Mallikarjuna Jyotirlinga Temple: ये है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा, कैसे हुआ स्थापित

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple श्रावण मास भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना है। इस दौरान शिव की आराधना की जाती है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 22 Jul 2020 07:30 AM (IST) Updated:Wed, 22 Jul 2020 07:30 AM (IST)
Mallikarjuna Jyotirlinga Temple: ये है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा, कैसे हुआ स्थापित
Mallikarjuna Jyotirlinga Temple: ये है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा, कैसे हुआ स्थापित

Mallikarjuna Jyotirlinga Temple: श्रावण मास भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना है। इस दौरान शिव की आराधना की जाती है। श्रावण मास में भोले शंकर की अगर पूरी श्रद्धा से अर्चना की जाए तो भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहते हैं अगर आप भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करते हैं तो आपको शुभ फल प्राप्त होता है। इससे पहले के आर्टिकल में हमने आपको भगवान शिव के पहले ज्योतिर्लिंग के बारे में बताया था जिसे दोबारा पढ़ने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं। वहीं, आज हम आपको दूसरे ज्योतिर्लिंग यानी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बारे में बताएंगे। यह ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश के में स्थित हैं। कहा जाता है कि यहां महादेव मां पार्वती के साथ विराजते हैं। आज हम अपने पाठकों को दूसरे ज्योतिर्लिंग की कथा सुनाने जा रहे हैं। तो चलिए पढ़ते हैं मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा।

शिवपुराण के अनुसार, यह कथा शिव जी के परिवार से जुड़ी हुई है। भगवान शिव के छोटे पुत्र गणेश जी, कार्तिकेय से पहले विवाह करने चाहते थे। जब यह बात शिव जी और माता पार्वती को पता चली तो उन्होंने इस समस्या को सुलझाने के बारे में विचार किया। उन्होंने दोनों के सामने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि दोनों में से जो कोई भी पृथ्वी की पूरी परिक्रमा कर पहले लौटेगा उनका विवाह पहले कराया जाएगा। जैसे ही कार्तिकेय ने यह बात सुनी वो पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल गए। लेकिन गणेश जी ठस से मस नहीं हुए। वो बुद्धि के तेज थे तो उन्होंने अपने माता-पिता यानि माता पार्वती और भगवान शिव को ही पृथ्वी के समान बताकर उनकी परिक्रमा कर ली।

इस बात से प्रसन्न होकर और गणेश की चतुर बुद्धि को देखकर माता पार्वती और शिव जी ने उनका विवाह करा दिया। जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर वापस आए तो उन्होंने देखा की गणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों के साथ हो चुका था जिनका नाम सिद्धि और बुद्धि था। इनसे गणेश जी को क्षेम और लाभ दो पुत्र भी प्राप्त हुए थे। कार्तिकेय को देवर्षि नारद ने सारी बात बताई। इस कार्तिकेय जी नारा हो गए और माता-पिता के चरण छुकर वहां से चले गए।

कार्तिकेय क्रौंच पर्वत पर जाकर निवास करने लगे। उन्हें मनाने के लिए शिव-पार्वती ने नारद जी को वहां भेजा लेकिन कार्तिकेय नहीं माने। फिर पुत्रमोह में माता पार्वती भी उनके पास उन्हें लेने गईं तो उन्हें देखकर कार्तिकेय पलायन कर गए। इस बात से हताश माता पार्वती वहीं बैठ गईं। वहीं, भगवान शिव भी ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए। इसके बाद से ही इस जगह को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा। इसका नाम मल्लिकार्जुन ऐसे पड़ा क्योंकि माता पार्वती के नाम से मल्लिका और भगवान शिव का नाम अर्जुन से भी जाना जाता है।  

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