राम का किरदार निभाने से मिली राम कथा कहने की प्रेरणा और बन गए शांतिदूत Agra News

प्रख्यात कथावाचक देवकीनंदन ठाकुरजी आगरा की लीला में बन चुके हैं राम। आज भी याद हैं वो रामलीला का जयघोष।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Tue, 10 Sep 2019 12:59 PM (IST) Updated:Tue, 10 Sep 2019 12:59 PM (IST)
राम का किरदार निभाने से मिली राम कथा कहने की प्रेरणा और बन गए शांतिदूत Agra News
राम का किरदार निभाने से मिली राम कथा कहने की प्रेरणा और बन गए शांतिदूत Agra News

आगरा, आदर्श नंदन गुप्त। उत्तर भारत की प्रमुख रामलीला, उसकी ऐतिहासिक राम बरात, हाथी पर विराजे रघुनंदन श्रीराम की छवि निहारने को हर कोई लालायित था। श्रीराम का हाथी श्रद्धालुओं के समीप पहुंचता, राजा राम की जय के उद्घोष होने लगते। आरती उतारी गई और पुष्प वर्षा की गई। यह यादें आज भी प्रख्यात कथावाचक देवकीनंदन ठाकुरजी के जेहन में छिपी हुई हैं।

आगरा की इस प्रमुख रामलीला में ठाकुर देवकीनंदन राम के स्वरूप बने थे। तब एक सामान्य कलाकार की भूमिका निभाने वाले देवकीनंदन सहज स्वभाव से पूरी रामलीला कमेटी के प्रिय थे। रामलीला के मंचन में भी उनकी संवाद अदायगी और भावपूर्ण अभिनय दर्शकों को आज तक याद है।

देवकीनंदन से उनके वृंदावन स्थित शांतिसेवा धाम में मुलाकात की तो उन्होंने आगरा की रामलीला के अनुभव साझा किए। कहा कि तब उन्हें गजब की अनूभूति रही, जो लाखों लोग रामबरात देखने पहुंचे थे, उन सभी में राम के प्रति विशेष श्रद्धा थी। ऐसा लगता था जैसे सभी लोग भावनात्मक रूप से राम बरात में शामिल हैं। इसी तरह जब जनकपुरी में बरात गई तब वहां के लोगों ने जोशीला स्वागत किया, जैसे दूल्हे का किया जाता है। लोगों के मन में विशेष आस्था थी। कमेटी के महामंत्री श्रीभगवान अग्रवाल के बारे में उन्होंने कहा वे उनका हमेशा खास ध्यान रखते थे।

आसान नहीं था मुकुट धारण करना

आगरा की इस रामलीला का मुख्य आकर्षण था मुकुट, जो उस समय करीब तीन फुट ऊंचा था। जिसकी कारीगरी और शिल्प मनमोहक था। रामबरात के दिन मुकुट में ङिालमिलाता हुआ सूर्य लगाया गया था। मुकुट धारण करना आसान नहीं था। करीब पांच किलो वजनी मुकुट को करीब 12 घंटे तक पहनना मुश्किल था। लेकिन भगवान राम की कृपा से उनके जीवन को जीने के लिए वह कठिनाई भी आसान हो गई थी।

कम हो रही दर्शकों की संख्‍या

एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि अब आगरा की रामलीला में दर्शकों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। इस ओर आगरा की रामलीला कमेटी को ध्यान देना होगा। उसमें आकर्षण बढ़ाना होगा। हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए कि हमारे बच्चे रामायण पढ़ें, तभी उनमें संस्कार आएंगे।

वृंदावन में बनाया भव्य मंदिर

मथुरा के गांव ओहवा में 12 सितंबर 1978 को राजवीर शर्मा के पुत्र के रूप में जन्मे देवकीनंदन ठाकुर ने निंबार्क संप्रदाय के अनुयायी के रूप में गुरु-शिष्य परंपरा के तहत अपनी आध्यात्मिक शिक्षा दीक्षा ली है। 13 वर्ष की अल्पायु में ही देवकीनंदन ने श्रीमद् भागवत महापुराण को कंठस्थ कर लिया था। वर्तमान में देवकीनंदन ठाकुर का वृंदावन में छटीकरा रोड पर प्रियकांत जू का मंदिर कमल रूप में निर्मित है। विश्व शांति चेरीटेबिल ट्रस्ट का संचालन कर रहे हैं।

chat bot
आपका साथी