जीवन में समता यानी संतुलन बहुत जरूरी है

जीवन में समता यानी संतुलन बहुत जरूरी है, लेकिन अधिकांश लोगों का जीवन असंतुलित बना हुआ है। हमने एक ऐसी मानसिक स्थिति का निर्माण कर रखा है कि सुख की स्थिति आने पर हम खुशी से उछल जाते हैं और दुख की स्थिति में मानो मुरझा जाते हैं जबकि हमें

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 08 Jul 2015 11:25 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jul 2015 11:27 AM (IST)
जीवन में समता यानी संतुलन बहुत जरूरी है
जीवन में समता यानी संतुलन बहुत जरूरी है

जीवन में समता यानी संतुलन बहुत जरूरी है, लेकिन अधिकांश लोगों का जीवन असंतुलित बना हुआ है। हमने एक ऐसी मानसिक स्थिति का निर्माण कर रखा है कि सुख की स्थिति आने पर हम खुशी से उछल जाते हैं और दुख की स्थिति में मानो मुरझा जाते हैं जबकि हमें हर स्थिति में एक सा रहना चाहिए। सुख के साथ अहं और दुख के साथ हीनता की ग्रंथि जुड़ जाती है जो हमारे दुखों का मूल है। दुखी व्यक्ति हीन भावना से ग्रस्त होता है और इतना ग्रस्त होता है कि वह निराशा का जीवन जीने लगता है। वह सोचता है, यह संसार मेरे जीने योग्य नहीं है। जीवन में मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। सारा जीवन बेकार है।

सुख के साथ अहं की ग्रंथि घुलती है और अब आदमी स्वयं को सम्राट मानकर जीता है। यह अहं भावना उसमें अनेक कुंठाएं पैदा करती हैं। निंदा होती है, आदमी घबरा जाता है, दुखी बन जाता है। प्रशंसा के दो शब्द सुनता है, खुशी से फूल जाता है तब उसे बोलने का पूरा विवेक नहीं रहता। वह अहंकार से ग्रस्त हो जाता है। इस प्रकार अनेक द्वंद्व हैं, जिनकी परिक्रमा हर इंसान कर रहा है। ये सारे द्वंद्व चित्त की स्थिति को विषम बनाए हुए हैं। चित्त की इस विषमता का नाम ही है संसार। हमारी अंतस-चेतना का सुझाव सदा समता की ओर रहता है, किंतु व्यवहार का गुरुत्वाकर्षण इतना तीव्र है कि वह विषमता की ओर खिंचता है।

जो व्यक्ति समता के साथ जीते हैं उन्हें महान आदर्श माना गया है। यह जिंदगी केवल सुख-सुविधाआंे के पीछे पागल बनकर खराब करने के लिए नहीं है। जीवन का लक्ष्य बहुत ऊंचा है। अपनी जिंदगी के उस दूरगामी और ऊंचे लक्ष्य को हमेशा याद रखें और उसी पर अपनी तीव्र दृष्टि टिकाए रखें। अगर इन छोटी-मोटी सुविधाओं को ही जीवन का सार मान लिया जाए तो अपने विपुल वैभव को आप कौड़ियों में गंवा बैठेंगे। अपने इस विपुल खजाने को आप पहचानें, जो प्रकृति से विरासत में मिला है। इस मनुष्य शरीर के साथ मिली महान दैवी शक्तियों का वास्तविक और सही-सही उपयोग तब होगा जब आप ऐसा ऊंचा लक्ष्य बनाएंगे जिसे पाकर इस मनुष्य जीवन का मिलना सार्थक हो जाए। याद रखें, जीवन की सार्थकता भौतिक वस्तुओं या पदार्र्थो के जरिये उपलब्ध नहीं हो सकती।

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