सालिग्राम शिला से प्रकट होंगे ठा. राधारमणलाल जू, मंदिर में चल रहीं तैयारियां

शनिवार को प्राकट््योत्सव पर आज होगा पंचगव्य से महाभिषेक। रसोई में बना प्रसाद होगा अर्पित।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Fri, 17 May 2019 08:08 PM (IST) Updated:Fri, 17 May 2019 08:08 PM (IST)
सालिग्राम शिला से प्रकट होंगे ठा. राधारमणलाल जू, मंदिर में चल रहीं तैयारियां
सालिग्राम शिला से प्रकट होंगे ठा. राधारमणलाल जू, मंदिर में चल रहीं तैयारियां

आगरा, जेएनएन। साधकों की भूमि वृंदावन में संतों ने अपनी साधना के बल पर न केवल प्राणी मात्र को प्रभावित किया। बल्कि आराध्य भी साधकों के वशीभूत हो भक्तों का कल्याण करने के लिए देव रूप में प्रकट हुए हैं। स्वामी हरिदास के लढ़ैते ठा. बांकेबिहारीलाल ही नहीं आचार्य गोपाल भट्ट की साधना से प्रसन्न होकर ठा. राधारमणलाल जू ने भी सालिग्राम शिला से देव स्वरूप लिया। गोपाल भट्ट द्वारा सेवित राधारमणलाल जू की सेवा पूजा उनके वंशज ही विधिविधान पूर्वक राधारमण मदिर में कर रहे हैं।

सप्तदेवालयों में प्रमुख राधारमण मंदिर में शनिवार को ठाकुरजी का प्राकट््योत्सव उल्लास पूर्वक मनाया जाएगा। आज से 477 साल पहले चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी के प्रेम के वशीभूत होकर ठा. राधारमणलाल जू सालिग्राम शिला से प्रकट हुए। वैशाख शुक्ला पूर्णिमा की भोर में सालिग्राम शिला से राधारमणदेव जू का प्राकट््य हुआ। सालिग्राम शिला द्वारा देवरूप लेने से पहले गोपाल भट्ट गोस्वामी सालिग्राम शिला का विधिविधान पूर्वक पूजन करते रहे। मंदिर सेवायत और गोपाल भट्ट गोस्वामी के शिष्य दामोदर गोस्वामी के वंशज पद्मनाभ गोस्वामी बताते हैं गोपाल भट्ट गोस्वामी को अपने आराध्य सालिग्राम शिला में ही गोङ्क्षवददेव जी का मुख, गोपीनाथजी का वक्षस्थल और मदनमोहनजी के चरणारङ्क्षवद के दर्शन की अत्यंत उत्कंठा थी। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा के दिन जब भक्त प्रहृलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान नृङ्क्षसहदेव प्रकट हुए तो गोपाल भट्ट गोस्वामी ने अपने आराध्य से कहा क्या मेरा भी ऐसा सौभाग्य होगा, इस सालिग्राम शिला से प्राकट््य रूप के दर्शन कर सकूंगा। भक्त की वेदना प्रभु से छिपी नहीं रही और वैशाख शुक्ला पूर्णिमा की भोर में ठा. राधारमणदेव सालिग्राम शिला से प्रकट हुए।

मंदिर की रसोई का प्रसाद ही होता अर्पित

राधारमण मंदिर में 400 साल पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी हो रहा है। यहां बाहर का प्रसाद ठाकुरजी को अर्पित नहीं किया जाता। मंदिर रसोई में सेवायत खुद ही ठाकुरजी का प्रसाद तैयार कर अर्पित करते हैं। बाहर के किसी व्यक्ति को रसोई में प्रवेश भी वर्जित है।

माचिस का नहीं होता उपयोग

मंदिर की परंपरा के अनुसार किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं होता। पिछले 400 साल से प्रज्ज्वलित अग्नि की मदद से ही रसोई समेत अनेक कार्यों का संपादन सेवायतों द्वारा किया जाता है।

आज होगा महाभिषेक

ठा. राधारमण देव का प्राकट््योत्सव शनिवार को धार्मिक अनुष्ठानों के साथ होगा। प्रात:काल वैदिक ऋचाओं के मध्य श्रीविग्रह का 2100 किलो दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, पंचगव्य, सर्वाषौधि, गंधाष्टक, बीजाष्टक समेत 54 जड़ी-बूटियोंसे महाभिषेक कराया जाएगा।

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