Ramcharitmanas: संगति का हमारे जीवन पर कैसे पड़ता है प्रभाव? भगवान राम ने लक्ष्मण को बताया

Ramcharitmanas कहा जाता है कि हम जिस संगत में रहते हैं वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। संगति अच्छी होती है तो चोर भी एक सज्जन की तरह व्यवहार करने लगता है और कुसंगति में इंसान पड़ जाता है ​तो उसकी बुद्धि सबसे पहले भ्रष्ट हो जाती है।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Wed, 07 Oct 2020 11:30 AM (IST) Updated:Wed, 07 Oct 2020 11:30 AM (IST)
Ramcharitmanas: संगति का हमारे जीवन पर कैसे पड़ता है प्रभाव? भगवान राम ने लक्ष्मण को बताया
प्रभु राम अपने भाई लक्ष्मण को संगति के बारे में बताते हैं।

Ramcharitmanas: कहा जाता है कि हम जिस संगत में रहते हैं, वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। संगति अच्छी होती है तो चोर भी एक सज्जन की तरह व्यवहार करने लगता है और कुसंगति में इंसान पड़ जाता है ​तो उसकी बुद्धि सबसे पहले भ्रष्ट हो जाती है। संगति का असर व्यक्ति को कब प्रभावित करने लगता है, उसे भी इसका ज्ञान नहीं रहता है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में एक जगह एक प्रसंग का वर्णन किया है, जिसमें प्रभु राम अपने भाई लक्ष्मण को संगति के बारे में बताते हैं।

कबहुँ प्रबल बह मारुत जहँ तहँ मेघ बिलाहिं।

जिमि कपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिं।।

कबहुँ दिबस महँ निबिड़ तम कबहुँक प्रगट पतंग।

बिनसइ उपजइ ज्ञान जिमि पाइ कुसंग सुसंग।।

श्रीरामचरितमानस में भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण से कहते हैं, देखो लक्ष्मण! तेज आकाश में कभी तेज वायु के प्रभाव से बादल छिन्न-भिन्न हो जाते हैं, जैसे किसी परिवार में कभी कुपुत्र का जन्म हो जाने से सुसंस्कारित और श्रेष्ठ आचरण का नाश हो जाता है और कभी बादलों के होने से सूर्य का प्रकाश आकाश में वैसा ही नहीं दिखाई देता है, जैसे कुसंग पाकर व्यक्ति का ज्ञान नष्ट हो जाता है और सुसंग पाकर उत्पन्न हो जाता है।

जीवन में जब वासना की तेज आंधी आती है तो जो पूर्व में सुना या पढ़ा हुआ ज्ञान वैसे ही उड़ जाता है, जैसे आकाश से बादल उड़ जाते हैं। यह उसी तरह की बात है कि कितना भी सुंदर पुलस्त्य की तरह वंश क्यों न हो, तो भी रावण रूप कुपुत्र के उत्पन्न होने से पूरे वंश का यश समाप्त हो गया। ये वे ही लोग होते हैं, जो कभी दिन में प्रकाश के समय भी कभी कभी बादलों के रूप में आकाश में घिर जाते हैं और ज्ञान रूप सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर आने नहीं देते हैं।

निजी स्वार्थ के बादल जब जीवन के ज्ञान सूर्य को घेर लेते हैं तो गुरु शुक्राचार्य अपने अज्ञान का अंधकार ऐसा फैलाते हैं कि राजा बलि के ज्ञान प्रकाश की पृथ्वी को भी ढकना चाहते हैं, पर भक्त प्रह्लाद के पौत्र होने के कारण सत्संग के पूर्व में सत्संग संस्कार होने के कारण वह उससे उबरकर भगवान को समर्पित होकर धन्य हो गया, नहीं तो वह भी अंधकार के गर्त में चला जाता।

ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग।

होइ कुवस्तु सुवस्तु जिमि लखविन्द्र सुलच्छन लोग।।

घर, औषधि, पानी, कपड़ा और हवा संयोग से कु या सु हो जाती है। कु माने कुवस्तु और सु माने सुवस्तु। उसका अपना कोई न तो गुण होता है और न ही अवगुण। वह तो जहां जिस संगत से हवा बहकर आएगी, वह सुगंध भी ला सकती है और दुर्गन्ध भी ला सकती है।

-संत मैथिलीशरण (भाई जी)

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