गोवंशों की सेवा को ब्रज में बिता दिए इरिन ने 42 वर्ष, अब 16 मार्च को देश दे रहा ये सम्‍मान

गोवर्धन के राधाकुंड की सुरभि गोशाला में 1800 गोवंश की मां बन सेवा में जुटी है इरिन फ्रेडरिक ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Sun, 10 Mar 2019 01:34 PM (IST) Updated:Sun, 10 Mar 2019 01:34 PM (IST)
गोवंशों की सेवा को ब्रज में बिता दिए इरिन ने 42 वर्ष, अब 16 मार्च को देश दे रहा ये सम्‍मान
गोवंशों की सेवा को ब्रज में बिता दिए इरिन ने 42 वर्ष, अब 16 मार्च को देश दे रहा ये सम्‍मान

आगरा, जेएनएन। जर्मन की रहने वाली गोभक्त इरिन फ्रेडरिक ब्रूनिंग को 16 मार्च को राष्ट्रपति भवन में पदमश्री सम्मान मिलेगा। इसके लिए उन्हें पत्र मिल चुका है। वह 15 मार्च को सम्मान के लिए दिल्ली रवाना होंगी, जहां उन्हें पहले सम्मान की रिहर्सल कराई जाएगी। सरकार की तरफ से दिल्ली में उनके रहने की व्यवस्था की जा रही है। उनको यह सम्मान गोवंश की सेवा के लिए दिया जा रहा है।

भारत की राजधानी दिल्ली में जर्मन दूतावास में कार्यरत पिता डेट्रिच ब्रूनिंग और मां ओजोला ब्रूनिंग की इकलौती संतान अपना वैभवपूर्ण जीवन छोड़ बीमार और असहाय गोवंश की सेवा में जुटी है। भारत सरकार द्वारा उनकी सेवा को पद्मश्री से सम्मानित किया जा है।

फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग 19 साल की उम्र में ही दुनिया भर के तमाम देशों की यात्रा पर निकलीं और 1977 में भारत पहुंची। भारत पहुंचने पर ऋषिकेश में उन्‍होंने योग और भगवान की साधना की। 1981 में वह गोवर्धन के राधाकुंड पहुंची और किशोरी किशोर आनंद उर्फ तीन कौड़ी गोस्वामी से दीक्षा प्राप्त कर भक्ति में लीन रहने लगीं। पैदल परिक्रमा और हरिनाम संकीर्तन में रम गईं। गायों के प्रति आत्मीयता जाग उठी तो वह गोवंश की 'मदर टेरेसा' बन सेवा करने लगीं और अपना नाम बदलकर सुदेवी रख लिया है।

राधाकुंड में 42 वर्षों से बीमार और असहाय गोवंश की सेवा में जुटी सुदेवी को गोवंश की मदर टेरेसा भी कहा जाता है। उनकी सुरभि गोशाला में करीब 1800 गोवंश हैं, जिनमें से अधिकांश अपाहिज, नेत्रहीन और गंभीर रूप से बीमार हैं। गोशाला की एंबुलेंस भी है। गोमाता के दूध को सुदेवी अपने निजी कार्य में नहीं लेतीं। बछड़े से बचे हुए दूध को अन्य अनाथ बछड़ों को पिलाया जाता है। गोवंश की जिंदगी बचने की संभावना नगण्य प्रतीत होती हैं, तो सुदेवी गोवंश को गंगाजल, राधाकुंड का जल, भगवान का चरणामृत पिलाती हैं। समीप हरे कृष्ण- हरे राम की धुन बजती है। मृत्यु उपरांत गोवंश का विधि विधान से अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। गोवंश की सेवा में 32 लाख रूपए महीने का खर्च आता है।

गोबर खरीदा जाए

सुदेवी कहती हैं सम्मान के समय सरकार से अनुरोध करेंगी कि प्रत्येक गांव में गोबर खरीदने का सेंटर खोलना चाहिए। जिससे आर्थिक स्थिति के कारण लोग गोवंश को दूध बंद होने पर छोड़े नहीं। इस गोबर का खाद बनाकर किसानों को दिया जाए। इससे न सिर्फ गोवंश का पालन होगा, बल्कि फसल भी स्वास्थ्य वर्धक मिलेगी। 

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