बटुक भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति व आकाल मौत नहीं होती

भगवान बटुक भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहां शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे मां दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही बटुक भैरव रात्रि के देवता माने

By Preeti jhaEdited By: Publish:Tue, 26 May 2015 12:33 PM (IST) Updated:Tue, 26 May 2015 12:43 PM (IST)
बटुक भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति व आकाल मौत नहीं होती

भगवान बटुक भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहां शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे मां दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही बटुक भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। श्री बटुक भैरव जयंती 28 मई 2015 (गुरुवार) के दिन है। बटुक भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।

अकाल मौत से बचाती है ये 'भैरव साधना'

तंत्र साधना में शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण नामक छ: तांत्रिक षट् कर्म होते हैं। इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:- मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं।

उक्त सभी को करने के लिए अन्य कई तरह के देवी-देवताओं की साधना की जाती है। अघोरी लोग इसके लिए शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना करते हैं। बहुत से लोग भैरव साधना, नाग साधना, पैशाचिनी साधना, यक्षिणी साधा या रुद्र साधना करते हैं। यह प्रस्तुत है अकाल मौत से बचाने वाली और धन संपत्ति प्रदान करने वाली बटुक भैरव साधना।

जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो बटुक भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगाना लाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार भैरव को स्वयं ब्रह्मदेव का प्रतीक माना गया है। जबकि रूद्राष्टाध्यायी और भैरव तंत्र के अनुसार बटुक भैरव जी को भगवान शिव का ही अंशावतार माना गया है। ऐसे में एक शंका का मन में उत्पन्न होना स्वाभाविक है। वास्तव में भैरव जी शिव के ही अवतार है।

शास्त्रों में इनको शिवांश मानते हुए कहा गया है कि भैरव पूर्ण रूप से देवाधिदेव शंकर ही हैं। लेकिन भगवान शंकर की माया से ग्रस्त होने के फलस्वरूप एक सामन्य व्यक्ति इस तथ्य को नहीं जान पाता। लेकिन भैरव के रूप में शिव के प्राकट्य के पीछे जो कारण है वह ब्रह्मदेव के कार्यों सम्पन्न करना है।

वास्तव में इनका अवतरण ब्रम्हा जी की मति फिर जाने की अवस्था में उन्हें धर्म का मर्म समझाने हेतु हुआ है। इसीलिए इन्हें ब्रह्मदेव का प्रतीक माना गया है। इस प्रकार से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हैं तो ये शिव के ही अंश या अवतार लेकिन ब्रह्मदेव के कार्यों में सहयोग करने के लिए इनका अवतरण हुआ है अत: इनकी पूजा आराधना से दोनो ही देवों की कृपा स्वयमेव प्राप्त हो जाती है।

बटुक भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं।

भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है। खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं।

वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका मां और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।

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