Yamuna chhath 2019: आज है इस पवित्र नदी का अवतरण पर्व, जानें महत्व और कहानी

आज Yamuna chhath 2019 का पर्व मनाया जायेगा। मथुरा वृंदावन के इस विशेष पर्व को यमुना नदी के पृथ्वी पर अवतरण के दिन की तरह मनाया जाता है।

By Molly SethEdited By: Publish:Wed, 10 Apr 2019 04:32 PM (IST) Updated:Thu, 11 Apr 2019 09:20 AM (IST)
Yamuna chhath 2019: आज है इस पवित्र नदी का अवतरण पर्व, जानें महत्व और कहानी
Yamuna chhath 2019: आज है इस पवित्र नदी का अवतरण पर्व, जानें महत्व और कहानी

यमुना जयंती भी कहते हैं

यमुना छठ मुख्य रूप से मथुरा-वृंदावन में मनाया जाता है। यह देवी यमुना पृथ्वी पर अवतरित होने के दिन का प्रतीक है। इसलिए इस दिन को यमुना जयंती या देवी यमुना की जयंती के रूप में भी जाना जाता है। यमुना छठ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाया जाता है और चैत्र नवरात्रि के दौरान आता है। देवी यमुना, भगवान श्री कृष्ण की पत्नी होने के नाते, ये ब्रज के लोगों के लिए श्रध्दा का पात्र हैं। यही वजह है कि यमुना छठ मुख्य रूप से मथुरा और वृंदावन के लोगों द्वारा मनाया जाता है।

यमुना छठ की तिथि और महत्व 

षष्ठी तिथि का आरंभ 10 अप्रैल बुधवार सायंकाल 15:35 पर होगा और 11 अप्रैल बृहस्पतिवार को दोपहर 14:41 पर समाप्त हो जायेगी। इस तरह उदिया तिथि में होने के कारण 11 तारीख को ही यमुना छठ मनाई जायेगी। यमुना, सूर्य पुत्री और यम की बहन हैं, शनि देव भी इनके भाई हैं। कहते हैं कि इस दिन यमुना नदी में स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पाप धूल जाते हैं एवं वह मोक्ष को प्राप्त होता है। यमुना को ब्रज में माता के रूप में माना जाता है। गर्ग संहिता में कहा गया है कि विष्णु जी ने कृष्ण अवतार के समय लक्ष्मी जी से राधा के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेने के लिए कहा, इस पर राधा ने यमुना को भी धरती पर भेजने के लिए कहा और इस तरह य़मुना का अवतरण हुआ। 

पूजा पाठ

इस दिन व्रत रखा जाता है और यमुना में स्नान किया जाता है। इस दिन यमुना में स्नान करने से रोग मुक्ति होती है।  संध्या के समय भी पूजन करके यमुना अष्टक का पाठ किया जाता है। इसके बाद यमुना जी को भोग लगा कर, दान पुण्य आदि करके व्रत का पारण होता है। मान्यता है कि कृष्ण अंतिम समय में गुजरात में थे इसीलिए यहां भी यह पर्व धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन गुजराती समुदाय के लोग यमुना जी पर डुबकी लगाने मथुरा आते हैं और कलश में यमुना जी का जल अपने साथ ले जाते हैं। जिसे अपने घर और गांव में वैदिक मंत्रों द्वारा खोल कर प्रसाद स्वरूप ग्रहण व वितरित करते हैं। 

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