Jitiya Vrat Katha: अश्वत्थामा ने गर्भ में पल रहे बच्चे की हत्या के लिए चलाया था ब्रह्मास्त्र, पढ़ें जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

Jitiya Vrat Katha संतान के सुख और सौभाग्य के लिये रखा जाने वाला व्रत है जीवित्पुत्रिका व्रत। पुत्र की दीर्घ आयु आरोग्य और सुखी जीवन के लिए इस दिन माताएं व्रत रखती हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 09 Sep 2020 06:00 AM (IST) Updated:Thu, 10 Sep 2020 10:56 AM (IST)
Jitiya Vrat Katha: अश्वत्थामा ने गर्भ में पल रहे बच्चे की हत्या के लिए चलाया था ब्रह्मास्त्र, पढ़ें जीवित्पुत्रिका व्रत कथा
Jitiya Vrat Katha: अश्वत्थामा ने गर्भ में पल रहे बच्चे की हत्या के लिए चलाया था ब्रह्मास्त्र, पढ़ें जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

Jitiya Vrat Katha: संतान के सुख और सौभाग्य के लिये रखा जाने वाला व्रत है जीवित्पुत्रिका व्रत। पुत्र की दीर्घ आयु, आरोग्य और सुखी जीवन के लिए इस दिन माताएं व्रत रखती हैं। तीज की तरह यह व्रत भी बिना आहार और निर्जला रखना पड़ता है। तीन दिन तक चलने वाले इस व्रत को छठ पर्व की ही तरह बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस व्रत को स्थानीय भाषा मे जितिया कहा जाता है। ज्योतिषाचार्या साक्षी शर्मा के अनुसार जितिया व्रत इस वर्ष गुरुवार, 10 सितंबर को रखा जाएगा।

कब है व्रत का शुभ मुहूर्त

जितिया व्रत का शुभ मुहूर्त 10 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से अगले दिन 11 सितंबर को 4 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। इसके बाद व्रत पारण का शुभ समय 11 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक रहेगा।

कैसे करें जितिया व्रत

अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका मनाया जाता है। इसे जिउतिया या जितिया व्रत भी कहा जाता है। छठ पर्व की तरह जितिया व्रत पर भी नहाय-खाय की परंपरा होती है। यह पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है। सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि और उन्नती के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। नवमी तिथि यानी अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है, यानी व्रत खोला जाता है।

व्रत का इतिहास

महाभारत के युद्ध में पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। सीने में बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। कहा जाता है कि सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी ब्रह्मास्त्र से मार डाला।

ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जितिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है।

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