वाले सनातन गोस्वामी पश्चिम बंगाल के राजा हुसैन शाह के यहां मंत्री पद पर कार्य करते थे। चैतन्य महाप्रभु की भक्ति से प्रभावित होकर सनातन गोस्वामी उनसे मिलने बनारस आ गए। चैतन्य महाप्रभु की प्रेरणा से ब्रजवास कर भगवान कृष्ण की भक्ति करने लगे। ब्रज में विभिन्न स्थानों पर सनातन भजन करते थे। वृंदावन से रोजाना गिरिराज परिक्रमा करने गोवर्धन आते थे। यहां चकलेश्वर मंदिर के प्रांगण में बनी भजन कुटी उनकी साधना की गवाह बनी हुई है। मान्यता है कि सनातन जब वृद्ध हो गए, तो गिरिराज प्रभु ने उनको दर्शन देकर शिला ले जाकर परिक्रमा लगाने को कहा। मुड़िया संतों के अनुसार 1556 में सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन हो जाने के बाद गौड़ीय संत एवं ब्रजजनों ने सिर मुंडवाकर उनके पार्थिव शरीर के साथ सात कोसीय परिक्रमा लगाई। तभी से गुरु पूर्णिमा को मुड़िया पूर्णिमा के नाम से जाना जाने लगा। आज भी सनातन गोस्वामी के तिरोभाव महोत्सव पर गौड़ीय संत एवं भक्त सिर मुड़वाकर मानसीगंगा की परिक्रमा कर परंपरा का निर्वहन करते हैं।

दो- दो शोभायात्राएं

वक्त के बदलते परिदृश्य में दो स्थानों से मुड़िया शोभायात्रा निकाली जाती है। सुबह राधा श्याम सुंदर के महंत रामकृष्ण दास के नेतृत्व में और शाम को महाप्रभु मंदिर के महंत गोपालदास के नेतृत्व में मुड़िया शोभा यात्रा निकाली जाएगी। दोनों शोभा यात्राओं में करीब पांच सौ संत सहभागिता निभाते चले आए हैं हालांकि कोरोना संक्रमण के कारण इस बार सिर्फ प्रतीकात्मक महोत्सव मनेगा। पूर्व में गौड़ीय परंपरा के विदेशी भक्त और महिला भक्त भी इस परंपरा में शामिल होते आए हैं।

भक्ति के समंदर में डूब जाता है गोवर्धन पर्वत

गोवर्धन पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात स्वरूप मानकर भक्त गिरिराजजी नाम से बुलाते हैं। इनकी 21 किमी की परिक्रमा है, श्रद्धालु अनवरत परिक्रमा करता रहते है। मुड़िया पूर्णिमा मेला पर बेतादाद श्रद्धा का प्रवाह गोवर्धन की तरफ होता है। मुड़िया पूर्णिमा मेला पांच दिन चलता है, जोकि इसबार 01 से 05 जुलाई तक चलेगा। इस मेला में करीब एक करोड़ श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान होता है। लेकिन कोरोना काल के कारण प्रशासन, मुड़िया महंत और स्थानीय लोग मेले की भव्यता से दूर रहना चाहते हैं। 

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