ऋषि याज्ञवल्क्य ने जीवन को यज्ञमय बनाने के लिए किया अधिक परिश्रम

भारत को भारत बनाने में हमारे ऋषियों की विशेष तप साधना है। उन्होंने अपनी तप साधना से भारत को अजस्र अनुदान दिया है। इन्हीं ऋषियों में से एक हैं ऋषि याज्ञवल्क्य जिन्होंने यज्ञीय ज्ञान-विज्ञान पर विशेष शोष कार्य किया और उस विद्या का अधिकाधिक प्रसार किया। यज्ञीय ज्ञान-विज्ञान के सम्यक प्रयोगों से स्थूल एवं सूक्ष्म पर्यावरण के शोधन व पोषण का क्रम प्रारंभ किया।

By Jagran NewsEdited By: Kaushik Sharma Publish:Mon, 11 Mar 2024 11:53 AM (IST) Updated:Mon, 11 Mar 2024 11:53 AM (IST)
ऋषि याज्ञवल्क्य ने जीवन को यज्ञमय बनाने के लिए किया अधिक परिश्रम
ऋषि याज्ञवल्क्य ने जीवन को यज्ञमय बनाने के लिए किया अधिक परिश्रम

नई दिल्ली, डा. चिन्मय पण्ड्या (देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति)। ज्ञान-विज्ञान से जीवन को यज्ञमय बनाने वाले ब्रह्मर्षि याज्ञवल्क्य की जयंती 14 मार्च को है। प्रस्तुत है सनातन संस्कृति में उनके योगदान पर आलेख।

भारत को भारत बनाने में हमारे ऋषियों की विशेष तप साधना है। उन्होंने अपनी तप साधना से भारत को अजस्र अनुदान दिया है। इन्हीं ऋषियों में से एक हैं ऋषि याज्ञवल्क्य, जिन्होंने यज्ञीय ज्ञान-विज्ञान पर विशेष शोष कार्य किया और उस विद्या का अधिकाधिक प्रसार किया। यज्ञीय ज्ञान-विज्ञान के सम्यक प्रयोगों से स्थूल एवं सूक्ष्म पर्यावरण के शोधन व पोषण का क्रम प्रारंभ किया। महर्षि याज्ञवल्क्य ने यज्ञीय परंपरा का जागरण किया और यज्ञीय प्रक्रिया को जन सुलभ बनाकर घर-घर पहुंचाया। यज्ञाग्नि की प्रेरणाओं और अनुसंधानों द्वारा सिद्ध करके जीवन को यज्ञमय मनाने में अथक परिश्रम किया। उन्होंने शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक व्याधियों के निवारण हेतु यज्ञोपचार पद्धति का विकास विस्तार किया। याज्ञवल्क्य अपनी अद्वितीय बुद्धि और शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। ऋषि याज्ञवक्ल्य के बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म भारतीय संस्कृति के संवाहक मिथिला नगरी के ब्रह्मरथ व सुनंदा के घर हुआ था।

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ऋषि याज्ञवल्क्य ने वेद की समस्त ऋचाएं कंठस्थ कर ली थीं

इनके बारे में मान्यता है कि सातवें वर्ष में अपने मामा वैशम्पायन से शिक्षा ग्रहण कर वेद की समस्त ऋचाएं कंठस्थ कर ली थीं। बाद में इन्होंने और अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए कठिन साधना की और योगशास्त्र, यज्ञीय ज्ञान-विज्ञान सहित अनेक विधाओं में पारंगत हुए। ऋषि याज्ञवक्ल्य ने अपने अर्जित ज्ञान को समाज में बांटने के उद्देश्य से शुक्ल यजुर्वेद संहिता, याज्ञवल्क्य स्मृति, याज्ञवल्क्य शिक्षा, प्रतिज्ञा सूत्र, शतपथ ब्राह्मण, योगशास्त्र सहित अनेक ग्रंथों की रचना की। इनकी कृति वृहदारण्यकोपनिषद के तीन भागों में से द्वितीय भाग इन्हीं के नाम पर याज्ञवल्क्य कांड के नाम से प्रसिद्ध है। इनको अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना जाता है।

याज्ञवल्क्य ने यज्ञ विद्या का किया था अन्वेषण

युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने अपनी पुस्तक हमारी वसीयत और विरासत में लिखते हैं ऋषि याज्ञवल्क्य ने देवात्मा हिमालय की गोद में बसे त्रिगुणी नारायण में यज्ञ विद्या का अन्वेषण किया था और उनके भेद-उपभेदों को समग्र जीव जगत के स्वास्थ्य संवर्धन हेतु वातावरण शोधन, वनस्पति संवर्धन एवं वर्षण के रूप में जांचा परखा था।

याज्ञवल्क्य को वैदिक ग्रंथों का गहरा ज्ञान था। ऋषि याज्ञवल्क्य का जो विवरण मिलता है, वह शतपथ ब्राह्मण से मिलता है। ये उद्दालक आरुणि नामक आचार्य के शिष्य थे। यहां पर उनको वाजसनेय भी कहा गया है। ऐसा माना जता है कि कर्मकांड का उस काल में मजबूत और प्रतिष्ठित बनाने में ऋषि याज्ञवक्ल्य का बहुत बड़ा योगदान है।

राहुल सांकृत्यायन द्वारा रचित 'वोल्गा से गंगा' में उपनिषदों का उदय और उनका समाज में प्रवाह करने को ऋषि याज्ञल्क्य द्वारा बताया गया है। याज्ञवल्क्य को राजा जनक के दरबार में हुए शास्त्रार्थ के लिए भी जाना जाता है। शास्त्रार्थ और दर्शन की परंपरा में इनसे पहले किसी ऋषि का नाम नहीं लिया जा सकता।

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