इस नवरात्र में माता का गमन मानव कंधे पर, बेहद शुभ

महाशक्ति की उपासना पर्व शारदीय नवरात्र इस बार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 13 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। यह 21 अक्टूबर को महानवमी तक चलेगा। 22 अक्टूबर को नवमी में होम, नवरात्र व्रत की पारणा, दुर्गा विसर्जन एवं विजयदशमी मनाई जाएगी।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 12 Oct 2015 04:17 PM (IST) Updated:Wed, 14 Oct 2015 12:52 PM (IST)
इस नवरात्र में माता का गमन मानव कंधे पर, बेहद शुभ

वाराणसी । महाशक्ति की उपासना पर्व शारदीय नवरात्र इस बार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 13 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। यह 21 अक्टूबर को महानवमी तक चलेगा। 22 अक्टूबर को नवमी में होम, नवरात्र व्रत की पारणा, दुर्गा विसर्जन एवं विजयदशमी मनाई जाएगी।

देखा जाए तो इस बार माता का आगमन घोड़ा पर हो रहा है जिसका फल देश सहित आम जनमानस पर विपत्ति व बड़े राजनेता का निधन तो वहीं माता भगवती का गमन मानव कंधा पर हो रहा है जिसका फल आम जनमानस, देश, समाज के लिए अत्यंत लाभकारी एवं सुखदायक होगा। सब मिलाकर माता का आगमन घोड़े पर अशुभ तथा गमन मानव कंधा पर अति शुभ होगा। ख्यात ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 13 अक्टूबर को कलश स्थापन तथा ध्वजारोपण के लिए शुभ समय प्रात: 6.30 से 8.30 के बीच होगा। जो लोग इस समय में कलश स्थापन न कर पाएं तो वे दिन में 11.37 से 12.23 के बीच करें। इस समय अभिजीत मुहूर्त होगा जो अपने आप में अति शुभ माना जाता है।

विशेष महानिशा पूजन 20 अक्टूबर को मध्य रात्रि में होगा तो 21 अक्टूबर को महाअष्टमी व्रत तथा श्री महानवमी व्रत किया जाएगा। महाअष्टमी व्रत की पारणा उदयातिथि के अनुसार नवमी में अर्थात 22 अक्टूबर को प्रात: 7.11 बजे से पहले करनी चाहिए। महानवमी व्रत की पारणा दशमी अर्थात 22 अक्टूबर को ही प्रात: 7.11 बजे के बाद करनी चाहिए। नवरात्र का होम इत्यादि 22 अक्टूबर को प्रात: 7.11 बजे से पहले करना चाहिए। नवरात्र प्रारंभ तिथि प्रतिपदा 13 अक्टूबर को प्रात:काल तैलाभ्यंग स्नानादि कर मन में संकल्पादि लेना चाहिए। संकल्प में तिथिवार नक्षत्र गोत्र नाम इत्यादि लेकर माता दुर्गा की प्रसन्नार्थ प्रीत्यर्थ प्रसाद स्वरूप दीर्घायु, विपुल धन, पुत्र-पौत्र, स्थिर लक्ष्मी, कीर्ति लाभ, शत्रु पराजय, सभी तरह के सिध्यर्थ, शारदीय नवरात्र में कलश स्थापन, दुर्गापूजा कुमारी पूजा करेंगे, ऐसा संकल्प करना चाहिए। उसके उपरांत गणपति पूजन, पूर्णया वाचन, नांदी श्रद्ध, मातृका पूजन इत्यादि करना चाहिए। तदोपरांत मां दुर्गा का पूजन षोड्षोपचार या पंचोपचार करना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य पंडित द्विवेदी ने बताया कि शारदीय नवरात्र का महात्म्य वैदिक युग से चला आ रहा है। मारकंडेय पुराण में जो देवी का महात्म्य दुर्गा सप्तशती के द्वारा प्रकट किया गया, वहां पर वर्णित है कि शुंभ-निशुंभ और महिषासुरादि, तामसिक मिट्टी वाले असुरों के जन्म होने से देवता दुखी हो गए। सबने मिलकर चित्त शक्ति महामाया की स्तुति की। देवी ने वरदान दिया ‘डरो मत मैं अचिर काल में प्रकट होकर इन अतुल पराक्रमी असुरों का संहार करुंगी और तुम्हारे दुख को दूर करुंगी। मेरी प्रसन्नता के लिए तुम लोगों को आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से घट स्थापनपूर्वक दशमी तक नौ दिन पूजा करनी चाहिए।’ इसी आधार पर देवी नवरात्र का महोत्सव अनादि काल से आज तक चला आ रहा है।

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