गयासुर नामक राक्षस इसी कुआ का जल पीता था

विश्व प्रसिद्ध राजकीय पितृपक्ष मेले के 10वें दिन बुधवार को पिंडदानियों ने विष्णुपद मंदिर से कुछ ही दूरी पर श्रीगया सिर पिंडवेदी व गया कूप वेदी में पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान किया। गया सिर पिंडवेदी में सैकड़ों पिंडदानी गयासुर को शांति रखने व पितरों को मुक्ति के

By Preeti jhaEdited By: Publish:Thu, 08 Oct 2015 04:47 PM (IST) Updated:Thu, 08 Oct 2015 04:52 PM (IST)
गयासुर नामक राक्षस इसी कुआ का जल पीता था

गया। विश्व प्रसिद्ध राजकीय पितृपक्ष मेले के 10वें दिन बुधवार को पिंडदानियों ने विष्णुपद मंदिर से कुछ ही दूरी पर श्रीगया सिर पिंडवेदी व गया कूप वेदी में पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान किया। गया सिर पिंडवेदी में सैकड़ों पिंडदानी गयासुर को शांति रखने व पितरों को मुक्ति के लिए पिंडदान किया। यहां इतने पिंडदानी पितरों का पिंडदान करने के लिए आए थे कि जगह कम पड़ गया था। उसके बाद सैकड़ों पिंडदानी श्रीगया सिर पिंडवेदी के छत पर भी पिंडदान कर रहे थे। उसके बावजूद भी सैकडों पिंडदानी जगह की कमी के कारण ईधर-उधर पिंडदान कर रहे थे।

संजय पांडेय ने कहा कि यहां की ऐसी मान्यता है कि पिंडदान करने के बाद पितर विष्णु लोक में चले जाते है। इस पिंड वेदी से करीब 10 कदम की दूरी पर अवस्थित है गया कूप वेदी। जानकार कहते है कि गयासुर नामक राक्षस इसी कुआ का जल पीता था। इसलिए गया कूप पिंड वेदी में त्रिपिण्डी श्रद्ध करने से प्रेत आत्मा को मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि जिस पिंडदानी के पितर प्रेत बनकर परेशान करते है। यहां प्रेतबाधा से मुक्ति कराने के लिए पंडितजी पिंडदान करने से पहले एक नारियल मंगवाते है और उममें जो प्रेत परेशान करता है। उस नारियल को संकल्प कर प्रेत को नारियल में बंद कर गया कूप में अवस्थित कुआ में मंतर पढ़कर उसमें डाल देते है। ऐसा करने से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है। गया कूप पिंडवेदी में दुघर्टना व जिसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। वैसे मरे हुए प्रेतात्मा को मुक्ति दिलाने के लिए पिंडदान किया जाता है।

श्रवण कुमार पांडेय ने कहा कि इन दोनों जगह पर जौ के आटा से पिंड बनाकर पिंडदान करने का विधान है।गया, जागरण संवाददाता : विश्व प्रसिद्ध राजकीय पितृपक्ष मेले के 10वें दिन बुधवार को पिंडदानियों ने विष्णुपद मंदिर से कुछ ही दूरी पर श्रीगया सिर पिंडवेदी व गया कूप वेदी में पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान किया। गया सिर पिंडवेदी में सैकड़ों पिंडदानी गयासुर को शांति रखने व पितरों को मुक्ति के लिए पिंडदान किया। यहां इतने पिंडदानी पितरों का पिंडदान करने के लिए आए थे कि जगह कम पड़ गया था। उसके बाद सैकड़ों पिंडदानी श्रीगया सिर पिंडवेदी के छत पर भी पिंडदान कर रहे थे। उसके बावजूद भी सैकडों पिंडदानी जगह की कमी के कारण ईधर-उधर पिंडदान कर रहे थे। संजय पांडेय ने कहा कि यहां की ऐसी मान्यता है कि पिंडदान करने के बाद पितर विष्णु लोक में चले जाते है। इस पिंड वेदी से करीब 10 कदम की दूरी पर अवस्थित है गया कूप वेदी। जानकार कहते है कि गयासुर नामक राक्षस इसी कुआ का जल पीता था। इसलिए गया कूप पिंड वेदी में त्रिपिण्डी श्रद्ध करने से प्रेत आत्मा को मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि जिस पिंडदानी के पितर प्रेत बनकर परेशान करते है। यहां प्रेतबाधा से मुक्ति कराने के लिए पंडितजी पिंडदान करने से पहले एक नारियल मंगवाते है और उममें जो प्रेत परेशान करता है। उस नारियल को संकल्प कर प्रेत को नारियल में बंद कर गया कूप में अवस्थित कुआ में मंतर पढ़कर उसमें डाल देते है। ऐसा करने से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है। गया कूप पिंडवेदी में दुघर्टना व जिसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। वैसे मरे हुए प्रेतात्मा को मुक्ति दिलाने के लिए पिंडदान किया जाता है। श्रवण कुमार पांडेय ने कहा कि इन दोनों जगह पर जौ के आटा से पिंड बनाकर पिंडदान करने का विधान है।

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