Dev Diwali: देव दिवाली के दिन कैसे करें पूजा, जानें पूजन सामग्री और समय

Dev Diwali दिवाली के 15 दिन बात देव दीपावली मनाई जाती है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का दिन होता है। इस दिन भोलेनाथ की त्रिमूर्ति को त्रिपुरासुर के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि देवों ने इसी दिन दिवाली मनाई थी।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 28 Nov 2020 07:00 PM (IST) Updated:Sun, 29 Nov 2020 01:35 PM (IST)
Dev Diwali: देव दिवाली के दिन कैसे करें पूजा, जानें पूजन सामग्री और समय
Dev Diwali: देव दिवाली के दिन कैसे करें पूजा, जानें पूजन सामग्री और समय

Dev Diwali: दिवाली के 15 दिन बात देव दीपावली मनाई जाती है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का दिन होता है। इस दिन भोलेनाथ की त्रिमूर्ति को त्रिपुरासुर के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि देवों ने इसी दिन दिवाली मनाई थी। यही कारण है कि इसे देव दिवाली के नाम से जाना जाता है। देव दीपावली का महत्व बहुत ज्यादा होता है। इस दिन पूजा करने के लिए कुछ चीजों की आवश्यकता होती है जिसकी जानकारी हम आपको नीचे दे रहे हैं। साथ ही समय और विधि की जानकारी भी दे रहे हैं।

देव दिवाली पूजा समाग्री: एक चौकी भगवान गणेश और शिव जी की मूर्ति और शिवलिंग पीतल या मिट्टी का दीपक तेल और घी के लिए दीपक और कपास की डिबिया कपड़े का एक पीला टुकड़ा मौली- 2 जनेऊ- 2 बेल पत्र दूर्वा घास फूल इत्र धूप नैवेद्य फल ताम्बूल - नारियल, पान, सुपारी, दक्षिणा, फल / केला (दो सेट) हल्दी कुमकुम / रोली चंदन कपड़े का ताजा टुकड़ा या अप्रयुक्त तौलिया अभिषेक के लिए- जल, कच्चा दूध, शहद, दही, पंचामृत, घी गंगाजल कपूर (कपूर)

देव दीपावली तिथि और पूजा मुहूर्त:

कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 29 नवंबर, रविवार दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से हो रहा है। यह तिथि 30 नवंबर, सोमवार को दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक है। ऐसे में देव दीपावली का त्यौहार 29 नवंबर दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा का समय 2 घंटे 40 मिनट का है। 29 नवंबर को शाम 05 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट के बीच देव दीपावली की पूजा संपन्न कर लेनी चाहिए।

देव दीपावली पूजा विधि: सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनें। सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें। फिर बाद में शाम को प्रदोष काल में पूजा करें। लेकिन इससे पहले एक बार स्नान दोबारा करें और फिर साफ कपड़ें पहनें। एक चौकी लें। इस पर पीले फूल बिछाएं। इस पर गणेश जी, शिव जी और शिवलिंग स्थापित करें। इनके सामने तेल या घी का दीपक जलाएं। गणेश जी की पूजा करें और उन्हें हल्दी, चंदन कुमकुम, अक्षत, मौली, जनेऊ, दुर्वा घास के बाद गंडम (इत्र) पुष्पक) फूल और दूर्वा घास, दीपम (दीपक), धुप (धूप) और नैवेद्य (भोजन) चढ़ाएं। दो पान के पत्तों पर ताम्बूलम रख, सुपारी, दक्षिणा और फलों को अर्पित करें। फिर शिव जी की पूजा करें। शिव जी का अभिषेक करें। शिव लिंग/मूर्ति को पानी, कच्चे दूध, शहद, दही, घी और पंचामृत से अभिषेक करें। फिर इन्हें पोंछ लें। फिर इन्हें चंदन, मौली, जनेऊ, गंधम (इत्र) पुष्पक) फूल और बेल पत्र (विल्व), दीपम (दीपक), धुप (धूप) और नैवेद्य (भोजन) अर्पित करें। दो पान के पत्तों पर ताम्बूलम रख, सुपारी, दक्षिणा और फलों को अर्पित करें। भगवान शिव की आरती कपूर से कर पूजा का समापन करें।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '

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