यहां जो दिखाई दे रहा है, वो सुखद विस्मय से भर देता है

र्मग्रंथ कहते हैं-अतिथि देवो भव:। अतिथि, जो बिना तिथि बताए चला आए।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 30 Apr 2016 04:25 PM (IST) Updated:Sat, 30 Apr 2016 04:52 PM (IST)
यहां जो दिखाई दे रहा है, वो सुखद विस्मय से भर देता है

उज्जैन। धर्मग्रंथ कहते हैं-अतिथि देवो भव:। अतिथि, जो बिना तिथि बताए चला आए। औचक आगंतुक, जो चौंका दे। यानी सूत्र हमसे कहता है, ऐसा मेहमान जिसके आने का आपको लेशमात्र भी भान न हो, उसकी सेवा भी देवता की तरह ही करें। इन दिनों कुंभनगरी के सारे वासी मानो इसी सूत्र को शिरोधार्य रख मेहमानों की सेवा में जुटे हैं। यहां जो दिखाई दे रहा है, वो सुखद विस्मय से भर देता है।

एक मार्ग पर कुछ मुस्लिम युवा आग्रह के साथ श्रद्धालुओं को शरबत बांटते दिखाई दिए। बोहराजन चिकित्सा प्रकल्प चलाते दिखे तो शहर के एक हिस्से में ईसाई समाजजन तन्मयता से शीतल जल पिला रहे थे। गुरुद्वारा पहुंचा तो लंगर में सेवा का अद्भुत नजारा देखने को मिला।

चाहे कोई किसी भी धर्म, पंथ या धारा को मानने वाला हो, कुंभ में आने वाली आस्था का अपने ढंग से सत्कार करने में जुटा है। मोक्षदायिनी में अमृत नहान को आने वाली श्रद्धा को कोई कष्ट ना हो, इस चिंता में लगा है। सरकारी मशीनरी अपना काम कर रही है, इन सेवादारों की फौज भी पूरी तैयारी से जुटी है।

आखिर क्यों। हर जगह कमोबेश एक-सा जवाब मिला-यहां जो भी आ रहा है वह किसी धर्म, पंथ या संप्रदाय का नहीं, समूची अवंतिका का मेहमान है। सनातन धर्म की अद्भुत परंपरा का साक्षी बनने के लिए महाकुंभ के आंगन में संसार समाया है। यहां तो सद्भाव के रंग बिखरने ही हैं।

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