Gudi Padwa 2019 Date: इस दिन से होती है मराठी नव वर्ष की शुरूआत

6 अप्रैल को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जायेगा इस दिन से मराठी नए साल का आरंभ होता है इसीलिए महाराष्ट्र और कोंकण में इसे संवत्सर पडवो भी कहते हैं।

By Nazneen AhmedEdited By: Publish:Fri, 05 Apr 2019 12:32 PM (IST) Updated:Fri, 05 Apr 2019 12:32 PM (IST)
Gudi Padwa 2019 Date: इस दिन से होती है मराठी नव वर्ष की शुरूआत
Gudi Padwa 2019 Date: इस दिन से होती है मराठी नव वर्ष की शुरूआत

6 अप्रैल को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जायेगा, इस दिन से मराठी नए साल का आरंभ होता है इसीलिए महाराष्ट्र और कोंकण में इसे संवत्सर पडवो भी कहते हैं।

गुड़ी पड़वा का इतिहास और महत्व

प्राचीन मान्याताओं के अनुसार इस द‍िन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण  किया था और सतयुग का आरम्भ हुआ था। तभी से गुड़ी पड़वा या संवत्सर पडवो को  मराठी और कोंकणी समुदाय के लोग वर्ष के पहले दिन के रूप में मनाते हैं। इस  दिन से वे नए संवत्सर का आरंभ मानते हैं। संवत्सर साठ वर्षों का चक्र है,  और सभी की पहचान अलग नाम से की जाती है। गुड़ी पड़वा को कर्नाटक और आंध्र  प्रदेश में उगादि के रूप में मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि, गुड़ी पड़वा और उगादि सभी एक ही दिन मनाए जाते हैं। मराठी नववर्ष गुड़ी पड़वा की गणना  लुडी-सौर कैलेंडर के अनुसार होती है। ये कैलेंडर चंद्रमा और सूर्य की  स्थिति को महीने और दिनों में विभाजित करने के लिए जाना जाता है। सौर  कैलेंडर वर्ष को महीनों और दिनों में विभाजित करने के लिए केवल सूर्य की स्थिति को मानता है। इसी कारण हिंदू नव वर्ष को दो बार अलग-अलग नामों से और वर्ष के दो अलग-अलग समय में मनाया जाता है। सौर कैलेंडर पर आधारित हिंदू नववर्ष को तमिलनाडु में पुथांडु, असम में बिहू, पंजाब में वैसाखी, उड़ीसा में पान संक्रांति और पश्चिम बंगाल में नाबा बरसा के नाम से जाना जाता है।

गुड़ी पड़वा उत्सव

ब्रह्मा के इस दिन सृष्टि का निर्माण के विश्वास के चलते गुड़ी पड़वा पर सबसे पहले ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। घर के आंगन में रंगोली बनाकर गुड़ी सजाई जाती है और दरवाजे पर आम के पत्तों से बंदनवार सजाते हैं। साथ ही ब्रह्मा से हाथ जोड़कर निरोगी जीवन, घर में सुख-समृद्धि व धन की  प्रार्थना की जाती है। इस वर्ष गुड़ी पड़वा 6 अप्रैल को मनाई जा रही है। गुड़ी बांधने के अनुष्ठान के बाद तेल-स्नान किया जाता है। शास्त्रों के

अनुसार इस दिन तेल से स्नान और नीम के पत्तों को खाना एक पवित्र अनुष्ठान माना गया है। जब उत्तर भारत में नौ दिन की चैत्र नवरात्रि पूजा शुरू होती है तभी गुड़ी पड़वा का शुभारंभ होता है। साथ ही नवरात्रि के पहले दिन मिश्री के साथ नीम खाने की परंपरा रही है।

विजय पताका का प्रतीक

'गुड़ी' विजय पताका का प्रतीक कही जाती है। एक बांस या लंबी लकड़ी पर जरी की कोरी साड़ी लपेट कर गुड़ी बनाई जाती है। इसके ऊपर तांबे का एक लोटा रखा जाता है। इसके बाद इस लोटे के आसपास नीम और आम की पत्तियां, फूल और गाठी की मालाओं को लपेटा जाता है। सुबह से तैयार इस गुड़ी को सूर्योदय के बाद खिड़की

या छत पर लगाकर इसकी पूजा की जाती है। इस त्योहार पर कई प्रकार के म‍िष्ठान बनाने की परंपरा है। गुड़ी पड़वा के दिन महाराष्ट्रीयन परिवारों में श्रीखंड का भोग लगाना अन‍िवार्य माना जाता है, और पूरण पोली जो गुड़ की बनी रोटी होती है बनाई जाती है। इस द‍िन सभी मह‍िला, पुरुष और बच्चे नए  पर‍िधान धारण करते हैं।

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