रामायण-महाभारत

त्याग और आदर्श की पराकाष्ठा प्रस्तुत करने वाले ग्रंथ रामायण और अधर्मी स्वजनों के विरुद्ध प्रतिकार की प्रेरणा देने वाली महाभारत विश्व साहित्य में अतुलनीय कृतियां मानी जाती हैं। हालांकि इनके रचनाकाल के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं।

By Edited By: Publish:Sat, 06 Oct 2012 03:49 PM (IST) Updated:Sat, 06 Oct 2012 03:49 PM (IST)
रामायण-महाभारत

त्याग और आदर्श की पराकाष्ठा प्रस्तुत करने वाले ग्रंथ रामायण और अधर्मी स्वजनों के विरुद्ध प्रतिकार की प्रेरणा देने वाली महाभारत विश्व साहित्य में अतुलनीय कृतियां मानी जाती हैं। हालांकि इनके रचनाकाल के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं।

रामायण जहां आंखों को नम कर जाती है, वहीं महाभारत युगधर्म निभाने की प्रेरणा देती है। इसके अंश गीता में ज्ञान, कर्म एवं भक्ति का जैसा संगम मिलता है, वैसा किसी भी अन्य ग्रंथ में दुर्लभ है। रामायण के रचयिता आदिकवि महर्षि वाल्मीकि एवं महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास की प्रतिभा के सामने सभी नतमस्तक हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य में इन महान विभूतियों का विवरण इस प्रकार मिलता है :

आदिकवि वाल्मीकि : एक आहत पक्षी के विलाप को सुनकर करुणा में भीग सृष्टि का पहला श्लोक रचने वाले महाकवि वाल्मीकि का आश्रम भगीरथी नदी के तट पर था। जनविरोध की चिंता न कर गलत आरोप पर त्यागी गई सीता को प्रश्रय देकर उनके पुत्रों लव-कुश को भारत के सुयोग्य शासक के रूप में विकसित करने वाले आचार्य के रूप में भी वे वंदनीय हैं।

महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास : महर्षि वेदव्यास का पूरा नाम महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास है। पुराणों के अनुसार, कृष्ण द्वैपायन के पूर्व 28 व्यास हो चुके थे। सरस्वती नदी के तट पर आश्रम बनाकर रहने वाले कृष्ण द्वैपायन दासराज कन्या सरस्वती के पुत्र थे। महाभारत के साथ 18 पुराण, ब्रšासूत्र, भागवत आदि ग्रंथों की रचना करने वाले महर्षि व्यास की प्रतिभा की थाह नहीं ली जा सकती। महाभारत का नाम पहले जय था, जिसमें साठ लाख श्लोक थे।

(साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)

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