क्रिसमस पर विशेष: जिएं दूसरों के लिए

ईसा मसीह का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें दूसरों की मदद करके जीवन में आत्मिक उन्नति करने के लिए प्रेरित करती हैं। क्रिसमस पर विशेष.. ईसा मसीह ने मानव को 'जगत की ज्योति' बताया। यानी हम लोग ही अपने और दूसरों की मुश्किलों के अंधेरों से लड़ने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि कोई

By Edited By: Publish:Wed, 25 Dec 2013 11:09 AM (IST) Updated:Wed, 25 Dec 2013 11:19 AM (IST)
क्रिसमस पर विशेष: जिएं दूसरों के लिए

ईसा मसीह का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें दूसरों की मदद करके जीवन में आत्मिक उन्नति करने के लिए प्रेरित करती हैं। क्रिसमस पर विशेष..

ईसा मसीह ने मानव को 'जगत की ज्योति' बताया। यानी हम लोग ही अपने और दूसरों की मुश्किलों के अंधेरों से लड़ने में सक्षम हैं। उन्होंने कहा कि कोई दीया जलाकर नीचे नहीं, बल्कि दीवार पर रखना चाहिए, ताकि सबको प्रकाश मिले। इसका अर्थ यह है कि हम अपने आसपास के परिवेश को नजरअंदाज न करें। जिसके भी घर में अंधेरा (समस्याएं) हो, हमारा फर्ज है कि हम वहां तक उजाला ले जाएं और उसका अंधेरा भी दूर करें। लेकिन यह तभी होगा जब हम दीवार पर रखे दीये की तरह आत्मिक ऊंचाई प्राप्त करें। दुर्गुणों को छोड़कर और सद्गुणों को धारण कर हम वह ऊंचाई प्राप्त कर सकते हैं, जिससे हम दूसरों के भी घरों में उजाला पैदा कर सकें। उनका यह भी कहना था कि जो व्यक्ति इंसानों से प्रेम नहीं करता, वह ईश्वर से भी प्रेम नहीं कर सकता। यानी लोगों से प्रेम न करने वाला ईश्वर-भक्त नहीं है।

ईसा मसीह (प्रभु यीशु) के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है क्रिसमस, जो ईसाई धर्म का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह त्योहार हमें ईश्वर के प्रेम, आनंद एवं मानव के उद्धार का संदेश देता है। क्रिसमस बताता है कि मानव जाति का उद्धार ही ईश्वर की पहली प्राथमिकता है। अत: जो स्वयं का परिमार्जन करता है और दूसरों के कष्टों का निवारण करता है, वही ईश्वर के सर्वाधिक निकट है।

मान्यता है कि यीशु का जन्म मानव जाति के कल्याण के लिए हुआ था। उस समय पूरे रोम में धार्मिक आडंबर अपने चरम पर थे। रोम के शासक निरीह जनता का शोषण करने में व्यस्त थे। धनाढ्यवर्ग विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था, जबकि गरीबों की हालत अत्यंत दयनीय थी। पापों (बुरे कामों) के कारण समृद्ध लोग ईश्वर के मार्ग से हट चुके थे। चारों और अशांति फैली थी। भाई अपने ही भाई का शत्रु बन गया था। धर्म के नाम पर लोग स्वार्थ सिद्धि में लगे थे। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब और ऊंच-नीच के बीच भेदभाव की खाई गहरी हो गई थी। ऐसे विकट समय में ईसा का जन्म हुआ।

ईसा ने बहुत से जीवनोपयोगी संदेश दिए हैं। दीन-दुखियों की सहायता करने, प्रेमभाव से रहने, लालच न करने, ईश्वर और राज्य के प्रति क‌र्त्तव्यनिष्ठ रहने, जरूरतमंदों की जरूरत पूरी करने, आवश्यकता से अधिक धन संग्रह न करने के लिए उन्होंने सभी लोगों को उपदेश दिए हैं। वे ऐसे ज्योति-पुंज बनें, जिन्होंने सभी तरह के अंधेरों को मिटाने का प्रयास किया।

आर.एल. फ्रांसिस

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