ऋषि दुर्वासा ने उन्हें ऐसा मंत्र बताया था जिससे वह देवताओं का ध्यान कर पुत्र प्राप्ति की

कुंती की सेवा से प्रसन्न हो ऋषि दुर्वासा ने उन्हें ऐसा मंत्र बताया था जिसकी सहायता से वह देवताओं का ध्यान कर पुत्र रत्न की प्राप्ति कर सकती थी। पांडवों का जन्म इसी मंत्र की सहायता से हुआ था।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 10 Feb 2017 11:43 AM (IST) Updated:Sat, 11 Feb 2017 09:37 AM (IST)
ऋषि दुर्वासा ने उन्हें ऐसा मंत्र बताया था जिससे वह देवताओं का ध्यान कर पुत्र प्राप्ति की
ऋषि दुर्वासा ने उन्हें ऐसा मंत्र बताया था जिससे वह देवताओं का ध्यान कर पुत्र प्राप्ति की

भारत के पौराणिक इतिहास में अनेक ऐसे ऋषियों, मुनियों का जिक्र है, जिनके पास अलौकिक शक्तियां थीं। वह अपनी इसी शक्ति के कारण चाहे तो श्राप देकर सामने वाले को भस्म कर सकते थे या फिर वरदान के द्वारा किसी का जीवन खुशियों से भर देते थे। यह सब उन्हें क्रोधित करने व प्रसन्न करने से जुड़ा था।

ऐसे ही एक महर्षि थे दुर्वासा ऋषि, जो अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे। ऋषि दुर्वासा को शिव का अवतार कहा जाता था लेकिन जहां भोले शंकर को प्रसन्न करना बेहद आसान माना जाता है वहीं ऋषि दुर्वासा को प्रसन्न करना शायद सबसे मुश्किल काम था।

हां, शिव और दुर्वासा में एक बात समान थी कि दोनों के ही क्रोध की ज्वाला से बच पाना लगभग असंभव था। ऋषि दुर्वासा के क्रोध से जुड़ी अनेक कहानियां हमारे पौराणिक इतिहास में मौजूद हैं, जब किसी के कृत्य या दुस्साहस ने उन्हें इस कदर क्रोधित कर दिया कि उन्हें अपना आपा खोना पड़ा।

लेकिन हर बार नुकसान सामने वाले व्यक्ति को ही उठाना पड़े ऐसा जरूरी नहीं है, कभी-कभार आपका क्रोध और अहंकार स्वयं आपके लिए भी घातक साबित हो जाता है। दुर्वासा ऋषि के साथ भी ऐसा ही हुआ जब उनका क्रोध उनकी जान के पीछे पड़ गया।

इक्ष्वांकु वंश के राजा अंबरीश विष्णु के परम भक्त होने के साथ-साथ बेहद न्यायप्रिय शासक थे। उनके शासनकाल में प्रजा खुशहाल और संपन्न जीवन व्यतीत कर रही थी। उनके तप से विष्णु इस कदर प्रसन्न थे कि अपने सुदर्शन चक्र का नियंत्रण अंबरीश के हाथ में सौंप रखा था। एक बार राजा अंबरीश ने एकादशी का व्रत रखने का निर्णय लिया। यह व्रत इतना ताकतवर होता है कि देवेंद्र तक इसकी शक्ति से हिल गए। अंबरीश अपना व्रत संपन्न ना कर पाएं इसके लिए इन्द्र देव ने दुर्वासा ऋषि को उनके पास जाने को कहा।

