Kargil Vijay Diwas: बलिदानियों के सपूतों के दिलों में धधक रही बदले की ज्वाला
Kargil Vijay Diwas बलिदानी सोरन सिंह का जांबाज बेटा रोहित लेह में आज सीना तानकर दुश्मन पर हमला करने को संगीन थामे खड़ा है तो रविकरन का लाल शैलेंद्र सीमा पर जाने का आधा सफर अब तक तय कर चुका है।
आगरा, मनोज चौधरी। अपने लहू से कारगिल जंग की वीरगाथा लिखने वाले बलिदानियों की वीरनारियों ने भी अपने लाड़लों के दिलों में दुश्मन से बदले की जो चिंगारी भड़काई थी, उसे ज्वालामुखी में बदलने का काम सपूतों ने किया है। बलिदानी सोरन सिंह का जांबाज बेटा रोहित लेह में आज सीना तानकर दुश्मन पर हमला करने को संगीन थामे खड़ा है तो रविकरन का लाल शैलेंद्र सीमा पर जाने का आधा सफर अब तक तय कर चुका है। उसका भी सपना देश के दुश्मन को मार गिराने का है।
वतन के दुश्मनों को वर्ष 1999 में जब चुनचुन कर जांबाज अपनी गोलियों का शिकार बना रहे थे। मथुरा के नगरिया (पैंठा गांव) की माटी का लाल सोरन सिंह और गांव नवाली का शेर रविकरन भी कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों के बीच दहाड़ रहा था। सरहद पार दुश्मन को मार- मार कर खदेड़ रहे कान्हा की नगरी के ये दोनों लाल मां भारती के चरणों में अपना बलिदान देकर अमर हो गए। जब वीरनारियों की मांग का सिंदूर मिटा तो दुश्मनों से बदला लेने की उन्होंने सौगंध भी ली। आज वही सौगंध सोरन सिंह की वीरनारी कमलेश कुंतल ने पूरी कर दी। अपने कलेजे के टुकड़े को दुश्मन को उसी की भाषा में मुंहतोड़ जवाब देने के लिए सरहद पर भेज दिया। वीरनारी का छोटा सपूत रोहित की आंखे लेह की दुर्गम पहाड़ियों में दुश्मन को तलाश रही हैं। कमलेश कुंतल कहती है कि उनका संकल्प पूरा हो गया है। अपने बेटे को देश की रक्षा पर कुर्बानी होने संस्कार देकर सेना में भेज दिया है। रोहित का बड़ा भाई विवेक गैस एजेंसी का संचालन कर रहा है। बिटिया डोली का विवाह कर दिया। रोहित के साथ कंधा से कंधा मिलाकर सरहद पर दुश्मन को सबक सिखाने के लिए रविकरन का लाल शैलेंद्र चौधरी दिन-रात एक किए हुए हैं। सेना की शारीरिक और चिकित्सकीय परीक्षा पास कर वह सेना में जाने का आधा सफर तय कर चुका है। शैलेंद्र की आज के ही दिन लिखित परीक्षा आगरा में होनी थी, पर काेरोना के कारण टल गई। लिखित परीक्षा पास करने को वह रोहतक से कोचिंग लेकर आया है और अब मथुरा में ले रहा है। वीरनारी विमलेश कहती हैं, बेटी नीतू चौधरी की भी तमन्ना थी, वह भी सेना में जाएं। उसकी जांबाज बेटी को यह मौका न मिला सका, लेकिन वह दिन-रात अपने बेटे के लिए यह मौका देने की प्रार्थना ईश्वर से कर रहीं हैं। आज विमलेश की आंखे नम थी, पर खुशी इस बात की भी थी, बिटिया के पिता ने चार जुलाई को अपना बलिदान दिया था। इसी पांच जुलाई को उसकी बिटिया को ग्रामीण बैंक आफ आर्यावर्त में ज्वाइनिंग मिल गई।