पौराणिक मत के अनुसार नाग पाताल लोक में रहते हैं

कभी यहां नाग शासकों राज हुआ करता था। यहां के राजा भोगावतीपुरवरेश्वर की उपाधि धारण करते थे। इस संबंध में कुछ प्रमाणिक जानाकारियां धार्मिक ग्रंथों में मौजूद है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 03 Aug 2016 04:44 PM (IST) Updated:Wed, 03 Aug 2016 04:59 PM (IST)
पौराणिक मत के अनुसार नाग पाताल लोक में रहते हैं

छत्तीसगढ़ का बस्तर वर्तमान में भले ही नक्सलियों के गढ़ के तौर पर पहचाना जाता हो, लेकिन इसका इतिहास नाग पौराणिक कथाओं से भरा हुआ है।

कभी यहां नाग शासकों राज हुआ करता था। यहां के राजा भोगावतीपुरवरेश्वर की उपाधि धारण करते थे। इस संबंध में कुछ प्रमाणिक जानाकारियां धार्मिक ग्रंथों में मौजूद है।

वाल्मीकि रामायण (5.12.12) में नाग कन्याओं के अप्रतिम सौन्दर्य का उल्लेख है। पौराणिक मत के अनुसार नाग पाताल लोक में रहते हैं। रामायण के अरण्य काण्ड (32:13-14) में ही उल्लेखित है कि महर्षि अगस्त्य के आश्रम के निकट नागों की यह राजधानी थी। भोगावती का उल्लेख एक नदी के रूप में मिलता है।

महाभारत के अनुसार भी भोगवती दक्षिणापथा में ही स्थित है जिसके शासक वासुकि, तक्षक तथा एरावत थे। बौद्धग्रंथों में भोगवती का उल्लेख हिरण्यमयी नगरी के रूप में किया गया है।

प्राचीन बस्तर के नाग शासक सोमेश्वरदेव प्रथम (1069-1111 ई.) के लिये भी भोगवती स्वामी का उल्लेख हुआ है। प्राचीन बस्तर में शासन करने वाले सभी नाग राजा भोगावतीपुरवरेश्वर की उपाधि भी धारण करते थे।

आलम यह है कि बस्तर के बारसूर ग्राम के नेगी भी वर्तमान में स्वयं को नागवंशी राजाओं के वंशज मानते हैं। ये मूलतः आदिवासी हैं।

नौवी शताब्दी में पूर्वी चालुक्यों के चक्रकूट पर आक्रमण और विजय की जानकारी मिलती है। इसी काल में किसी नागवंशी सामंत को माण्डलिक बनाया गया। वल्लभराज (925-980 ई.) प्रथम ज्ञात नालवंशीय राजा है जिसकी पुष्टि एर्राकोट से प्राप्त एक तेलुगु अभिलेख से होती है।

मालवा के सिन्धुराजा के दरबारी कवि पद्मगुप्त परिमल नें महाकाव्य 'नवसाहसांकचरित' की 1005 ई. के लगभग रचना की थी जिसमें नागवंशी राजा शंखपाल का उल्लेख है जिसने सिंधुराज की युद्ध में सहायता की थी। यह भी उल्लेख है कि राजा शंखपाल की पुत्री शशिप्रभा का विवाह सिन्धुराज से किया जाता है।

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