होली पर्व को लेकर कई गांवों की अलग ही है कहानी

आदिवासी समुदाय अपनी कला व संस्कृति को लेकर समाज में एक अलग पहचान बनाए हुए है। रंगों का पर्व होली भी इस वर्ग के बहुलता वाले क्षेत्रों के कुछ गांवों में दो दिन पूर्व ही मनाई जाती है। इसका कारण बताया जा रहा है कि परंपरा पुरानी है। कुल देवता

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 19 Mar 2016 09:16 AM (IST) Updated:Sat, 19 Mar 2016 09:26 AM (IST)
होली पर्व को लेकर कई गांवों की अलग ही है कहानी


दुद्धी (सोनभद्र): आदिवासी समुदाय अपनी कला व संस्कृति को लेकर समाज में एक अलग पहचान बनाए हुए है। रंगों का पर्व होली भी इस वर्ग के बहुलता वाले क्षेत्रों के कुछ गांवों में दो दिन पूर्व ही मनाई जाती है। इसका कारण बताया जा रहा है कि परंपरा पुरानी है। कुल देवता को खुश रखने के लिए वे परंपरागत होलिका दहन के पूर्व ही होली मनाते आ रहे हैं। उनका मानना है कि यदि वे ऐसा नहीं किये तो गांव में संकट के पहाड़ टूट सकते हैं।

होली की कहानी के बाबत हरि किशुन खरवार ने बताया कि जब से वे होश संभाले हैं, तबसे उनके गांव में दो दिन पूर्व ही होली मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसके पीछे बुजुर्गो ने बताया है कि गांव में कोई अहित न हो, इसके लिए असुरराज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के जीवित अवस्था के दौरान ही वे होली को सादगी से मनाते हैं। अन्य बातें भी हैं चर्चा में वहीं गोहड़ा गांव के बुजुर्ग राजेंद्र प्रसाद गहवा ने इस तर्क को खारिज करते हुए बताया कि उनके बुजुर्गों ने कुछ चिह्नित गांवों में होली को पहले मनाने के पीछे गांव में आई किसी बड़ी बिपदा को वजह बताया। उनका कहना था कि जैसे किसी परिवार में किसी पर्व के दिन अशुभ घटना हो जाती है,तो लोग उस पर्व को मनाने से परहेज करते हैं। ठीक उसी तरह होली के दिन किसी गांव में बड़ी अनहोनी घटित होने के बाद से यह परंपरा पुरखों द्वारा शुरू की गई थी। जो अब विस्तार रूप लेते हुए कई गांवों तक फैल चुकी है। उन्होंने बताया कि वे आज भी फाल्गुन माह में होलिका जलाते हैं और चैत माह में धूल उड़ाकर ही होली मनाते है। गांव के कई अन्य ग्रामीणों ने बताया कि इस पर्व को वे हर्षोउल्लास के साथ मनाते चले आ रहे हैं।
रंग से दूर करते हैं मतभेद - इस त्योहार के जरिए छोटी- छोटी बातों को लेकर वर्ष भर चलने वाले मतभेद को दूर किया जाता है। ताकि रंगों के जरिये लोगों में आपसी प्रेम व भाईचारा बनी रहे। हालांकि ग्रामीणों ने वर्तमान परिवेश में हुए परिवर्तन का जिक्र करते हुए कहा कि अब तो कुछ लोग नशे की लत की वजह से होली के रंग को बदरंग करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। विशेष कर युवा पीढ़ी नशे में धुत होकर उत्पात मचाते हैं। जिससे कई स्थानों पर हिंसक झड़प भी हो जाती है।

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