ज्ञानभूमि बोधगया

बोधगया (गया)। राजकुमार सिद्धार्थ की ज्ञानभूमि बोधगया। यू तो बोधगया बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख धर्म स्थलों में से एक है। जिसके कारण यहां कई देशों के बौद्ध महाविहार बने हैं। जिसे 'धर्म दूतावास' की संज्ञा दी जाती है। धर्म दूतावास बनाने का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यहां से बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार के साथ-साथ धार्मिक कृत्यों के माध्यम से भारत

By Edited By: Publish:Sat, 12 Apr 2014 03:46 PM (IST) Updated:Sat, 12 Apr 2014 04:29 PM (IST)
ज्ञानभूमि बोधगया

बोधगया (गया)। राजकुमार सिद्धार्थ की ज्ञानभूमि बोधगया। यू तो बोधगया बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख धर्म स्थलों में से एक है। जिसके कारण यहां कई देशों के बौद्ध महाविहार बने हैं। जिसे 'धर्म दूतावास' की संज्ञा दी जाती है। धर्म दूतावास बनाने का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यहां से बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार के साथ-साथ धार्मिक कृत्यों के माध्यम से भारत के साथ दूसरे बौद्ध देशों से मैत्री संबंध में और प्रगाढ़ता लाई जा सके। साथ ही विदेशी पर्यटक बोधगया के प्रति और ज्यादा आकर्षित हो। ताकि यहां पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा मिल सके।

सीमित संसाधन के बावजूद भी पूर्व के दशकों में विदेशी पर्यटक बोधगया आया करते थे। और महाबोधि मंदिर के साथ-साथ संबंधित देशों के महाविहार में जाया करते थे। लेकिन बदलते दौर में बोधगया में विदेशी बौद्ध महाविहारों की संख्या में काफी इजाफा हो रहा है। नित नए बौद्ध महाविहार का निर्माण हो रहा है। जिन्हें न तो धर्म दूतावास की मान्यता दी जा रही है। और ना ही वहां से धर्म का प्रचार-प्रसार व धार्मिक कृत्य हो रहा है। वैसे पूर्व में दूतावासों की मान्यता प्राप्त महाविहारों में प्राचीन वर्मीज मंदिर, रायल थाई मंदिर, जापान मंदिर का नाम शीर्ष पर है। जहां प्रधान की नियुक्ति से लेकर संचालन व रख-रखाव के लिए सरकार स्तर से राशि भेजी जाती है।

गत डेढ़ दशक में म्यांमार, थाईलैंड, तिब्बत, लाउस, वियतनाम, कम्बोडिया व भूटान के तो दर्जनों नए महाविहार बने हैं। जो विशुद्ध रूप से व्यवसायीकरण की ओर उन्मुख हो रहे हैं। क्योंकि महाविहार में दर्जनों कमरे बनाए जा रहे हैं। कमरे की आंतरिक सज्जा किसी पांच सितारा होटल जैसी होती है। जहां विदेशी पर्यटकों को आवासन सुविधा मुहैया कराया जा रहा है। उसके एवज में उनसे दान के नाम पर राशि वसूली जाती है। महाविहार परिसर में चाय-काफी से लेकर दैनिक उपयोग और मूर्ति-धार्मिक पुस्तकों की बिक्री की जाती है। जिसे श्रद्धालु आस्था के नाम पर खरीदारी करते हैं। क्योंकि महाविहार परिसर में खुले व्यवसायिक प्रतिष्ठान के साथ 'दान' शब्द जुड़ा होता है।

ज्ञानभूमि बोधगया-

यू तो बोधगया बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए प्रमुख धर्म स्थलों में से एक है। जिसके कारण यहां कई देशों के बौद्ध महाविहार बने हैं। जिसे 'धर्म दूतावास' की संज्ञा दी जाती है। धर्म दूतावास बनाने का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यहां से बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार के साथ-साथ धार्मिक कृत्यों के माध्यम से भारत के साथ दूसरे बौद्ध देशों से मैत्री संबंध में और प्रगाढ़ता लाई जा सके।

नहीं होता नियम-कानून का अनुपालन- विदेशी बौद्ध महाविहार संचालक को भारतीय संविधान से कोई मतलब नहीं होता है। यहां इनकी अपनी मर्जी चलती है। कुछेक महाविहार को केन्द्र सरकार की पहल पर राज्य सरकार ने जमीन आवंटित की। तो कुछेक सोसाइटी बनाकर निजी जमीन खरीद कर महाविहार का निर्माण कर लिए। महाविहार संचालक भवन निर्माण के लिए नक्शा, आय-व्यय का लेखा-जोखा, महाविहार में ठहराने वाले विदेशी पर्यटकों की सूचना प्रशासन को देने संबंधी कोई लेखा-जोखा प्रस्तुत नहीं करते। महाविहार के आतंरिक गतिविधि से प्रशासन-पुलिस पूर्णतया अनभिज्ञ रहती है। महाविहार परिसर में किसी अप्रिय घटना घटित होने पर स्थानीय प्रशासन-पुलिस को भी परिसर में प्रवेश करने हेतु काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसे में किसी अधिकारी द्वारा कोई कार्रवाई कर दी गई। तो वह मामला अलपसंख्यक आयोग तक जा पहुंचता है।

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