माता मंदिर माइसरखाना

यहां से लगभग 29 किमी. दूर मानसा रोड स्थित माइसरखाना के माता के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। इसकी मान्यता हिमाचल प्रदेश स्थित च्वाला जी मंदिर के समान है। माता की जोत के दर्शनों के लिए ही लाखों श्रद्धालु यहां पर आते हैं।

By Edited By: Publish:Sat, 20 Oct 2012 12:49 PM (IST) Updated:Sat, 20 Oct 2012 12:49 PM (IST)
माता मंदिर माइसरखाना

बठिंडा। यहां से लगभग 29 किमी. दूर मानसा रोड स्थित माइसरखाना के माता के मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। इसकी मान्यता हिमाचल प्रदेश स्थित च्वाला जी मंदिर के समान है। माता की जोत के दर्शनों के लिए ही लाखों श्रद्धालु यहां पर आते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-

दंतकथा के अनुसार, 1515 ई. में यहां रहता किसान बाबू कमालू दास नथाना वाले बाबा कालूराम का शिष्य था। कमालू भक्त प्रत्येक बरस अपने गुरु बाबा कालूनाथ जी के साथ दर्शनों के लिए च्वाला जी जाया करता। सालों साल बीतने पर कमालू बुजुर्ग हो गया। उनमें ज्वाला जी जाने की हिम्मत नहीं रही। फिर भी जैसे-तैसे वह वहां गया और फरियाद लगाई कि हे माता इस बार तो बड़ी मुश्किल से तेरे दरबार आ गया। हो सकता है कि अगले साल न आ सकूं। अच्छा हो कि मेरे गांव में ही दर्शन दे दिया करो। देवी मां पे जोत में दर्शन दिए और गांव में मंदिर बनाने को कहा। साथ ही आशीर्वाद दिया कि साल में आने वाले चैत्र व शारदीय नवरात्र की छठ को माइसरखाना के मंदिर की जोत में माता का प्रकाश आएगा। इस जोत के दर्शन से श्रद्धालुओं को ज्वाला जी धाम के समान फल और इच्छापूर्ति भी होगी। गांववालों ने कमालू भक्त के सहयोग से मंदिर बनवाया और मंदिर धीरे-धीरे प्रसिद्ध हुआ। उसी दिन से प्रत्येक बरस होने वाले दोनों नवरात्र में माता की च्योति जलती है। षष्ठी को यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें बठिंडा ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के प्रमुख नगरों से पांच लाख से अधिक लोग पहुंचते हैं।

पौराणिक मान्यता-

मंदिर के समीप 35-40 फुट ऊंचा मिट्टी का एक टीला है, जो अब 22 फुट ऊंचा रह गया है। मान्यता है कि जो टीले के नीचे से सात मुट्ठी मिट्टी उठाकर टीले के ऊपर डालता है उसकी मन्नत-मुराद पूरी होती है। नवजन्मे बच्चों का मुंडन संस्कार भी यहां कराया जाता है।

सबसे बड़ा संस्कृत कालेज-

मंदिर का संचालन मालवा प्रांतीय ब्राह्मण सभा कर रही है। वर्तमान में सोमनाथ शर्मा प्रबंध कमेटी के प्रधान हैं। सरकार ने मंदिर विकास के लिए 84 लाख रुपये का फंड जारी किया है। मंदिर कमेटी यहां प्राइमरी व हाई स्कूल चला रही है। यहां पंजाब का सबसे बड़ा संस्कृत कालेज भी है। निर्माणाधीन इमारत मुकम्मल होने वाली है, जिसमें डिग्री कालेज एमबीए, बीए, बीसीए आदि प्रोफेशनल कोर्स चलाए जाएंगे।

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