रावण ने एक नादानी की थी

त्रेतायुग में बात उन दिनों की है जब भगवान श्रीराम अपने मित्र सुग्रीव, अनुज लक्ष्मण, हनुमानजी के साथ लंका तक सेतु का निर्माण करवा रहे थे। तब रावण ने एक नादानी की थी। रावण ने सुग्रीव को खरीदने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहा था। विद्वान रावण की

By Preeti jhaEdited By: Publish:Tue, 06 Oct 2015 11:40 AM (IST) Updated:Tue, 06 Oct 2015 12:05 PM (IST)
रावण ने एक नादानी की थी

त्रेतायुग में बात उन दिनों की है जब भगवान श्रीराम अपने मित्र सुग्रीव, अनुज लक्ष्मण, हनुमानजी के साथ लंका तक सेतु का निर्माण करवा रहे थे। तब रावण ने एक नादानी की थी। रावण ने सुग्रीव को खरीदने की कोशिश की थी लेकिन वो नाकाम रहा था। विद्वान रावण की यह सबसे बड़ी बेवकूफी मानी जाती है।

दरअसल रावण की नादानी यह थी कि उसने शुक नाम के एक गुप्तचर को सुग्रीव के पास भेजकर उनके मन को भ्रमित करने का प्रयत्न किया। उस गुप्तचर ने सुग्रीव से कहा, 'लंकापति रावण ने मुझे भेजा है। आप श्रीराम का साथ न दें। श्रीराम तो अयोध्या लौट जाएंगे लेकिन फिर रावण आपको दुःख देंगे। आपको रावण को बड़ा भाई समझकर उनसे मित्रता का संबंध बनाना चाहिए।'

सुग्रीव को इस बात से गुस्सा आ गया। उन्होंने कहलवाया कि, 'में रावण का कभी मित्र नहीं बन सकता। राम मेरे परम मित्र हैं। सुग्रीव की बात सभी वानर सुन रहे थे। वे उस शुक नाम के गुप्तचर पर टूट पड़े। लेकिन सुग्रीव ने उन्हें रोका। गुप्तचर ने देखा, विभीषण भी श्रीराम के सानिध्य में हैं।'

वहीं, राम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण और सुग्रीव ने विभीषण को लंका का राजा घोषित कर दिया। श्रीराम ने समुद्रराज की उपासना की। समुद्रराज प्रसन्न हुए उन्होंने प्रकट हुए। उन्होंने विष्णु जी के अवतार श्रीराम को प्रणाम कर कहा कि आपकी वानर सेना में नल-नील नाम के दो भाई हैं जो विश्वामित्र के पुत्र हैं।

यदि आप उन्हें सेतु बनाने का काम सौंपते हैं तो यह जल्द ही बनकर तैयार हो जाएगा। सेतु में प्रयोग होने वाले पत्थरों पर यदि वह राम नाम लिखकर प्रवाहित करेंगे तो वो डूबेंगे नहीं। इस तरह आपका सेतु बनकर तैयार हो जाएगा। तब आप वानर सेना के साथ लंका की ओर कूच कर सकते हैं।

समुद्र देव चले गए, वानरों ने आस-पास के जंगलों से पेड- पौधों और बेलों की टहनियों से सेतु को मजबूत बनाने के लिए उपयोग में लीं और राम नाम का लिखकर पत्थरों को से जल्द ही पुल बना दिया। इस दौरान समुद्रदेव ने भी पूरा सहयोग दिया। सारी सेना समुद्र पार करने लगी तब हनुमानजी राम और लक्ष्मण को अपने विशाल शरीर में प्रकट होकर कंधों पर बैठा दिया।

chat bot
आपका साथी