शिवत्व का बोध

महाशिवरात्रि [20 फरवरी] भगवान शंकर और भगवती पार्वती अर्थात परमपुरुष और प्रकृति के महामिलन का महोत्सव है। यह हमें कल्याणकारी कायरें की ओर प्रवृत्त कर शिवत्व का बोध कराता है। डॉ. अतुल टंडन का विवेचन.

By Edited By: Publish:Tue, 14 Feb 2012 07:06 PM (IST) Updated:Tue, 14 Feb 2012 07:06 PM (IST)
शिवत्व का बोध

महाशिवरात्रि [20 फरवरी] भगवान शंकर और भगवती पार्वती अर्थात परमपुरुष और प्रकृति के महामिलन का महोत्सव है। यह हमें कल्याणकारी कायरें की ओर प्रवृत्त कर शिवत्व का बोध कराता है। डॉ. अतुल टंडन का विवेचन..

शिव अर्थात कल्याणकारी। शिव शब्द में इ-कार [इ की मात्रा] शक्ति का प्रतीक है। इ-रूपी शक्ति के पृथक हो जाने पर शिव भी शव हो जाता है। वस्तुत: शिव शब्द में अ‌र्द्धनारीश्वर स्वरूप समाहित है, जो इस तथ्य का द्योतक भी है कि शिव-शक्ति के मिलन से ही सृष्टि का निर्माण होता है। महाशिवरात्रि शिव [परमपुरुष] और शिवा [प्रकृति] के महामिलन का महोत्सव है। यह मिलन ही कल्याणकारी है और प्रेरणा देता है कि हमें कल्याणकारी कार्र्यो की ओर प्रवृत्त होकर शिवत्व का बोध प्राप्त करना चाहिए।

फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व आता है। शैव और वैष्णव, दोनों ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते हैं। वैष्णव इस तिथि को शिव चतुर्दशी कहते हैं। भगवान शिव को वेदों में रुद्र कहा गया है, क्योंकि ये रुत् अर्थात् दुख को नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार शिव और रुद्र एक परमेश्वर के ही पर्यायवाची शब्द हैं। इस दिन लोग शुक्ल-यजुर्वेद की रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करते हैं। पुराणों में एकादश [11] रुद्रों का उल्लेख मिलता है। महाशिवरात्रि का सौर संवत्सर [सौर वर्ष] के 11वें मास-फाल्गुन में होना शिव के रुद्र-रूप पर चिंतन करने के लिए प्रेरित करता है। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि चंद्र-दर्शन की आखिरी तिथि है, क्योंकि इसके बाद अमावस्या की रात्रि में चंद्र लुप्त हो जाता है। अमावस्या को कालरात्रि भी कहा जाता है और इससे एक दिन पूर्व की तिथि चतुर्दशी पर शिव का स्वामित्व होना उनके महाकाल रूप को उजागर करता है, इसलिए फाल्गुन-कृष्ण-चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा जाना युक्तिसंगत है।

धर्मग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शंकर और भगवती पार्वती का विवाह हुआ था। शिव और शक्ति के पावन परिणय की तिथि होने के कारण इसे महाशिवरात्रि का नाम दिया गया। इस दिन लोग व्रत रखकर शिव-पार्वती का विवाहोत्सव धूमधाम से मनाते हैं। काशी में महाशिवरात्रि के दिन निकलने वाली शिव-बारात तो विश्वविख्यात है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में हर घर शिवरात्रि की उमंग में रंग जाता है। महाकालेश्वर की नगरी उज्जयिनी [अवंतिका] में महाशिवरात्रि से 9 दिन पूर्व महाकाल का नवरात्र प्रारंभ हो जाता है। इसके नौ दिन महाशिवरात्रि के महापर्व को समर्पित होते हैं।

ईशानसंहिता के अनुसार, फाल्गुन-कृष्ण-चतुर्दशी की अ‌र्द्धरात्रि में भगवान शिव लिंङ्ग [चिह्न] रूप में प्रकट हुए थे। इस तिथि के मध्यरात्रिकालीन महानिशीथकाल में महेश्वर के निराकार ब्रह्म-स्वरूप प्रतीक शिवलिंङ्ग का आविर्भाव होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हो गई। शिवपुराण के अनुसार, शिव के दो रूप हैं- सगुण और निर्गुण। सगुण-रूप मूर्ति में साकार होता है, जबकि शिवलिंङ्ग निर्गुण-निराकार ब्रह्म का चिह्न है।

स्कंदपुराण महाशिवरात्रि को व्रतों में सर्वोपरि कहता है। इस व्रत के तीन प्रमुख अंग हैं- उपवास, शिवार्चन और रात्रि-जागरण। उपवास से तन शुद्ध होता है, अर्चना से मन पवित्र होता है तथा रात्रि-जागरण से आत्म-साक्षात्कार होता है। यही महाशिवरात्रि के व्रत का उद्देश्य है। शिव सद्गृहस्थ हैं, तो महायोगी भी। वे सभी के आराध्य हैं।

सही अर्थो में शिवचतुर्दशी (शिवरात्रि) का लक्ष्य है पांच ज्ञानेंद्रियों, पांच कर्मेद्रियों तथा मन, अहंकार, चित्त और बुद्धि-इन चतुर्दश [14] का समुचित नियंत्रण। यही सच्ची शिव-पूजा है। वस्तुत: इसी से शिवत्व का बोध होता है। यही अनुभूति ही इस पर्व को सार्थक बनाती है और यह पर्व समस्त प्राणियों के लिए कल्याणकारी बन जाता है।

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