कार्तिक पूर्णिमा पर हरिद्वार में उमड़ा आस्था का सैलाब, लाखों ने लगाई गंगा में डूबकी

कार्तिक पूर्णिमा पर्व पर हरिद्वार में आस्था का सैलाब उमड़ा। तारों की छांव में स्थान के महत्व को देखते हुए तड़के से ही गंगा घाटों में श्रद्धालुओं की भीड़ रही। पूरे घाट गंगा मैया के जयघोष से गुंजायमान रहे। वहीं, मठ-मंदिरों में घंटे-घड़ियाल बजते रहे।

By BhanuEdited By: Publish:Wed, 25 Nov 2015 09:49 AM (IST) Updated:Wed, 25 Nov 2015 04:16 PM (IST)
कार्तिक पूर्णिमा पर हरिद्वार में उमड़ा आस्था का सैलाब, लाखों ने लगाई गंगा में डूबकी

हरिद्वार। कार्तिक पूर्णिमा पर्व पर हरिद्वार में आस्था का सैलाब उमड़ा। तारों की छांव में स्थान के महत्व को देखते हुए तड़के से ही गंगा घाटों में श्रद्धालुओं की भीड़ रही। पूरे घाट गंगा मैया के जयघोष से गुंजायमान रहे। वहीं, मठ-मंदिरों में घंटे-घड़ियाल बजते रहे।
हरकी पैड़ी सहित अन्य गंगा घाटों पर भोर से श्रद्धालुओं ने स्नान शुरू कर दिया। इस दौरान भास्कर देव को अधर्य देकर सुख शांति की कामना की। स्नान के बाद गंगा तटों पर ही श्री हरि विष्णु भगवान की पूजा-अर्चना भी की गई।


कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए देश के विभिन्न राज्यों से आए श्रद्धालुओं की आमद भी ज्यादा रही। स्नान पर्व के चलते पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए हुए हैं।
इस दौरान हरिद्वार की सड़कों पर भी जाम लगा रहा। हाईवे पर वाहन रेंग- रेंग कर आगे बढ़ रहे हैं। वहीं रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन पर भारी भीड़ है। सड़क पर लंबे जाम के चलते लोगों की परेशानी भी बढ़ रही है।


कार्तिक पूर्णमा का धार्मिक महत्व
सृष्टि के प्रारंभ से ही कार्तिक पूर्णिमा की तिथि बड़ी ही खास रही है। पुराणों में इस दिन स्नान, व्रत, तप एवं दान को मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है।
कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। ऐसी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से मनुष्य अगले सात जन्म तक ज्ञानी, धनवान और भाग्यशाली होता है।
इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूर्ण श्रद्धा से पूजन करने से जातक को भगवान शिव जी की अनुकम्पा प्राप्त होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है।
पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में धर्म, वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था।
इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को पुन: उठते हैं और पूर्णिमा से कार्यरत हो जाते हैं। इसी दिन लक्ष्मी की अंशरूपा तुलसी का विवाह विष्णु स्वरूप शालिग्राम से होता है।
इन्ही सब खुशियों के कारण देवता स्वर्गलोक में दिवाली मनाते हैं इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार शरद् ऋतु को भगवान श्रीकृष्ण की महारासलीला का काल माना गया है। श्रीमद्भागवत के अनुसार शरद् पूर्णिमा की चाँदनी में श्रीकृष्ण का महारास संपन्न हुआ था।
कार्तिक पूर्णिमा में सूर्योदय से पूर्व स्नान से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय होने के पश्चात स्नान का महत्व कम हो जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, यज्ञ, अपनी समर्थानुसार पूर्ण श्रद्धा के साथ दान और गरीबों को भोजन आदि करने से सभी सांसारिक पापों से छुटकारा मिलता है| इस दिन अन्न, धन और वस्त्र दान का भी बहुत ही ज्यादा महत्व बताया गया है। यह भी मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ भी दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है।
इस दिन सायंकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाए जाते हैं और गंगाजी, नदियों को भी दीपदान किया जाता है।
इस दिन संध्याकाल में जो लोग अपने घरों को दीपक जला कर सजाते हैं, उनका जीवन सदैव आलोकित प्रकाश से प्रकाशित होता है। उन्हें अतुल लक्ष्मी, रूप, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसीलिए इस दिन अपने घर के आँगन, मंदिर, तुलसी, नल के पास, छतों में दीपक जलाने चाहिए।
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