एक बार राजा अंबरीश ने एकादशी का व्रत रखने का निर्णय लिया। यह व्रत इतना ताकतवर होता है कि देवेंद्र तक इसकी शक्ति से हिल गए। अंबरीश अपना व्रत संपन्न ना कर पाएं इसके लिए इन्द्र देव ने दुर्वासा ऋषि को उनके पास जाने को कहा।व्रत खोलने का समय जैसे ही नजदीक आया, दुर्वासा ऋषि भी अंबरीश के महल पहुंच गए। उन्होंने अंबरीश से कहा कि वे स्नान कर जल्दी ही लौटते हैं। अंबरीश ने सम्मानपूर्वक ऋषि दुर्वासा का बहुत देर इंतजार किया, लेकिन लंबी अवधि बीत जाने के बाद भी जब दुर्वासा ऋषि स्नान से वापस नहीं आए तब अंबरीश ने देवताओं का ध्यान कर उन्हें आहुति दी और कुछ भाग दुर्वासा के लिए निकाल लिया।

व्रत खोलने का समय बीत जाने के बाद दुर्वासा वापस आए। वह ये देखकर अत्याधिक क्रोध हो उठे कि उनकी अनुपस्थिति में राजा ने अपना व्रत खोल लिया। क्रोध के आवेश में आकर उन्होंने कृत्या राक्षसी की रचना की और उसे अंबरीश पर आक्रमण करने का निर्देश दिया। अपनी जान बचाने के लिए अंबरीश ने सुदर्शन चक्र को प्रहार करने का आदेश दिया। सुदर्शन चक्र के प्रहार से कृत्या राक्षसी उसी समय मारी गयी। कृत्या का वध करने के बाद सुदर्शन चक्र ऋषि दुर्वासा का पीछा करने लगा। अपनी जान बचाने के लिए ऋषि दुर्वासा इधर-उधर भागने लगे लेकिन वह जहां भी जाते सुदर्शन चक्र उनके पीछे आ जाता था। वह अपनी जान बचाने के लिए इन्द्र के पास पहुंचे। इन्द्र ने अपनी अक्षमता दर्शाते हुए उन्हें ब्रह्मा के पास भेज दिया। ब्रह्मा ने उन्हें शिव और शिव ने उन्हें विष्णु के पास जाने को कहा।

आखिरकार वे विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु ने उन्हें कहा कि सुदर्शन चक्र का नियंत्रण अंबरीश के पास है इसलिए उन्हें अंबरीश के पास ही जाना होगा। हार कर दुर्वासा अंबरीश के पास पहुंचे और सुदर्शन चक्र को रोकने को कहा।

राजा ने ऋषि की प्रार्थना मान ली और आखिरकार सुदर्शन चक्र को रोककर दुर्वासा ऋषि की जान बचाई।

ऋषि दुर्वासा को क्रोधित करना जितना आसान है उन्हें प्रसन्न करना उतना या शायद उससे भी कही ज्यादा मुश्किल। लेकिन पांडवों की माता कुंती ने अपने सेवा भाव से ऋषि दुर्वासा को प्रसन्न करने में सफलता हासिल की थी।

कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें ऐसा मंत्र बताया था जिसकी सहायता से वह देवताओं का ध्यान कर पुत्र रत्न की प्राप्ति कर सकती थी। पांडवों का जन्म इसी मंत्र की सहायता से हुआ था। अत्रि ऋषि और अनुसुया की संतान, दुर्वासा ऋषि ने राम और सीता के वनवास के दौरान ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि इनका अलगाव निश्चित है। इतना ही नहीं अभिज्ञान शांकुतलम के अनुसार क्रोध के आवेग में आकर दुर्वासा ऋषि ने शकुंतला को यह श्राप दिया था कि उसका अपना पति उसे पहचानने से इनकार कर देगा।

दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र देव को खूबसूरत कल्पक फूलों की माला भेंट की थी जो उन्हें मेनका ने दी थी। इन्द्र ने वो माला अपने हाथी ऐरावत के गले में डाल दी, ऐरावत ने वो माला जमीन पर फेंक दी, जिसे देखकर दुर्वासा अत्यंत क्रोधित हो उठे।

दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र से कहा कि गौतम और वशिष्ठ ऋषि द्वारा लगातार की जाती सराहना से इन्द्र के भीतर अहंकार आ गया है। इन्द्र के अहंकार को शांत करने के लिए दुर्वासा ने उन्हें श्राप दिया, जिसके बाद देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई।

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