आज है शनि प्रदोष खास होता है ये व्रत, मिलता है संतान प्राप्ति का आर्शिवाद

आज 2 फरवरी 2019 को वर्ष का पहला शनि प्रदोष व्रत पड़ रहा है। आइये जानें शनिवार को होने प्रदोष व्रत का महत्व, इसकी कथा आैर पूजन विधि।

By Molly SethEdited By: Publish:Wed, 30 Jan 2019 09:58 AM (IST) Updated:Sat, 02 Feb 2019 09:47 AM (IST)
आज है शनि प्रदोष खास होता है ये व्रत, मिलता है संतान प्राप्ति का आर्शिवाद
आज है शनि प्रदोष खास होता है ये व्रत, मिलता है संतान प्राप्ति का आर्शिवाद

कब होता है प्रदोष आैर क्या है इसका महत्व

हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन यानि त्रयोदशी को रखा जाता है। माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है। साथ ही शास्त्रों की मानें तो प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। प्रदोष व्रत से जुड़े एक अन्य पौराणिक तथ्य की मानें तो जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी, व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा, उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृपा अवश्य होगी आैर इस व्रत को रखने वाला जन्म- जन्मान्तर के बंधन से मुक्त हो कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ जायेगा। प्रदोष का व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों में पड़ता है। मान्यता है कि इस अवधि के बीच भगवान शिव कैलाश पर्वत में प्रसन्न होकर नृत्य करते है। इस दिन व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

प्रत्येक वार के प्रदोष व्रत के भिन्न हैं लाभ

प्रदोष व्रत का व्रत हमेशा रखना अति उत्तम होता है क्योंकि सप्ताह के प्रत्येक वार पर पड़ने वाले इस व्रत का अलग महत्व होता है। जैसे इस बार पड़ रहा शनि प्रदोष संतान का आर्शिवाद दिलाने वाला होता है, जिससे निसंतान दंपत्तियों के जीवन में खुशहाली आ सकती है। जानें वार के अनुसार इस व्रत का प्रभाव,

- रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

- सोमवार के दिन त्रयोदशी पड़ने पर किया जाने वाला व्रत आरोग्य प्रदान करता है और इंसान की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

- मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो तो उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।

- बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, पूजा करने वाले की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।

- गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़े तो इसके फल से शत्रुओं का विनाश होता है।

- शुक्रवार पर प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिए किया जाता है।

- इसी प्रकार संतान प्राप्ति की कामना की पूर्ति शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत से होती है।

ऐसे करें पूजा

शनि प्रदोष का व्रत करने के लिए इस त्रयोदशी को सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर सभी नित्य कामों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प करें। इस दिन भूल कर भी कोई आहार न लें। शाम को सूर्यास्त होने के पहले स्नान करके सफेद कपडे पहनें। इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करें। अब कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ऊं नम: शिवाय: का जाप भी करते रहें। इस तरह विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर कथा को सुन कर या स्वयं पाठ करें, तत्पश्चात आरती करें और प्रसाद सभी को बाटें।

प्रदोष व्रत कथा

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।  देवयोग से  कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य उन्होंने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उसे मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। जिसे मान कर उसने दोनों बालकों के साथ प्रदोष व्रत करना शुरू किया। एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र मन से प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

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