Puja Path: शिवलिंग पर क्यों चढ़ाते हैं भांग व धतूरा, ये दो कथाएं हैं प्रचलित

भगवान शिव की पूजा करते वक्त उन पर भांग व धतूरा क्यों चढ़ाया जाता है। इस बारे में शायद ही कोई जानता हो। हालांकि इसे लेकर दो प्रचलित कहानियां हैं। इन कहानियों के बारे में आज हम आपको बताएंगे। तो चलिए जानते हैं इन दोनों कहानियों के बारे में।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Mon, 02 Jan 2023 11:23 PM (IST) Updated:Mon, 02 Jan 2023 11:23 PM (IST)
Puja Path: शिवलिंग पर क्यों चढ़ाते हैं भांग व धतूरा, ये दो कथाएं हैं प्रचलित
शिव जी ने सृष्टि की रक्षा करने के लिए उस विष को अपने गले में उतार लिया था।

नई दिल्ली | Puja Path: देवों के देव महादेव शिव जी को भांग, धतूरा, बेलपत्र और जल अर्पित किया जाता है। शिव जी की पूजा के लिए इन चीजों का होना अनिवार्य है। कहते हैं कि भगवान शिव को सावन का महीना बहुत पसंद है। शिव जी की पूजा करने से रुके हुए सभी काम पूरे हो जाते हैं। आज हम बात करेंगे कि भगवान शिव को आखिर भांग और धतूरा क्यों चढ़ाया जाता है। तो चलिए जानते हैं एक लोटा जल से प्रसन्न होने वाले भगवान शिव के शिवलिंग पर भांग और धतूरा क्यों चढ़ाया जाता है।

इसलिए चढ़ाया जाता है भांग व धतूरा

शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग पर भांग व धतूरा चढ़ाने की एक खास कथा है। कहते हैं कि सागर मंथन के दौरान जब समुद्र से कई सारी वस्तुएं निकलीं तब देवों और राक्षसों ने आपस में उसे बांट लिया। समुद्र मंथन में विष का प्याला भी निकला था जिसे किसी ने नहीं ग्रहण किया। उस वक्त देव और दानव भगवान शिव के पास वो विष का प्याला ले कर गए थे। ऐसे में भगवान शिव ने उस विष के प्याले को पी डाला था। शिव जी ने सृष्टि की रक्षा करने के लिए उस विष को अपने गले में उतार लिया था।

ये है भांग व धतूरा इस्तेमाल करने की वजह

विष के प्याले को धारण करने के बाद भगवान शिव अचेत हो गए थे। उस वक्त सभी देव व दानव चिंतित हो गए थे। ऐसे में विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी ने शिव जी के सिर पर भांग व धतूरा रख दिया था। तब से शिवलिंग पर भांग और धतूरा चढ़ाया जाने लगा।

ये है एक अन्य कथा

वहीं शिवलिंग पर भांग धतूरा चढ़ाने को लेकर एक और कथा भी है। शिव जी हमेशा ही साधना में लीन हुआ करते थे। वे कैलाश पर्वत पर साधना किया करते थे। कैलाश पर्वत में घनघोर ठंडक होती है। ऐसी ठंडी में उघारे बदन शिव जी तपस्या कर रहे थे। ऐसे में उन्हें गर्माहट प्रदान करने के लिए उन्होंने भांग और धतूरे का इस्तेमाल किया था। आज भी हिमालय पर संन्यासी इसका सेवन कर खुद को गर्म रखते हैं।

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