होली के उल्लास में आइए चुनेंं जीवन को स्फूर्तिवान बनाने वाले खुशियों के रंग..

सातों रंग हमारे भीतर हैं। किसी को बस श्वेत-श्याम दिखता है, तो कोई श्वेत-श्याम से भी इंद्रधनुष के सातों रंग पैदा कर लेता है। यह हमारा नजरिया है कि हम कौन-सा रंग चुनते हैं। रंगोत्सव होली के उल्लास में आइए चुन लें जीवन को स्फूर्तिवान बनाने वाले खुशियों के रंग...

By Preeti jhaEdited By: Publish:Thu, 05 Mar 2015 10:20 AM (IST) Updated:Thu, 05 Mar 2015 10:27 AM (IST)
होली के उल्लास में आइए चुनेंं जीवन को स्फूर्तिवान बनाने वाले खुशियों के रंग..

सातों रंग हमारे भीतर हैं। किसी को बस श्वेत-श्याम दिखता है, तो कोई श्वेत-श्याम से भी इंद्रधनुष के सातों रंग पैदा कर लेता है। यह हमारा नजरिया है कि हम कौन-सा रंग चुनते हैं। रंगोत्सव होली के उल्लास में आइए चुन लें जीवन को स्फूर्तिवान बनाने वाले खुशियों के रंग...

उद्योगपति संदीप शर्मा की कोठी के बाहर कारों की कतार और घर में मौजूद साजो-सामान बता देते हैं कि वे शहर के बड़े रईस हैं। हालांकि उन्हें देखकर लगता नहीं कि वे खुश हैं। अलग-अलग तरह की चिंता उन्हें बेचैन रखती है। एक बार वे अपनी नई कार से कहीं घूमने निकले। बीच राह में कार खराब हो गई। एक झोपड़ी के किनारे खड़े होकर दूसरी कार का इंतजार करने लगे। अचानक उस झोपड़ी से किसी के गुनगुनाने की आवाज आई। 'झोपड़ी में कोई इतने सुकून से कैसे रह सकता है?Ó शर्मा जी यह सोचकर परेशान हो गए। उन्होंने अंदर जाकर उस आदमी से कहा- 'तुम कुछ ऐसा क्यों नहीं करते कि तुम्हारे पास पैसा आए, तुम अच्छा घर और जरूरी सुविधाएं जुटा सको?Ó

उससे क्या होगा सेठ जी?Ó आदमी ने पूछा। 'तुम्हारे पास पैसा होगा तो तुम खुश रह पाओगेÓ, शर्मा जी का कहना था। 'क्या आप खुश हैं? आपके पास सब कुछ है। मैं तो इस झोपड़े में बहुत खुश हूं।Ó उस आदमी ने विनम्रता से जवाब दिया।

नन्ही चिडि़या है खुशी

हम खुशी की तलाश में भटकते रहते हैं। समय बीतता जाता है, पर मन में बसी खुशी की छवि से मिलती खुशी कहीं नहीं मिलती। हम दूसरों को खुश देखकर दुखी होते रहते हैं। पर तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के अनुसार, खुशी हमारे भीतर ही कहीं छिपी होती है, बाहर से नहीं आती। वहीं, हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक डेन गिलबर्ट कहते हैं, 'न तो खुशी स्थायी है और न दुख, फिर खुशी के पीछे क्यों भागें!Ó मनचाही मुराद पूरी होने पर भी हम लंबे समय तक खुश रहेंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं है। वास्तव में खुशी एक नन्ही चिडि़या है, जो झट से फुर्र हो जाती है। कभी इस मुंडेर बैठती है, तो कभी उस मुंडेर पर।

भ्रम से भटकाव

हमारे पास जितने ज्यादा विकल्प होते हैं, खुशियों को लेकर हम उतने ही ज्यादा भ्रमित रहते हैं। एक खुदरा दुकानदार इसलिए परेशान था, क्योंकि उसके कस्टमर इन दिनों बदल गए हैं। वे पहले किसी एक ब्रांड पर भरोसा रखते थे, पर अब हर दो दिन में ब्रांड बदल लेते हैं। दुकानदार यह नहीं समझ पा रहा कि अब वह अपने स्टोर में कौन-सा ब्रांड रखे, कौन-सा नहीं। हममें से ज्यादातर लोगों के पास यह समस्या आती है। पैसा है, सुविधाएं हैं, पर सुकून नहीं है, क्योंकि हमारे पास कई-कई ब्रांड और विकल्प पैदा हो गए हैं, जिनमें हम मनचाही खुशी तलाशने में जुटे हुए हैं। यह तलाश एक भुलावा है, जो राह से भटकाकर हमें खुशी से दूर कर देता है। हम दूसरों से अपनी तुलना करने लगते हैं। पड़ोस में खड़ी नई कार या फेसबुक पर किसी सुंदर-ग्लैमरस फोटो को देखकर भ्रम हो जाता है कि दूसरा हमसे अच्छी जिंदगी जी रहा है। इसी भ्रम के शिकार ज्यादातर लोग 'मैं खुश हूं, सुखी हूंÓ बताने के लिए एक 'स्माइलीÓ चिपका देते हैं। पर सवाल यह है कि क्या वे वाकई खुश हैं? खुशी के लिए बाहर जाने की बजाय जो कुछ आपके पास है, आपके भीतर ही है, उस पर भरोसा करें। उसे जानें और पहचानें।

सबसे सुखी कौन?

हंस और कौए की कहानी हमें खुशी का रहस्य बताती है। कौआ जंगल में आजादी और सुख-चैन से जी रहा था, फिर भी उजले हंस की सुंदरता उसे परेशान कर रही थी। हंस भी दुखी था। वह तोते की तरह हरे पंखों वाला होना चाहता था। जब कौआ तोते के पास गया तो तोता मोर की तरह सुंदर दिखना चाहता था। कौआ मोर के पास गया, तो मोर को दुखी देखकर वह दंग रह गया। मोर ने अपना दुखड़ा रोते हुए कौए को सलाह दी, 'मेरी खूबसूरती ही तो मेरी दुश्मन है। इसी वजह से मैं पिंजरे में कैद हूं। तुम आजाद हो, तुम सबसे सुखी हो।Ó दरअसल, अपनी खूबियों पर ध्यान देने, उसे संवारने की बजाय दूसरों की ओर ताकने की आदत हमें सुखी होने से वंचित कर देती है।

खुशमिजाजी का जादू

सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ऑस्कर सम्मान जीतने के बाद अमेरिकी अभिनेत्री जूलियन मूर ने अपनी कामयाबी का राज खुशमिजाजी को बताया। उनके अनुसार, 'जिंदगी के प्रति जिम्मेदारी ने मुझे जितना जुझारू बनाया है, उतना ही खुशमिजाज भी। हम इससे अपनी जिंदगी आसान और सफल बना सकते हैं।Ó वास्तव में हम खुश रहते हैं, तो पूरा माहौल खुशगवार हो जाता है। उत्साह में रहते हैं तो श्वेत-श्याम में भी रंग भरने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। खुशमिजाज इंसान के आगे असाध्य बीमारियां भी घुटने टेकने पर बाध्य हो जाती हैं। उत्साह एक उत्प्रेरक की तरह काम करता है, जो नई शुरुआत के लिए बेहद जरूरी है। अगर हम खुद को खुश रखते हैं और यह मान लेते हैं हमारे अंदर ही परिस्थितियों को बदलने की क्षमता है, तो सचमुच ऐसा संभव है।

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