तो इसलिए माघ मास इतना महत्वपूर्ण है

भारतीय संस्कृति में वैसे तो बारहों महीनों में कोई न कोई महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार होता है, लेकिन धार्मिक दृष्टिï से माघ मास को विशेष स्थान प्राप्त है। मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम का माघ नाम पड़ा। ऐसी मान्यता है कि इस मास में शीतल जल

By Preeti jhaEdited By: Publish:Thu, 15 Jan 2015 12:02 PM (IST) Updated:Thu, 15 Jan 2015 12:10 PM (IST)
तो इसलिए माघ मास इतना महत्वपूर्ण है

भारतीय संस्कृति में वैसे तो बारहों महीनों में कोई न कोई महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार होता है, लेकिन धार्मिक दृष्टिï से माघ मास को विशेष स्थान प्राप्त है। मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम का माघ नाम पड़ा।

ऐसी मान्यता है कि इस मास में शीतल जल में डुबकी लगाने वाले पापमुक्त होकर स्वर्ग लोक जाते हैं। प्रयाग में प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है। हज़ारों भक्त गंगा-यमुना के संगम स्थल पर माघ मास में पूरे तीस दिनों तक (पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक) कल्पवास करते है। ऐसी मान्यता है कि इस मास में ज़रूरतमंदों को सर्दी से बचने योग्य वस्तुओं, जैसे- ऊनी वस्त्र, कंबल और आग तापने के लिए लकड़ी आदि का दान करने से अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

वैसे तो इस मास की प्रत्येक तिथि पवित्र है, लेकिन इस दौरान कुछ ख़्ाास व्रत-त्योहार भी मनाए जाते हैं, जो इस प्रकार हैं -

मकर संक्रांति- सूर्य का मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रांति कहलाता है। इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। इस दिन स्नान-दान और जप-तप आदि का अत्यधिक महत्व है। उत्तर प्रदेश में इस दिन को खिचड़ी पर्व के नाम से जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाने की सामग्री और तिल का दान दिया जाता है। दक्षिण भारत में इसे पोंगल और असम में बिहू कहा जाता है।

सकट चौथ- माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ या वक्रतुण्ड चतुर्थी कहते हैं। संतान की लंबी आयु और आरोग्य के लिए इस दिन स्त्रियां व्रत रखती हैं। इस रोज़ गणपति के पूजन के साथ चंद्रमा को भी अघ्र्य दिया जाता है।

अचला सप्तमी- माघ मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी को अचला, रथ, पुत्र या भानु सप्तमी कहा जाता है। यह व्रत करने से सौभाग्य, संतान और अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रती को एक व$क्त नमक रहित भोजन या फलाहार करना चाहिए।

भीष्माष्टïमी एवं माघी पूर्णिमा-माघशुक्ल पक्ष की अष्टïमी भीमाष्टïमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था। उन्हीं की पावन स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है। माघी पूर्णिमा को एक मास का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इस दिन सत्यनारायण कथा और दान-पुण्य को अति फलदायी माना गया है।

षट्लिा एकादशी- इस दिन छह प्रकार से तिल के सेवन का विधान है। इसीलिए इसे षट्तिला एकादशी कहा जाता है। इस दिन तिल के जल से स्नान, तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल मिले जल का पान, तिल का भोजन तथा तिल का दान किया जाता है।

मौनी अमावस्या- माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को मौन रहकर स्नान-दान करना चाहिए। यदि इस दिन सोमवार हो तो इसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है, इससे इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

वसंत पंचमी- माघ मास की शुक्ल पंचमी को भगवान श्रीकृष्ण के कंठ से देवी सरस्वती का आविर्भाव हुआ था। इसीलिए यह तिथि वागीश्वरी जयंती एवं श्रीपंचमी के नाम से प्रसिद्धि है। सरस्वती देवी की वार्षिकी पूजा-अर्चना के साथ विद्यार्थी विद्यारंभ करते हैं। वसंत ऋतु के स्वागत में इस दिन पीले वस्त्र पहनने और इसी रंग की खाद्य सामग्री का भोग लगाने की भी परंपरा है।

इस तरह अनेक पवित्र पर्वों के समन्वय की वजह से श्रद्धालुओं के लिए माघ मास को अति पुण्य फलदयी माना जाता है।

हमारे अमूल्य धरोहर राधा-कृष्ण का समन्वय ब्रह्मïवैवर्त पुराण जिस पुराण में कृष्ण ने अपनी पूर्ण ब्रह्मïरुपता को प्रकट कर दिया है, उसे पुराणवेताओं ने ब्रह्मïवैवर्त नाम से स्वीकार किया है। इसमें विवर्त शब्द का अभिप्राय राधा से है। यह महापुराण 10वें स्थान पर है। इसकी श्लोक संख्या 18,000 और अध्यायों की संख्या 266 है। इसके चार खंड हैं -

ब्रह्मïखंड- इसके 30 अध्यायों में श्रीकृष्ण के महान उज्ज्वल तेजपुंज, गोलोक, बैकुंठ लोक और शिव लोक की स्थिति का वर्णन करके गोलोक में माधव के पूर्णरूपेण अवतार का वर्णन किया गया है। माघ मास में ब्रह्मïखंड के पढऩे-सुनने और इसके दान का अधिक महत्व है।

प्राकृतिक खंड- इसमें 67 अध्याय हैं, उनमें पंचदेवी दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री तथा राधा का विस्तृत रूप में वर्णन है। इन देवियों को प्रकृति का अंश माना जाता है।

गणपति खंड- इस खंड में 46 अध्याय हैं। इसमें शिव-पार्वती के विवाह, स्कन्द की उत्पत्ति, गणपति को पुत्र रूप में पाने के लिए पार्वती जी का पुण्यक व्रत एवं गणेश जी से जुड़े सभी प्रसंगों का वर्णन किया गया है।

श्रीकृष्ण जन्म खंड- कृष्ण की समस्त लीलाओं का चित्रण, वैराग्य, धर्म और सदाचार आदि के सदुपदेश इसी खंड में समाहित हैं।

ब्रह्मïवैवर्त पुराण का प्रधान लक्ष्य है- श्रीकृष्ण के चरित्र का विस्तृत रूप से वर्णन। इसी वजह से श्रीकृष्ण के भक्तों में इस ग्रंथ के प्रति गहरी आस्था है।

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