भगवान शिव के निर्देशानुसार ही इस शिवलिंग का नाम ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ पड़ा

मान्यता है कि सावन मास में इस प्राचीन नागेश्वर शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंगों की एक साथ पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 18 Jul 2016 01:48 PM (IST) Updated:Tue, 19 Jul 2016 10:38 AM (IST)
भगवान शिव के निर्देशानुसार ही इस शिवलिंग का नाम ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ पड़ा

मान्यता है कि सावन मास में इस प्राचीन नागेश्वर शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंगों की एक साथ पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। मंदिर में इन अद्भुत शिवलिंगों के दर्शन व पूजन के लिए दूर-दूर से श्रद्घालु आते हैं। सावन में विशेष रूप से सोमवार को खासी भीड़ रहती है।

भगवान शिव के निर्देशानुसार ही इस शिवलिंग का नाम ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ पड़ा। माना जाता है कि ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के दर्शन करने के बाद जो मनुष्य उसकी उत्पत्ति और माहात्म्य सम्बन्धी कथा को सुनता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण भौतिक और आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करता है-

एतद् य: श्रृणुयान्नित्यं नागेशद्भवमादरात्।

सर्वान् कामनियाद् धीमान् महापातकनशनान्।।

उपर्युक्त ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर नाम से दो अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा ग्रन्थों में प्राप्त होती है। मतान्तर से इन लिंगों को भी कुछ लोग ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं।

इनमें से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग निजाम हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश ग्राम में अवस्थित हैं।

इसी प्रकार उत्तराखंड प्रदेश के अल्मोड़ा जनपद में एक ‘योगेश या ‘जागेश्वर शिवलिंग’ अवस्थित है, जिसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ बताया जाता है। यद्यपि शिव पुराण के अनुसार समुद्र के किनारे द्वारका पुरी के पास स्थित शिवलिंग ही ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रमाणित होता है।

जैसा की आप जानते हैं की द्वारका से करीब 16 किलोमीटर की दुरी पर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है, द्वारका के आसपास स्थित दर्शनीय स्थलों के दर्शन के लिए जो बस चलती है वही बस रुक्मणि मंदिर के दर्शन के बाद यात्रियों को नागेश्वर ज्योतिर्लिंग लेकर जाती है तथा वहां से गोपी तालाब होते हुए बेट द्वारका जाती है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जिस जगह पर बना है वहां कोई गाँव या बसाहट नहीं है, यह मंदिर सुनसान तथा वीरान जगह पर बना है, निकटस्थ शहर द्वारका ही है जो यहाँ से पंद्रह किलोमीटर दूर है। शिव महापुराण के द्वादाश्ज्योतिर्लिंग स्तोत्रं के अनुसार नागेशं दारुकावने अर्थात नागेश्वर जो द्वारका के समीप वन में स्थित है।

यहाँ पर मंदिर परिसर में भगवान शिव की पद्मासन मुद्रा में एक विशालकाय मूर्ति भी स्थित है जो यहाँ का मुख्य आकर्षण है। इस मूर्ति के आसपास पक्षियों का झुण्ड मंडराते रहता है तथा भक्तगण यहाँ पक्षियों के लिए अन्न के दाने भी डालते है जो यहीं मंदिर परिसर से ही ख़रीदे जा सकते हैं।

शिव की विशाल मूर्ति बहुत दूर रोड से ही दिखाई देने लग जाती है, यह मूर्ति बहुत ही सुंदर है तथा भक्तों का मन मोह लेती है। यहाँ पर गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति सिर्फ उन्ही श्रद्धालुओं को होती है जो अभिषेक करवाते हैं।

मंदिर के नियमों के अनुसार गर्भगृह में प्रवेश से पहले भक्त को अपने वस्त्र उतार कर समीप ही स्थित एक कक्ष में जहाँ धोतियाँ रखी होती हैं, जाकर धोती पहननी होती है उसके बाद ही गर्भगृह में प्रवेश किया जा सकता है।

यहाँ की एक और विशेषता है की यहाँ पर अभिषेक सिर्फ गंगाजल से ही होता है, तथा अभिषेक करने वाले भक्तों को मंदिर समिति की ओर से गंगाजल निशुल्क मिलता है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग एक परिचय:

गुजरात राज्य के जामनगर जिले में स्थित प्रसिद्ध तीर्थ स्थान द्वारका धाम से लगभग 16 किलोमीटर की दुरी पर स्थित नागेश्वर, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से दसवें क्रम के ज्योतिर्लिंग के रूप में विश्व भर में प्रसिद्द है। कुछ लोग मानते हैं की यह ज्योतिर्लिग महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में स्थित औंढा नागनाथ नामक जगह पर है, वहीँ अन्य लोगों का मानना है की यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा के समीप जागेश्वर नामक जगह पर स्थित है, इन सारे मतभेदों के बावजूद तथ्य यह है की प्रति वर्ष लाखों की संख्या में भक्त गुजरात में द्वारका के समीप स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में दर्शन, पूजन और अभिषेक के लिए आते हैं।

गर्भगृह सभामंड़प से निचले स्तर पर स्थित है, ज्योतिर्लिंग मध्यम बड़े आकार का है जिसके ऊपर एक चांदी का आवरण चढ़ा रहता है। ज्योतिर्लिंग पर ही एक चांदी के नाग की आकृति बनी हुई है। ज्योतिर्लिंग के पीछे माता पार्वती की मूर्ति स्थापित है। गर्भगृह में पुरुष भक्त सिर्फ धोती पहन कर ही प्रवेश कर सकते हैं, वह भी तभी जब उन्हें अभिषेक करवाना है।

मंदिर समय सारणी:

मंदिर सुबह पांच बजे प्रातः आरती के साथ खुलता है, आम जनता के लिए मंदिर छः बजे सुबह खुलता है। भक्तों के लिए शाम चार बजे श्रृंगार दर्शन होता है तथा उसके बाद गर्भगृह में प्रवेश बंद हो जाता है। शयन आरती शाम सात बजे होती है तथा रात नौ बजे मंदिर बंद हो जाता है।

रहने की व्यवस्था तथा परिवहन:

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर ओखा तथा द्वारका के बीचोबीच स्थित है। वीरान जगह पर स्थित होने की वजह से यहाँ ठहरने की कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है, अतः यात्रियों को द्वारका या ओखा में ही ठहरना होता है। द्वारका से नागेश्वर के लिए आवागमन के साधन में ऑटो रिक्शा सबसे सुलभ है।

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