Bajrang Baan Path: बजरंग बाण का पाठ करने के दौरान न करें ये गलतियां, वरना भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम

Bajrang Baan Path धार्मिक मान्यता है कि हनुमान जी की पूजा करने से जातक को बल बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है। साथ ही जातक के जीवन में व्याप्त सभी संकट दूर हो जाते हैं। इसके लिए साधक हर मंगलवार को विधि पूर्वक हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Publish:Tue, 23 May 2023 11:58 AM (IST) Updated:Tue, 23 May 2023 11:58 AM (IST)
Bajrang Baan Path: बजरंग बाण का पाठ करने के दौरान न करें ये गलतियां, वरना भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम
Bajrang Baan Path: बजरंग बाण का पाठ करने के दौरान न करें ये गलतियां, वरना भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Bajrang Baan Path: सनातन धर्म में मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा-उपासना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि हनुमान जी की पूजा करने से जातक को बल, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति होती है। साथ ही जातक के जीवन में व्याप्त सभी संकट दूर हो जाते हैं। इसके लिए साधक हर मंगलवार को विधि पूर्वक हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं। इस समय जातक हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, राम स्तुति, आरती आदि करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि बजरंग बाण पाठ करने के कई नियम हैं। इन नियमों का पालन अनिवार्य है। अनदेखी करने से हनुमान जी नाराज हो जाते हैं। अगर आप भी पूजा करते समय बजरंग बाण का पाठ करते हैं, तो ये नियम जरूर जान लें। आइए जानते हैं-

बजरंग बाण पाठ के नियम-

-शास्त्रों में निहित है कि बजरंग बाण का पाठ मंगलवार के दिन से शुरू करना चाहिए। किसी अन्य दिन से बजरंग बाण के पाठ की शुरुआत न करें।

-बजरंग बाण के बाद हनुमान चालीसा का पाठ अनिवार्य है। इसके लिए बजरंग बाण का पाठ करने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करें।

-ज्योतिषियों की मानें तो एक बार शुरू करने के बाद लगातार 41 दिनों तक बजरंग बाण का पाठ करें। इसे बीच में न छोड़ें। ऐसा करने से पूजा स्वीकार्य नहीं होता है।

- बजरंग बाण पाठ करने के दौरान लाल रंग के वस्त्र धारण करें। हनुमान जी को लाल रंग अति प्रिय है। अतः लाल रंग के कपड़े पहनकर बजरंग बाण का पाठ करें।

- बजरंग बाण का पाठ करने के दिनों में ब्रह्मचर्य नियम का पालन करें। साथ ही तामसिक भोजन और सोमरस से दूर रहें। ऐसा करने से हनुमान जी अप्रसन्न होते हैं।

बजरंग बाण

दोहा

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई

जय हनुमन्त सन्त-हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।

जन के काज विलम्ब न कीजे। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु बहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।

बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।

अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।

लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।

अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दःुख करहु निपाता।।

जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।

ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारु बज्र सम कीलै।।

गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।

सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलंब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि-उर शीसा।।

सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दूत धरु मारु धाई कै।।

जै हनुमंत अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।

वन उपवन जल-थल गृह माही। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।

पॉय परौं पर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।

जै अंजनी कुमार बलवंता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।

बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।

इन्हहिं मारु, तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मर्याद नाम की।।

जनक सुता पति दास कहाओ। ताकि शपथ विलंब न लाओ।।

जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।

शरण शरण परि जोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौ।।

उठु उठु चल तोहि राम दोहाई। पॉय परों कर जोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनंद हमारौ।।

ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।

ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।

हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।

हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अंत पछतैहौ।।

जनकी लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।

जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।

जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।

जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।

जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति जय त्रिभुवन विख्याता।।

ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेशा।।

राम रुप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।

विधि शारदा सहित दिन राति। गावत कपि के गुन बहु भॅाति।।

तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।

यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।

सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।

ऐहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करे लहै सुख ढेरि।।

याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत वॉण तुल्य बलवाना।।

मेटत आए दुःख क्षण माहीं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।

डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। पर – कृत यंत्र मंत्र नहिं त्रासे।।

भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।

प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प – मृत्युग्रह दोष नसाई।।

आवृत ग्यारह प्रति दिन जापै। ताकि छाह काल नहिं चापै।।

दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।

यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारै।।

शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर कॉपै।।

तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।

दोहा

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान।

तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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