जैसी मनुष्य की सोच होती है, वैसा ही उसका व्यक्तित्व होता है

जैसा भाव या विचार वैसा ही जीवन। अच्छे विचारों का चयन कर जीवन को उन्नत और बुरे विचारों का चयन कर जीवन को अवनत किया जा सकता है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Thu, 21 Jul 2016 10:41 AM (IST) Updated:Thu, 21 Jul 2016 10:44 AM (IST)
जैसी मनुष्य की सोच होती है, वैसा ही उसका व्यक्तित्व होता है
जैसी मनुष्य की सोच होती है, वैसा ही उसका व्यक्तित्व होता है

जैसी मनुष्य की सोच होती है, वैसा ही उसका व्यक्तित्व होता है। तभी तो कामना की गई है कि मेरा मन शुभ संकल्प वाला हो। मन संकल्प और विकल्प से परिपूर्ण है। उसमें परस्पर विरोधी भाव उत्पन्न होते रहते हैं। मन में अच्छे विचार आते हैं, तो बुरे विचार भी आते हैं। बुरे विचार आते हैं, तो उसमें विरोधी विचार यानी अच्छे विचार भी अवश्य उत्पन्न होते हैं। मन में उठने वाले विचारों पर नियंत्रण कर हम जीवन को मनचाहा आकार दे सकते हैं।
जैसा भाव या विचार वैसा ही जीवन। अच्छे विचारों का चयन कर जीवन को उन्नत और बुरे विचारों का चयन कर जीवन को अवनत किया जा सकता है। प्राय: कहा जाता है कि पुरुषार्थ से ही कार्य सिद्ध होते हैं। मन की इच्छा से नहीं। बिल्कुल ठीक बात है, लेकिन मनुष्य पुरुषार्थ कब करता है और किसे कहते हैं पुरुषार्थ? पहली बात तो यह है कि इच्छा के बगैर पुरुषार्थ भी असंभव है। मनुष्य में पुरुषार्थ करने की इच्छा भी किसी न किसी भाव से ही उत्पन्न होती है और भाव मन द्वारा उत्पन्न और संचालित होते हैं। इसलिए सकारात्मक विचार ही पुरुषार्थ को संभव बनाता है। पुरुषार्थ के लिए उत्प्रेरक तत्व मन ही है। कई व्यक्तितथाकथित पुरुषार्थ तो करते हैं, फिर भी सफलता से कोसों दूर रहते हैं। लक्ष्य-प्राप्ति पुरुषार्थ पर नहीं मन की इच्छा पर निर्भर है। कालिदास कहते हैं कि मनोरथ के लिए कुछ भी अगम्य नहीं है। इच्छाएं ही हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। सफलता प्रदान करने में सकारात्मक इच्छाएं कारगर साबित होती हैं। वस्तुत: जैसी आपकी इच्छाएं होंगी वैसा परिणाम।
कल्पवृक्ष मनचाही वस्तु ही नहीं देता, बल्कि आनंद का अनुपम स्रोत भी है हमारा मन। आनंद भी मन का एक भाव है। भौतिक सुख-सुविधाओं में आनंद नहीं है, यदि मन प्रसन्न नहीं। मन के प्रसन्न होने पर आर्थिक समृद्धि या भौतिक सुख-सुविधाओं में कमी होने पर भी आनंद ही आनंद है। सुख-समृद्धि और आनंद दोनों ही प्राप्त करने के लिए मन की उचित दशा या इसकी सकारात्मक भावधारा का निर्माण करना अनिवार्य है। जिस दिन मन को नियंत्रित कर उसे सकारात्मकता प्रदान करना सीख जाएंगे, पारस पत्थर हाथ में आ जाएगा। कल्पवृक्ष बनते देर नहीं लगेगी। मनोविज्ञान के अनुसार जो व्यक्ति जैसा सोचता है, वैसा ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। फिर देर किस बात की सकारात्मक सोच को मन में प्रश्रय देकर जीवन में आगे बढ़ें, आपको कामयाबी नसीब होगी।

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