ममता ही प्रभु प्राप्ति का साधन

दुनिया से प्रेम व प्रभु से ममता करनी चाहिए। ममता ही प्रभु प्राप्ति का साधन है। यह बात सेक्टर 12 स्थित सनातन धर्म शिव मंदिर में पुरुषोत्तम मास कथा सुनाते हुए वृंदावन वासी राघव कृष्ण महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि ममता दुनिया से करेंगे तो हमारा मोक्ष नहीं हो सकता है। ममता ही बंधन का कारक है। ममता बस प्रभु से करो। परमात्मा से ममता हो जाए तो जीते जी मोक्ष है। दुनिया से प्रेम करो। बुद्धि संसार के कार्यो में लगानी चाहिए।

By Edited By: Publish:Sun, 09 Sep 2012 01:48 PM (IST) Updated:Sun, 09 Sep 2012 01:48 PM (IST)
ममता ही प्रभु प्राप्ति का साधन

पानीपत, जागरण संवाद केंद्र। दुनिया से प्रेम व प्रभु से ममता करनी चाहिए। ममता ही प्रभु प्राप्ति का साधन है। यह बात सेक्टर 12 स्थित सनातन धर्म शिव मंदिर में पुरुषोत्तम मास कथा सुनाते हुए वृंदावन वासी राघव कृष्ण महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि ममता दुनिया से करेंगे तो हमारा मोक्ष नहीं हो सकता है। ममता ही बंधन का कारक है। ममता बस प्रभु से करो। परमात्मा से ममता हो जाए तो जीते जी मोक्ष है। दुनिया से प्रेम करो।

बुद्धि संसार के कार्यो में लगानी चाहिए। मन से भगवान का भजन व बुद्धि से संसार का कार्य करना चाहिए। जैसी ममता बिदुरानी ने की थी। प्रभु ने दुर्योधन का छप्पन भोग त्याग कर बिदुरानी की कुटिया में छिलके का भोग लगाया। प्रभु श्रीराम ने शबरी के यहां जूठे बेर खाए। राघव महाराज ने कहा कि आज के परिवेश में प्रेम को लोग वासना मय ही जानते हैं। लेकिन प्रेम वासना व स्वार्थ से परे है। कथा के दौरान यजमान घनश्याम इंदू सिंगला, बिनोद गुप्ता, रमेश वर्मा, मदन बिंदल, अशोक गर्ग, रमेश कथूरिया, किरण गुलाटी, रश्मि, पिंकी, शशि कात्याल व राजरानी मौजूद थे। अहंकार पतन का कारक

अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। व्यक्ति जब अहंकार में चूर होता है तो वह स्वयं का शत्रु बन जाता है। अहंकार ही पतन कारक है। मन से अहंकार को सदा के लिए त्याग देना चाहिए। यह बात शनिवार को कूटानी रोड स्थित अवध धाम मंदिर में पुरुषोत्तम मास की कथा सुनाते हुए पंडित राधे राधे महाराज ने कही।

शास्त्रों व पुराणों में इस बात का वर्णन मिलता है कि जो व्यक्ति, देवता, राक्षस व महापुरुष अहंकार के वश में होता है उसका पतन शीघ्र ही प्रारंभ हो जाता है। अहंकार ही पतन का कारण है। रावण के पतन का कारण अहंकार ही था। राक्षस होने के बाद भी रावण विद्वानों में शुमार किया जाता था। कंस का नाश केवल अहंकार से हुआ। श्रद्धा से अपने अराध्य देव के प्रति समर्पण भाव जागृत करके फिर से भक्ति करनी चाहिए। सुबह की बेला में ज्योतिषाचार्य पंडित दाऊ जी महाराज ने मुख्य यजमान व वैदिक ब्राह्मणों के साथ यज्ञशाला में यज्ञ किया।

दूसरों का कल्याण करें

दूसरे का कल्याण वही कर सकता है जिसका स्वयं का कल्याण हो गया हो। बुझा हुआ दीपक दूसरे दीये को जला नहीं सकता है। यह बात देवी मंदिर में शनिवार को पुरुषोत्तम मास की कथा सुनाते हुए आचार्य धर्मपाल महाराज ने कही।

स्वयं बंधा हुआ व्यक्ति दूसरों को बंधन मुक्त नहीं कर सकता है। लोभी गुरु लालची चेला दोनों नरक में ढेलम ढेला। तुलसी व कबीर जैसे लोग इसलिए अपना नाम लिखते हैं जिसका अभिप्राय भजन हमने अपने सुधार के लिए व अपनी मन की शांति के लिए लिखा है। किसी से पुरस्कार पाने व दूसरों को सुधारने के लिए नहीं लिखा।

धर्मपाल ने कहा कि वैज्ञानिक नई औषधि का प्रयोग पशु पक्षियों पर करते हैं। वैद्य दवा का आविष्कार करके उसका प्रयोग अपने ऊपर करते थे। ताकि उसका नुकसान सिर्फ उन्हीं को उठाना पड़े। कोई लाभ हो तो सभी को हो। कथा के मुख्य अतिथि अनिल सर्राफ रहे। इस अवसर पर विनित गर्ग, प्रमोद गुप्ता, बलदेव राज सेतिया व चरणजीत ढींगड़ा मौजूद थे।

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