रंगों की भाषा

होली रंगों का त्योहार है और प्रत्येक रंग कुछ न कुछ संदेश देता है। इनका अपना आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। ये हमारे भीतर नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करते हैं। होली पर जानें रंगों की भाषा.. सूरज की किरणों में सात रंग होते हैं, जिन्हें ग्रंथों में सूय

By Edited By: Publish:Wed, 12 Mar 2014 11:57 AM (IST) Updated:Wed, 12 Mar 2014 12:31 PM (IST)
रंगों की भाषा
रंगों की भाषा

होली रंगों का त्योहार है और प्रत्येक रंग कुछ न कुछ संदेश देता है। इनका अपना आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। ये हमारे भीतर नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करते हैं। होली पर जानें रंगों की भाषा..
सूरज की किरणों में सात रंग होते हैं, जिन्हें ग्रंथों में सूर्यदेव के रथ में जुते सात घोड़ों के रूप में अभिव्यक्त किया गया है। कवि 'गेटे' सात रंगों और संगीत के सात सुरों को एकसमान मानते हैं। कवि रवींद्रनाथ ठाकुर वसंत पर्व के बारे में गीतांजलि में लिखते हैं-
आज वसंत द्वार पहुंचा है तुम्हारे
अपने अवगुंठित, कुंठित जीवन से
नहीं करो तिरस्कृत इसको।
होली पर हम सभी कुंठाओं और नकारात्मक विचारों का त्याग करें और मन को आध्यात्मिक रंगों से रंग दें।
अगर आप मन को आध्यात्मिक रंगों से रंगना चाहते हैं, तो पहले अपने अंदर के सभी विकारों, जैसे - ईष्र्या, द्वेष, लोभ, क्रोध आदि को खत्म करना होगा। दूसरों के प्रति समानता का भाव रखना होगा।
श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि सबके प्रति समानता का भाव ही ईश्वर की सबसे बड़ी पूजा है। महाभारत के अनुसार, जो व्यक्ति मन, वचन और कर्म से सभी लोगों के हित की बात सोचता है, वास्तव में वही आध्यात्मिक व्यक्ति है। गीता में उल्लेख है कि जो सबको एकसमान नजरों से देखता है, वही सच्चा योगी है।
वसंत पर्व के प्रति प्रेम प्रकट करने के लिए धर्म कभी दीवार नहीं बनता। तभी अमीर खुसरो कहते हैं-
अब यार तेरी। वसंत मनाई।।
मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर भी वसंतोत्सव के दीवाने थे। वह एक जगह सरसों के लहलहाते फूलों को देख कर गा पड़े-
सकल वनफूल।
बन रही सरसों।।
होली के दिन लोग सफेद कपड़े पहनते हैं। इसका भी एक आध्यात्मिक पहलू है। सफेद रंग में अन्य सभी रंग शामिल हैं, इसी तरह से प्रभु हम सब के अंदर हैं। जिस तरह सफेद रंग सभी रंगों का स्रोत है, उसी तरह से प्रभु या परमेश्वर सारी दुनिया के श्चोत हैं।
रंग मुख्य रूप से चार होते हैं-हरा, लाल, पीला, नीला। इन सभी सात्विक रंगों को मिलाकर ही अलग-अलग रंग बनाए जाते हैं। जहां हरा रंग शांति, संतुलन एवं आत्मीयता का प्रतीक है, वही लाल रंग स्फूर्ति, वेग और शक्ति प्रदान करता है। पीला रंग तनाव से मुक्ति देता है। नीला रंग महत्वाकांक्षा और विकास का प्रतीक है। यदि हम इन प्राकृतिक रंगों से होली खेलें, तो न सिर्फ शारीरिक, बल्कि हमारे मानसिक विकार भी दूर हो जाएंगे।
कुछ वर्षो पूर्व तक लोग टेसू के फूलों के रंग से होली खेलते थे और फाग गाते थे। इसीलिए हम होली को फगुआ भी कहते हैं। फाग गाते हुए ग्रामीण एक-दूसरे को उत्साहित करते थे-
मत बैठो वसंत निहारो रे।
उठ होली खेलो यारों रे।।
काले रंग का भी महत्व है। इस पर दूसरा कोई रंग नहीं चढ़ पाता है। सूरदास कहते हैं-
सूरदास प्रभु कारि कामरी चढ़ै न दूजो रंग।

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