पांच हजार साल पुरानी द्वापरकालीन परंपरा आज भी जीवंत है

संस्कृति और सद्भाव के विलक्षण स्थल हैं बरसाना और नंदगांव। नित रोज और पल-पल आधुनिकता की होड़ में दौड़ रही दुनिया यहां की संस्कृति को लेशमात्र भी प्रभावित नहीं कर पाई है। करीब पांच हजार साल पुरानी द्वापरकालीन परंपरा आज भी जीवंत है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 28 Feb 2015 01:12 PM (IST) Updated:Sat, 28 Feb 2015 01:16 PM (IST)
पांच हजार साल पुरानी द्वापरकालीन परंपरा आज भी जीवंत है

बरसाना। संस्कृति और सद्भाव के विलक्षण स्थल हैं बरसाना और नंदगांव। नित रोज और पल-पल आधुनिकता की होड़ में दौड़ रही दुनिया यहां की संस्कृति को लेशमात्र भी प्रभावित नहीं कर पाई है। करीब पांच हजार साल पुरानी द्वापरकालीन परंपरा आज भी जीवंत है।

हर वर्ष होली के रंग इस परंपरा को और चटख कर देते हैं। दोनों गांवों के बीच आज तक कोई भी वैवाहिक संबंध नहीं है। बरसाने की राधा हैं और नंदगांव के कान्हा, यही रिश्ता दोनों जगहों के वाशिंदों के बीच आज तक कायम है। एक -दूसरे को ऐसी-ऐसी गारी देते हैं कि और कहीं की बात हो, तो संघर्ष हो जाए, मगर यहां मजाल क्या कि कोई चूं भी कर दे। होली पर तो कान्हा को सीधी-सीधी गालियां दी जाती हैं।

तीनों लोको के पालनहार श्रीकृष्ण चाहे दुनिया में भगवान के रूप में पुजते हैं, लेकिन बरसाना में उन्हें प्रेमभरी गालियां देकर बुलाते हैं। लठामार होली के समाज गायन के दौरान गोस्वामीजन सामरे कन्हैया को गालियां देते हुए पद गाते है कि 'गावैं दे दे तारियां, गारियां ब्रज की नारियां सुकुमारि.. नंद के नंदमहल में, ब्रज के चंद्रमहल में, रसगार मिल बरसाने की गोरी यासे गावै नवल किशोरी, तुम सुनो नंद के नंदा, तुम्है कौ पूछै ब्रज चंदा..।Ó गालियों में कान्हा की बहन को सबसे पहले निशाना बनाते है 'नंद नंदन तेरी बहन छैल छिलकारी, याकी श्रीदामा ते यारी।Ó यही नहीं, कान्हा की यशोदा मैया पर आक्षेप लगाने से भला बरसानावासी क्यों चुकें, वे कुछ इस तरह मां यशोदा 'रानी, काऊकारे सौं रति मानी। नंद नंदन बड़ी विनोदन तेरी ताई, जाकि सब कोई करे बड़ाई।Ó कान्हा की बुआ के लिए कहते हैं, 'लाला तेरी बुआ, करे झूट के पुआ।Ó ऐसे में भला कान्हा की काकी कैसे रह सकती है। 'लाला अति चंचल तेरी काकी, वो तो काम कला में बांकी।Ó

इस दौरान नंदबाबा के मित्रों की वधुओं पर भी कटाक्ष किया जाता है। 'तेरी वृद्ध जनन की बहू, वो तो रसिकन की है गऊ। लाला तेरी मौसी, वो रहत सदा मदहोशी।Ó 'नंद नंदन तेरी नानी, या की बात काऊ न छानी।Ó कान्हा की मामी को भी गालियां पड़ती हैं।

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