ऐसे पाई संत तुकाराम ने माया से मुक्‍ति

इंसान जीवन पर्यन्‍त माया में फंसा रहता है पर हम आप को आज एक ऐसे संत के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्‍होंने माया से मुक्ति तो पाई पर औरों को भी उस मुक्ति द्वार के दर्शन करवाये।

By prabhapunj.mishraEdited By: Publish:Fri, 19 May 2017 01:03 PM (IST) Updated:Sat, 20 May 2017 04:17 PM (IST)
ऐसे पाई संत तुकाराम ने माया से मुक्‍ति
ऐसे पाई संत तुकाराम ने माया से मुक्‍ति

पुणे के एक गांव में हुआ था संत तुकराम का जन्‍म

तुकाराम का जन्म पुणे जिले के अंतर्गत देहू नामक गांव में हुआ था। तुकाराम 17वीं शताब्‍दी के एक महान संत थे। संत तुकाराम एक महान संत कवि थे। संत तुकाराम ने इस बात पर बल दिया है कि सभी मनुष्य परमपिता ईश्वर की संतान हैं और इस कारण समान हैं। संत तुकाराम द्वारा महाराष्ट्र धर्म का प्रचार हुआ जिसके सिद्धांत भक्ति आंदोलन से प्रभावित थे। महाराष्ट्र धर्म का तत्कालीन सामाजिक विचारधारा पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। 

एक गन्‍ना लेकर घर पहुंचे तुकाराम

संत तुकाराम एक बार शहर से लौट रहे थे। रास्ते में गन्ने के खेत के मालिक ने तुकाराम जी को देखा। प्रसन्न होकर उन्हें प्रणाम और तुकाराम जी को अपने खेत से गन्ने भेंट किए। तुकराम जी को रास्ते में कुछ गरीब भूखे लोगों मिले जिन्‍हें वो गन्ने दान देते गए। घर पहुंचते-पहुंचते उनके पास एक ही गन्ना रह गया। संत तुकाराम की पत्नी झगड़ालू थी। जैसे ही तुकाराम को आते देखा घर के बर्तनों का गंदा पानी सीधा तुकाराम जी के ऊपर डाल दिया। तुकाराम जी ने शांत चित्त से हंसते हुए घर में प्रवेश किया। 

पत्‍नी ने गन्‍ने से की तुकाराम की पिटाई

धर्मपत्नी की तरफ गन्ना बढ़ाते हुए कहा आज शहर से लौट रहा था तब गन्ने के खेत के मालिक ने मुझे दो-चार गन्ने थमा दिए। इसलिए ले आया हूं। यह बात सुनते ही धर्मपत्नी को क्रोध आ गया व तुरंत बोली दो-चार दिए और आप तो एक ही गन्ना लेकर आए हो बाकी के गन्ने कहां हैं। तुकाराम ने उत्तर दिया कि वे तो रास्ते में कुछ भूखे और गरीब लोगों में बांट दिए। धर्मपत्नी को गुस्सा आ गया। उसी गन्ने से तुकाराम को पीटने लगी। गन्ने के 2 टुकड़े हो गए। तुकाराम ने हंसते हुए उत्तर दिया अच्छा हुआ पहले एक ही गन्ना था अब 2 हो गए। दोनों आराम से खा सकते हैं।

दोहा

बार-बार काहे मरत अभागी । बहुरि मरन से क्या तोरे भागी

ये ही तन करते क्या ना होय । भजन भगति करे वैकुण्ठ जाए

राम नाम मोल नहिं बेचे कवरि। वो हि सब माया छुरावत

कहे तुका मनसु मिल राखो । राम रस जिव्हा नित्य चाखो

ऐसे मिलती है माया से मुक्ति

संत तुकारम कहते हैं कि बार-बार तुम क्यों मरना चाहते हो। क्या इससे छूटकर भागने का कोई उपाय तुम्हारे पास नहीं है। अरे भाई यह शरीर बड़ा अद्भुत्त है। उससे क्या नहीं हो सकेगा। भक्तिपूर्ण ईश्वर भजन से वैकुण्ठ प्राप्ति हमें हो सकती है। राम नाम लेने के लिए कौड़ी भी हमें खर्च नहीं करनी पड़ती है। राम नाम की शक्ति प्रपंच की माया से हमें मुक्ति दिला सकती है। तुकाराम कहते हैं कि महत्त्वपूर्ण बात केवल इतनी ही है कि जब हम पूरे मन से राम नाम में तल्लीन होते हैं तभी जिह्वा से निकलने वाला राम नाम रूपी अमृत रस हमें नित्य तृप्ति दिला देगा। 

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