Holi Special: हाेलिका दहन के बाद शुरू होता है यहां लठामार होली का सिलसिला

बांकेबिहारी मंदिर क्षेत्र के दुसायत में लठामार होली के बाद ये सिलसिला करीब दस दिन तक लगातार शहर के अलग- अलग इलाकों में बड़े उल्लास पूर्वक मनाया जाता है।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Mon, 04 Mar 2019 03:42 PM (IST) Updated:Mon, 04 Mar 2019 03:42 PM (IST)
Holi Special: हाेलिका दहन के बाद शुरू होता है यहां लठामार होली का सिलसिला
Holi Special: हाेलिका दहन के बाद शुरू होता है यहां लठामार होली का सिलसिला

आगरा, जेएनएन। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाभूमि वृंदावन में वसंत पंचमी से रंगों की होली शुरू होती है। तो होलिका दहन के दस दिन बाद गली मुहल्लों और मंदिर क्षेत्रों में लठामार होली की शुरूआत होती है। होली के दूसरे दिन बांकेबिहारी मंदिर क्षेत्र के दुसायत में लठामार होली के बाद ये सिलसिला करीब दस दिन तक लगातार शहर के अलग- अलग इलाकों में बड़े उल्लास पूर्वक मनाया जाता है। महिलाएं गोपी रूप रखकर ग्वाल रूप में आए पुरुषों पर जमकर लाठी भांजती हैं और युवक भी महिलाओं के डंडे खाने के बाद खुश और उल्लास मय नजर आते हैं। इस दौरान महिलाओं की ओर से रसिया गायन की परंपरा भी पुरानी है।

वृंदावन ब्रजभूमि की राजधानी के रूप में जाना जाता है और यहां की परंपरा भी पूरे ब्रज में निराली हैं। ब्रज में होली का आगाज भले ही वसंत पंचमी से होता है। लेकिन रंगीली होली की शुरूआत बरसाना की लठामार होली से होती है और होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी तक ही रंगों की होली मनाई जाती है। लेकिन वृंदावन में वसंत से शुरू होने वाली होली होलिका दहन के बाद भी जारी रहती है। हालांकि होलिका दहन के बाद धुलेंडी तक रंगों की होली होती है। इसके बाद शुरू होता है लठामार होली का सिलसिला। धुलेंडी के दिन शाम को बांकेबिहारी मंदिर के समीप दुसायत मुहल्ले में लठामार होली का आयोजन प्राचीन परंपरा के अनुसार होता है। लठामार होली भले ही बरसाना जैसी ख्याति नहीं हासिल कर पाई है। लेकिन परंपरा पुरानी है। यहां महिलाएं ब्रजगोपियों का रूप रखकर तो युवक भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में होली खेलते हैं। महिलाएं भगवान श्रीकृष्ण के साथ होली की शुरूआत रसिया गायन के साथ करती हैं और फिर चलते हैं लठ। होली खेल रहे युवाओं के साथ आसपास से गुजर रहे लोगों में भी जमकर लठ पड़ते हैं और वे राहगीर व श्रद्धालु हुरियानों की इस लाठी को होली का प्रसाद रूप मानकर खुशी से इन प्रहारों को सहते हैं और होली के आनंद में मदमस्त नजर आते हैं। दुसायत के बाद शहर के अलग-अलग इलाकों में हर दिन लठामार होली का सिलसिला जारी रहता है। इसीलिए कहते हैं जग होरी ब्रज होरा। 

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