ब्रह्मा जी के इन मंदिरों के बारे में जानते हैं आप

बहुत कम मंदिर ऐसे हैं जो विशेषकर ब्रह्म आराधना के लिए समर्पित हैं। ऐसे कुछ मंदिरों के बारे में जानते हैं जो भगवान ब्रह्मा की पूजा के लिए ही जाने जाते हैं।

By Molly SethEdited By: Publish:Wed, 17 Jan 2018 04:48 PM (IST) Updated:Thu, 18 Jan 2018 09:00 AM (IST)
ब्रह्मा जी के इन मंदिरों के बारे में जानते हैं आप
ब्रह्मा जी के इन मंदिरों के बारे में जानते हैं आप


जगतपिता ब्रह्मा मंदिर, पुष्कर

भगवान ब्रह्मा के सभी मंदिरों में यह सबसे प्रमुख मंदिर है। जगतपिता ब्रह्मा मंदिर राजस्थान में पुष्कर झील के किनारे स्थित है। हालांकि इस समय मौजूद मंदिर का स्थापत्य 14वीं शताब्दी का है पर यह मंदिर 2000 साल पुराना माना जाता है। ये मंदिर मुख्यत: संगमरमर व पत्‍थर के खण्डों का बना है। मंदिर की खासियत है इसका हंसरूपी शिखर जो गहरे लाल रंग का है।

आदि ब्रह्मा मंदिर, खोखन

यह मंदिर हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में भुंतर कस्बे से 4 किमी उलार में है। ये इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि ये काष्ठ की बनी एक विशाल इमारत है। इस मंदिर के केंद्र में भगवान आदि ब्रह्मा जी की प्रतिमा है जिनके बाएं तरफ़ 'गढ़-जोगनी' तथा दाएं तरफ 'मणिकरण-जोगनी' की प्रतिमाएं स्थापित हैं। चार मंजिल का ये मंदिर 20 मीटर ऊंचा है। मंदिर का शिल्प प्रसिद्ध पैगोडा बौद्ध मंदिरों के समान है।

ब्रह्मा मंदिर, असोतरा

यह मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले में बालोतरा शहर से 10 किमी की दुरी पर स्थित है। मंदिर का मुख्य सभागार जैसलमेर के प्रसिद्ध पीले पत्थरों से निर्मित है और बाकी पूरा मंदिर जोधपुरी पत्थरों से बना है। मंदिर में स्‍थापित भगवान ब्रह्मा की प्रतिमा संगमरमर की बनी है जिसकी नक्काशी देखने लायक है. यहां प्रतिदिन 200 किग्रा अन्न पक्षियों को खिलाया जाता है।

परब्रह्म मंदिर, ओचिरा

केरल राज्‍य के कोल्लम तथा अल्लपुझा जिलों की सीमा पर स्थित यह मंदिर यहां का एक पवित्र तीर्थस्थल है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां न तो कोई भवन संरचना, मतलब दीवार, छत आदि है और न ही कोई गर्भ-गृह है जिसमे देवप्रतिमा स्थापित हो। भक्त यहां एक बरगद के पेड़ के मूल-भाग को ब्रह्मा जी मान कर उनकी पूजा करते हैं।

उलामार कोइल ब्रह्मा मंदिर,तिरुचिरापल्ली

तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले के बाहर की ओर स्थित यह मंदिर हिन्दू त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश को समर्पित है। इस मंदिर का स्थापत्य द्रविड़ियन शैली का है और यह मध्ययुगीन चोल शासकों द्वारा 8वीं शताब्दी में बनाया गया था। इस ऐतिहासिक मंदिर में प्रत्येक हिन्दू देव-त्रयी और उनसे सम्बद्ध देवियों के पूजा-अर्चन के लिए छह अलग अलग पीठ हैं।

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