Holi in Braj: अनूठी है बिहारीजी में परंपरा, ऐसा है यहां का दस दिनों का रंगोत्‍सव Agra News

दस दिन तक अलग-अलग इलाकों में उल्लास से मनता है पर्व। महिलाएं करती हैं रसिया गायन की परंपरा का निर्वहन।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Fri, 28 Feb 2020 05:24 PM (IST) Updated:Fri, 28 Feb 2020 05:24 PM (IST)
Holi in Braj: अनूठी है बिहारीजी में परंपरा, ऐसा है यहां का दस दिनों का रंगोत्‍सव Agra News
Holi in Braj: अनूठी है बिहारीजी में परंपरा, ऐसा है यहां का दस दिनों का रंगोत्‍सव Agra News

आगरा, जेएनएन। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाभूमि वृंदावन वसंत से रंगों की होली शुरू होती है। तो होलिका दहन के दस दिन बाद गली मुहल्लों और मंदिर क्षेत्रों में लठामार होली की शुरूआत होती है। होली के दूसरे दिन बांकेबिहारी मंदिर क्षेत्र के दुसायत में लठामार होली के बाद ये सिलसिला करीब दस दिन तक लगातार शहर के अलग-अलग इलाकों में बड़े उल्लास से मनाया जाता है। महिलाएं गोपी रूप रखकर ग्वाल रूप में आए पुरुषों पर जमकर लाठी भांजती हैं। युवक भी महिलाओं के डंडे खाने के बाद खुश और उल्लास मय नजर आते हैं। महिलाओं की ओर से रसिया गायन की परंपरा भी पुरानी है।

वृंदावन ब्रजभूमि की राजधानी के रूप में जाना जाता है। यहां की परंपरा भी पूरे ब्रज में निराली हैं। ब्रज में होली का आगाज भले ही वसंत पंचमी से होता है। लेकिन रंगीली होली की शुरुआत बरसाना की लठामार होली से होती है और होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी तक ही रंगों की होली मनाई जाती है। लेकिन वृंदावन में वसंत से शुरू होने वाली होली होलिका दहन के बाद भी जारी रहती है। हालांकि होलिका दहन के बाद धुलेंडी तक रंगों की होली होती है। इसके बाद शुरू होता है लठामार होली का सिलसिला। धुलेंडी के दिन शाम को बांकेबिहारी मंदिर के समीप दुसायत मुहल्ले में लठामार होली का आयोजन प्राचीन परंपरा के अनुसार होता है। लठामार होली भले ही बरसाना जैसी ख्याति नहीं हासिल कर पाई है। लेकिन परंपरा पुरानी है। यहां महिलाएं ब्रजगोपियों का रूप रखकर तो युवक भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में होली खेलते हैं। महिलाएं भगवान श्रीकृष्ण के साथ होली की शुरुआत रसिया गायन के साथ करती हैं और फिर चलते हैं ल_। होली खेल रहे युवाओं के साथ आसपास से गुजर रहे लोगों में भी जमकर लठ पड़ते हैं और वे राहगीर व श्रद्धालु हुरियानों की इस लाठी को होली का प्रसाद रूप मानकर खुशी से इन प्रहारों को सहते हैं और होली के आनंद में मदमस्त नजर आते हैं। दुसायत के बाद शहर के अलग-अलग इलाकों में हर दिन लठामार होली का सिलसिला जारी रहता है। इसीलिए कहते हैं जग होरी ब्रज होरा।

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